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हम सिखाते हैं बच्चों को लड़के-लड़कियों में अंतर, यही हमारी गलती होती है- दीपशिखा

दीपशिखा ने हमें बताया कि कैसे एक औरत ही औरत को नीचा दिखाती है और कैसे हम ही जाने अनजाने में अपने बच्चों को ये समझाते हैं कि लड़के और लड़कियों में बहुत अंतर हैं।
Editorial
Updated:- 2019-03-20, 13:10 IST

दीपशिखा ने हमें बताया कि कैसे एक औरत ही औरत को नीचा दिखाती है और कैसे हम ही जाने अनजाने में अपने बच्चों को ये समझाते हैं कि लड़के और लड़कियों में बहुत अंतर हैं। आइए जानते हैं दीपशिखा ने और क्या क्या कहा-

लड़के और लड़कियों के बीच के अंतर को कोई कम कर सकता है तो, वो खुद हम ही हैं। हमें ही बदलाव लाने होंगे और दूसरों को बताने से पहले खुद को समझाना होगा कि हम सभी एक हैं, ऐसा कहना है टीवी एक्ट्रेस दीपशिखा का। बता दें कि दीपशिखा जल्द ही शो ‘मैं भी अर्धांगिनी’ में दिखाई देंगी और जब हमने उनसे पूछा कि क्या आप अर्धांगिनी में कितना विश्वास करती हैं तो उन्होंने हमें बताया कि हर औरत अर्धांगिनी में विश्वास करती है पर, आदमी ऐसा नहीं करते।

दीपशिखा ने हमें बताया कि कैसे एक औरत ही औरत को नीचा दिखाती है और कैसे हम ही जाने अनजाने में अपने बच्चों को ये समझाते हैं कि लड़के और लड़कियों में बहुत अंतर हैं। आइए जानते हैं दीपशिखा ने और क्या क्या कहा-

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अगर पति ही ना चाहे तो पत्नी अर्धांगिनी कैसे बनेगी

दीपशिखा कहती हैं कि मैं ये कहना चाहूंगी कि अर्धांगिनी बनाता कौन है? जितनी ज़िम्मेदारी औरत की है तो उतनी ही ज़िम्मेदारी आदमी की भी है। अगर वो आदमी अपनी औरत को इज़्ज़त नहीं देगा तो वो अर्धांगिनी कैसे बनेगी। वो हमेशा अपने पति के साथ साया बन कर खड़े रहना चाहती हैं। लेकिन पति को ही नहीं चाहिए कि वो रहे तो वो कब तक अकेले उसका हाथ पकड़ने की कोशिश करती रहेगी। ये बड़ी हिपोक्रेट सोसाइटी है। मेल डोमिनेटिंग सोसाइटी है, एक तरफ हम कन्धे से कन्धा मिलाने की, 21वीं सदी की बात करते हैं, दूसरी तरफ हम औरतों को कहते हैं तुम चुप बैठो, किचन में जाओ, तुम ये मत बोलो, ये आज भी होता।

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क्या शॉर्ट कपड़े पहन हैं तो वो संस्कारी नहीं है?

दीपशिखा ने आगे कहा कि आज भी औरतों को घूंघट में रहने के लिए कहा जाता है और इसे कुछ मर्द कहते हैं कि ये हमारे संस्कार है। तो जो औरतें घूंघट नहीं पहनती तो क्या वो संस्कारी नहीं है? जो काम करती हैं संस्कारी नहीं है? शॉर्ट कपड़े पहनने का मतलब क्या वो संस्कारी नहीं है? आप जज करते हैं, औरतें ही औरतों को जज करती है। औरतें ऐसी भी हैं जो कहती हैं कि मेरी बेटी ठीक है पर मेरी बहू सही नहीं है। वो भी तो किसी की बेटी है, ये क्यों भूल जाते हैं? नियम कानून हमेशा दूसरों के लिए होते हैं, अपने लिए नहीं। आप अगर मुझसे उम्मीद करते हैं कि मैं देवी बनूं तो पहले तुम भी तो देवता बन जाओ।

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लड़का हो या लड़की बच्चे एक ही इमोशन्स में बड़े होते हैं, अंतर हम उन्हें समझाते है

दीपशिखा कहती हैं कि मैं सिंगल पेरेंट हूं और मेरे बेटे ने देखा है कि उसकी मां कितनी मेहनत करती है, वो हमेशा औरतों की रिस्पेक्ट करता है और यह बात एक मां ही अपने बेटे को समझा सकती है। वो जानता है कि एक औरत को पैसे वैसे नहीं रिस्पेक्ट चाहिए होती है। मैं उसे जो समझाऊंगी वो वही समझेगा। पहले मुझे लगता था आदमी ख़राब होते हैं लेकिन जब से मेरा बेटा हुआ है तो मुझे समझ में आया है कि लड़का लड़की एक जैसे ही बड़े होते हैं, एक ही इमोशन्स के साथ। लेकिन हम घर वाले ही उन्हें अंतर समझाते हैं कि बेटा है तो कुछ भी कर सकता है, बेटी है तो नहीं कर सकती। ये हम हैं जो उन्हें अंतर बताते हैं और यही हमारी सबसे बड़ी ग़लती होती है।

 

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