Chandrayaan 3: चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के साथ भारत ने एक नया इतिहास रच दिया है। गर्व की बात यह है कि भारत ऐसा करने वाला दुनिया का एकमात्र देश है। अब आपके दिमाग में भी यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर इस मिशन को पूरा करने में कितना खर्च हुआ होगा। खैर बता दें कि ISRO ने इस मिशन को काफी कम खर्च में बनाया है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको इस मिशन के खर्च से जुड़ी सभी बातें बताने वाले हैं।
कहा जा रहा है कि चंद्रयान-3 का खर्च बाकी के 2 मिशन से भी कम है। इतना ही नहीं, कई लोग इस मिशन की तुलना फिल्म आदिपुरुष से भी कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि आदिपुरुष से भी मिशन कम खर्च में किया गया है। चलिए जानते हैं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के इस मिशन की कुल लागत कितनी हैं।
पूर्व इसरो प्रमुख के सिवन ने कहा था कि चंद्रयान-3 को करीब 615 करोड़ की लागत में तैयार किया गया है। वहीं फिल्म आदिपुरुष की बात करें तो रिपोर्ट के अनुसार इस फिल्म को बनने में करीब 700 करोड़ रुपये की लागत लगी हैं।
22 जुलाई, 2019 को चंद्रयान-2 को लॉन्च किया गया था। हालांकि यह मिशन अंतिम समय पर सही तरीके से लैड ना होने के कारण सफल नहीं हो सका था। उस दौरान इस मिशन को कंपलीट कपरे के लिए कुल 978 करोड़ रुपये दिए गए थे। बता दें कि यह बाकी के मिशन के मुकाबले चंद्रयान-3 का बजट सबसे कम था।
चंद्रयान-1 के बजट की बात करें तो यह करीब 1,979 करोड़ या लगभग 2,000 करोड़ रुपये खर्च में बनकर तैयार हुआ था। इस मिशन के साथ ही इसरो चांद की सतह पर पहुंचने वाला पांचवां नेशनल स्पेस एजेंसी बन गया था।
अगर आप चंद्रयान-3 की तुलना लूना से करेंगे तो आपको समझ आ जाएगा कि आखिर कैसे चंद्रयान-3 को कम बजट में तैयार किया गया था। रूस ने लूना-25 को पुश देने के लिए एक अतिरिक्त बूस्टर का इस्तेमाल किया। जिसके लिए उन्हें भारी खर्च करना पड़ा था। इतना ही नहीं, इसकी माध्यम से धे ट्रांस-लूनर इंसर्शन (टीएलआई) चरण में आगे बढ़ाया जा सका। बात भारत की करें तो भारत ने इसमें अपने काफी पैसे बचाएं है जिसके कारण ही भारत को चांद तक पहुंचने पर काफी समय लगा था। भारत ने टीएलआई से पहले कई बार पृथ्वी के चक्कर लगाने पड़े जिसके बाद भारत आसानी से कम खर्च में चांद तक पहुंचा था।
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इसरो रॉकेट को तैयार करते समय हर छोटी चीजों का ध्यान रखते है ताकि रॉकेट ना तो ज्यादा बड़ा हो ना ही उनका वजन ज्यादा हो। इसरो के पास एक "मॉड्यूलर दर्शन" है, "हम अगले रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण के लिए विरासत के साथ सिस्टम और संरचनाओं का उपयोग करते हैं। जिसकी मदद से इसरो काफी अधिक पैसे बचाते हैं।
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इसरो का कहना है कि इसरो रॉकेट के परीक्षण के दौरान काफी ज्यादा पैसे बचाते हैं। रोपीय लोग एक मोटर या इंजन को क्वालीफाई करने के लिए लगभग आठ परीक्षण करते हैं, हालांकि हम केवल 2 परीक्षण में समझ जाते हैं कि यह मोटर या इंजन सही है या नहीं। इसके जरिए भी हम करोड़ो रुपये बचाते हैं।
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