आज देव उठनी एकादशी है। देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। ऐसी मान्यता है कि देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से घर में सब कुछ मंगलमय और शुभ होता है। वहीं, इस दिन श्री हरि नारायण की पूजा के दौरान व्रत कथा का अनुसरण करना भी फलदायी होता है। तभी व्रत और पूजा का पूर्ण फल मिलता है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं देव उठनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में।
देव उठनी एकादशी की व्रत कथा (Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha 2024)
बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक ब्राह्मण परिवार रहता था। उनके पास एक बहुचर्चित पुत्र था, जो बहुत ही ज्ञानी और धार्मिक था। उसका नाम रामचंद्र था। वह प्रतिदिन भगवान विष्णु की पूजा करता और व्रत-उपवासी रहता था। एक दिन उसने सुना कि देव उठनी एकादशी के दिन विशेष पूजा करने से जीवन के सभी दुख समाप्त हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
रामचंद्र ने सोचा कि इस दिन का व्रत और पूजा करना उसके जीवन के लिए शुभ होगा। रामचंद्र ने निश्चय किया कि वह इस दिन भगवान विष्णु का उपासना करके जीवन के सारे पापों से मुक्त होगा। वह पूरी श्रद्धा और आस्था से एकादशी के दिन व्रत करने बैठा। उस दिन वह पूरी रात जागकर प्रभु के नाम का जाप करने लगा और दिनभर उपवास रखा।
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व्रत के दौरान, वह किसी भी प्रकार के सुख या भोग से बचने की कोशिश करता था। रात्रि में, भगवान विष्णु ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए और रामचंद्र से कहा कि रामचंद्र ने उनके प्रति निष्ठा और भक्ति से यह व्रत किया है, इसलिए रामचंद्र के सभी पाप समाप्त हो जाएंगे और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से रामचंद्र का जीवन सुखमय हो गया।
अन्य कथा के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी की बहनों ने भगवान विष्णु को पाने के लिए घोर तप किया। भगवान विष्णु जानते थे कि माता लक्ष्मी की बहनों की इच्छा गलत है लेकिन वह तप का वरदान देने के लिए विवश थे। जब भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी की बहनों को दर्शन दीये तो उन्होंने भगवान विष्णु से उनकी स्मृति चले जाने का वरदान मांग लिया।
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वरदान अनुसार भगवान विष्णु को कुछ भी याद न रहा और वह पाताल में लक्ष्मी अमता की बहनों के साथ निवास करने लगे। चार महीने पाताल में निवास के बाद भगवान शिव भगवान विष्णु को लेने के लिए पहुंचे। चूंकि भगवान विष्णु को कुछ भी याद नहीं था इसलिए उन्होंने भगवान शिव के साथ चलने से मना कर दिया जिसके बाद शिव-हरि का भयंकर युद्ध हुआ।
युद्ध के दौरान जब भगवान शिव नेभगवान विष्णु के हृदय पर त्रिशूल चलाया तब जाकर भगवान विष्णु को सब पुनः याद आया और वह अपने धाम वैकुण्ठ लौट आए। जिस दिन भगवान विष्णु अपने धाम शिव जी के साथ लौटे थे उस दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। भगवान विष्णु के जागने के कारण इसका नाम देव उठनी पड़ा।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से देव उठनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में जान सकते हैं।
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