
आजकल के बदलते परिवेश में बच्चों को किसी भी तरह की जानकारी देने में पेरेंट्स की मुख्य भूमिका होती है। उनकी शिक्षा केवल स्कूल तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि उन्हें अपने चारों ओर होने वाली घटनाओं का भी ज्ञान होना चाहिए जिससे वो किसी भी जगह पर धोखा न खा सकें। बच्चे इंटरनेट, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्म के जरिये बहुत कम उम्र में ही ऐसी बातें जान जाते हैं जिसकी जानकारी एक निश्चित आयु के बाद ही होनी चाहिए। ऐसी भी कई बातें बच्चों के सामने आ जाती हैं जिनके लिए वे मानसिक और भावनात्मक रूप से पूरी तरह तैयार नहीं होते हैं। ऐसे में माता-पिता और समाज के सामने एक सबसे जरूरी सवाल खड़ा होता है कि क्या बच्चों को कम उम्र में Sex Education देना सही है या इससे उनका बचपन और मासूमियत प्रभावित हो सकती है? सेक्स एजुकेशन को लेकर हमारे समाज में आज भी कई तरह की झिझक और गलत धारणाएं मौजूद हैं। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि इससे बच्चे जल्दी समझदार बनने की बजाय गलत दिशा में जा सकते हैं, जबकि कुछ का डर है कि इस तरह की बातचीत बच्चों को समय से पहले मेच्योर बना देती है। आइए Mr Jeevan Kasara, Chairman , Steris Healthcare से जानें इन बातों के मिथ्स और फैक्ट्स के बारे में।
वास्तविकता: एक्सपर्ट बताते हैं कि सेक्स एजुकेशन बच्चों में रिस्की बिहेवियर कम और रिस्पॉन्सिबल डिसीजन-मेकिंग को बढ़ाती है न कि उन्हें समय से पहले मेच्योर बनाती है। अगर बच्चों की सही गलत की पहचान घर पर ही करा दी जाती है तो उसके लिए बाहर धोखा खाने के मौके न के बराबर हो जाते हैं।

वास्तविकता: ऐसा कहना बिलकुल गलत है। जब आप बच्चे को शुरुआती दौर की शिक्षा देती हैं तो इसमें बच्चे के शरीर के अंगों की सही जानकारी देने के साथ गुड टच और बैड टच की पहचान कराना होता है। इसमें बच्चे को शरीर के अंगों के बारे में सही जानकारी देना ही होता है। इसमें बच्चे की सुरक्षा और बाउंड्रीज़ की समझ शामिल होती है।
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वास्तविकता: ऐसा कहना बिलकुल गलत है क्योंकि बच्चे सरल भाषा में दिए गए कॉन्सेप्ट्स जैसे सेफ टच और अनसेफ टच को आसानी से सीख लेते हैं और याद रखते हैं। इसलिए बच्चों को कम उम्र से ही इस तरह की बातों की जानकारी देनी जरूरी है।
वास्तविकता: किसी भी बच्चे की मासूमियत जानकारी से नहीं, गलत अनुभवों से कम होती है, जब आप बच्चे को कम उम्र में ही ऐसी शिक्षा देती हैं तो वो बच्चों की सुरक्षा को बढ़ाने के काम आता है। सेक्स एजुकेशन बच्चों को सुरक्षित रहने की जानकारी देती है।

वास्तविकता: अगर हम इसकी जानकारी किशोरावस्था से शुरू करेंगे तो तो आधी जानकारी होने के कारण बच्चे गलत जानकारी साथियों या इंटरनेट से सीखते हैं। ऐसा माना जाता है कि शुरुआती शिक्षा किसी भी भ्रम को कम करती है।
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वास्तविकता: Sex Education के लिए लड़के और लड़कियां दोनों जिम्मेदार होते हैं और जेंडर-न्यूट्रल शिक्षा ही सुरक्षित समाज की आधारशिला मानी जाती है।
सेक्स एजुकेशन को लेकर मौजूद मिथक अधिकतर सामाजिक झिझक और अधूरी जानकारी के कारण पैदा होते हैं। सच्चाई यह है कि अर्ली सेक्स एजुकेशन बच्चों में आत्म-सुरक्षा, समझ और जिम्मेदारी की भावना विकसित करती है। ऐसी शिक्षा केवल बच्चों को सुरक्षित बनाती है बल्कि उनके आने वाले सालों में बेहतर निर्णय लेने में सक्षम भी करती हैं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसे ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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