भारत सहित लगभग सभी देशों में कई पेशों के लिए तरह-तरह के ड्रेस कोड निर्धारित है। जैसे- वकीलों के लिए काला कोट, पुलिस के लिए खाकी वर्दी और डॉक्टर के लिए सफेद कोट बने हुए हैं। इसके साथ-साथ हमारे देश में एक धर्म ऐसा भी है, जिसमें महिलाएं कितनी भी तैयार हो जाएं, ऊपर से एक नकाब या बुर्का पहनती ही हैं। इसी तरह हाल ही में, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान एक महिला वकील ने धर्म का हवाला देते हुए नकाब पहनकर वकालत करने पहुंची थी। इसके बाद जज ने उनकी बात सुनने से इनकार कर दिया। ऐसे में, अब सवाल ये उठता है कि क्या कोई महिला अपने धर्म को मानते हुए कोर्ट में नकाब पहनकर वकालत कर सकती है? चलिए इससे जुड़े कोर्ट के नियम के बारे में जान लेते हैं। इस मामले पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया का नियम क्या कहता है।
रजिस्ट्रार की रिपोर्ट जांचने के बाद हाईकोर्ट के जज खजूरिया काजमी ने इस मामले के बारे में बताया। उन्होंने अपने आदेश में लिखा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) का कहना है कि कोर्ट में कोई भी महिला वकील चेहरे पर नकाब पहनकर या बुर्का में वकालत नहीं कर सकती हैं।
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बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के अध्याय IV (भाग VI) में अधिवक्ताओं के लिए निर्धारित ड्रेस कोड बताया गया है। इसमें पुरुष और महिला अधिवक्ताओं के लिए ड्रेस कोड में शामिल हैं। कोर्ट का कहना है, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों में कहीं भी यह जिक्र नहीं कहा गया है कि कोर्ट में महिला वकील की यह पोशाक स्वीकार्य हो सकती है।
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अदालत ने कहा कि इन नियमों के तहत, महिला वकील काली पूरी आस्तीन वाली जैकेट या ब्लाउज, सफेद बैंड, साड़ी या अन्य पारंपरिक पोशाक के साथ-साथ काला कोट भी पहन सकती हैं, लेकिन फेस कवरिंग या हिजाब का कहीं कोई उल्लेख या प्रावधान नहीं है।
इसके अलावा निचले परिधानों में साड़ी, लंबी स्कर्ट शामिल हैं। डिजाइन, फ्लेयर्स, चूड़ीदार-कुर्ता, या पंजाबी पोशाक, सलवार-कुर्ता, सफेद या काले रंग में दुपट्टे के साथ या उसके बिना भी अलाउड है। साथ ही, पारंपरिक पोशाक भी पहनी जा सकती है। बस उसके साथ महिलाओं के पास काला कोट और बैंड होना चाहिए।
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