दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा 'भ्रूण के लिंग निर्धारण आधारित गर्भपात से लैंगिक असमानताओं को बढ़ावा मिलता है', जानिए पूरा मामला

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि भ्रूण के लिंग-निर्धारण से स्त्री द्वेष और लैंगिक असमानता बढ़ती है। जिसे रोका जाना चाहिए। चलिए जानते हैं कि आखिर पूरा मामला क्या है।

delhi high court stated about sex determination based abortion is a powerful method of perpetuating gender inequalities

आज भी हमारे देश में बेटे की चाहत में लोग चोरी छुपे गर्भवती महिलाओं का लिंग परीक्षण कराते हैं। इसनिंदयी काम को रोकने को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि भ्रूण के लिंग-निर्धारण से स्त्री द्वेष और लैंगिक असमानता बढ़ती है और इसे रोका जाना चाहिए। चलिए जानते हैं कि आखिर किस मामले को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनवाई की है।

जानें क्या है पूरा मामला?

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यह पूरा मामला पूरा साल 2018 में डिफेंस कॉलोनी में थाने में अधिनियम 1994 के तहत हुई प्राथमिकी को रद्द करने से जुड़ा हुआ है। इस मामले में नकली रोगी का अवैध तरीके से लैंगिक परीक्षण करने की पुष्टि होने पर डॉक्टर मनोज कृष्ण अहूजा समेत अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। मामला दर्ज होने के बाद साकेत कोर्ट ने 2019 में आरोपित को पेश करने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ता मनोज ने दलील दी थी कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है, क्योंकि उचित प्राधिकारी या अधिकारी द्वारा शिकायत नहीं दी गई थी। इस मामले को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हुई ।

'सुरक्षित गर्भ की आवश्यकता है'

हमारे देश ने लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में लोगों के बीच जागरूकता फैलाई जाती है लेकिन हाल ही में गर्भपात से जुड़े एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि फीमेल भ्रूण के लिए सुरक्षित गर्भ की आवश्यकता बहुत जरूरी है। गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन का निषेध) अधिनियम 1994 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कई दिशा-निर्देश पारित करते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि लिंग-निर्धारण आधारित गर्भपात लैंगिक असमानताओं को बनाए रखने का और बढ़ावा देने का तरीका बताया है।(अमिताभ बच्चन की पोती आराध्या ने हाई कोर्ट में दायर की याचिका, जानें आखिर क्या है पूरा मामला)अदालत ने यह भी कहा कि भ्रूण की लैंगिक जानकारी तक पहुंच का प्रतिबंध सीधे तौर पर स्त्री की समस्या से संबंधित है, जो भारत समेत विश्व स्तर पर भी सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाओं को प्रभावित करता है।

इसके अलावा अदालत ने कहा कि भ्रूण की लैंगिक जानकारी को नियंत्रित करने का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और उनके अजन्मे बच्चे की रक्षा करना है। अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत की गई प्राथमिकी को रद्द करने की एक व्यक्ति की मांग को भी ठुकरा दिया है।

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दिल्ली हाई कोर्ट ने दिए ये दिशा निर्देश

अदालत के अनुसार भारत ने लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में काफी प्रगति की है, फिर भी लिंग निर्धारण की प्राथमिकता अभी भी मौजूद है। विभिन्न प्रयासों के बावजूद लैंगिक भेदभाव को पूरी तरह खत्म करना न सिर्फ चुनौतीपूर्ण बन गया है।

हाई कोर्टने पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक पीसीपीएनडीटी एक्ट 1994 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। ('शादी का मतलब यह नहीं कि फिजिकल रिलेशन के लिए पत्नी हमेशा तैयार हो')इसके साथ-साथ दिल्ली हाई कोर्ट कानूनी सेवा समिति और विधि कालेज अपनी कानूनी सहायता समितियों के माध्यम से लिंग निर्धारण से जुड़े अनिवार्य प्रविधान के बारे में लोगों को शिक्षित और जागरूक करें।

दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा निर्देश से हमारे देश में लोगों के बीच लैंगिक असमानता कम होगी और भ्रूण हत्या कम होगी। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें और कमेंट करके अपनी राय बताएं। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।

image credit- twitter

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