आमतौर पर, मानसून के मौसम में हमें अक्सर खबरों में सुनने को मिलता है कि तेज बारिश और बिजली की वजह से एयरपोर्ट्स पर फ्लाइट्स देरी से चल रही हैं या कैंसिल कर दी गई हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि प्लेन आसमान में उड़ता है और बारिश के समय तेज बिजली भी चमकती है। ऐसे में अगर बिजली फ्लाइट पर गिर जाए, तो क्या होता है और क्या उसमें बैठे यात्रियों की जान को खतरा हो सकता है?
आपको बता दें कि केवल बिजली गिरने से फ्लाइट्स को खतरा नहीं होता है, बल्कि विमान तेज तूफानों, भारी बारिश, ओलों या हवा के झटकों वाले इलाकों से भी होकर गुजरते हैं। इसका मतलब है कि बिजली गिरने से प्लेन और उसके अंदर बैठे यात्रियों को तुरंत परेशानी नहीं हो सकती है, लेकिन अगर उसके साथ कुछ खतरनाक परिस्थितियां जुड़ जाएं, तो दुर्घटना का जोखिम बढ़ सकता है।
आज हम आपको इस आर्टिकल में बताने वाले हैं कि प्लेन पर बिजली कैसे गिरती है, क्या इसमें बैठे यात्रियों को नुकसान होता है और किन हालात में बिजली विमान के लिए वाकई खतरनाक बन सकती है?
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प्लेन पर बिजली गिरती है, तो क्या होता है?
जी हां, मानसून के मौसम में विमान के ऊपर बिजली गिरना आम बात होती है। लेकिन इससे किसी की जान को नुकसान नहीं पहुंचता है। जब प्लेन के ऊपर बिजली गिरती है, तो उसके अंदर बैठे यात्रियों को तेज आवाज और हल्की चमक दिखाई देती है। लेकिन विमान के अंदर किसी तरह की परेशानी पैदा नहीं होती है।
वहीं, आजकल आधुनिक हवाई जहाजों को इस तरह से डिजायन किया जा रहा है कि वे बिजली गिरने पर अंदर बैठे यात्रियों को सुरक्षित बचा लेते हैं। दरअसल, विमान के बाहरी ढांचे में लगी धातु की परत बिजली को सीधे प्लेन से होकर निकल जाने देती है, जिससे यात्रियों को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है।
विमान फैराडे पिंजरे की तरह काम करते हैं
हवाई जहाज को इस तरह से तैयार किया जाता है कि अगर उन पर बिजली गिरे, तो भी वह अंदर तक नहीं पहुंच पाए। इसलिए विमान का बाहरी ढांचा फैराडे पिंजरे जैसा काम करता है।
फैराडे पिंजरा एक ऐसा ढांचा होता है, जो बिजली को अपने ऊपर बहने देता है, लेकिन अंदर बिजली को जाने नहीं देता है। जब बिजली विमान पर गिरती है, तो वह प्लेन की नाक, विंग्स और पीछे की पूंछ पर लगती है। वहां बिजली विमान के बाहरी हिस्से से टकराकर बाहर निकल जाती है। बिजली अंदर बैठे लोगों तक पहुंच नहीं पाती है। आपको बता दें कि आजकल हवाई जहाज को हल्के कंपोजिट मैटेरियल्स से तैयार किया जा रहा है और उनमें खास तरह की तांबे की जालियां लगाई जा रही हैं, जो बिजली को अंदर पहुंचने से रोकती हैं।
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विमान को बिजली से बचाने के लिए कई परत की सुरक्षा होती है
आजकल आधुनिक हवाई जहाजों पर बिजली गिरने पर कोई असर नहीं होता है। प्लेन में कई तरह की सुरक्षा परतें होती हैं।
- धातु का बाहरी ढांचा (Metal Shell): प्लेन की बाहरी बॉडी को आम तौर पर एल्युमिनियम या किसी और धातु से तैयार किया जाता है। जब बिजली गिरती है, तो यह धातु पर होकर बह जाती है।
- बिजली मोड़ने वाले उपकरण (Lightning Diverters): प्लेन के कुछ हिस्से धातु के नहीं होते हैं, जैसे विमान की नाक का हिस्सा, जहां रडार होता है। इस जगह पर बिजली को दूसरी दिशा में मोड़ने वाले 'डायवर्टर्स' लगाए जाते हैं, ताकि वे बिजली को विमान से दूर कर दें।
- सर्ज प्रोटेक्टर और ट्रांसऑर्ब (Surge Protectors): जब प्लेन के ऊपर बिजली गिरती है, तो कभी-कभी इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में तेज़ झटका लग सकता है। ऐसे में सर्ज प्रोटेक्टर और ट्रांसऑर्ब डिवाइस गिरने वाली बिजली से ऑनबोर्ड कंप्यूटर, नेविगेशन और संचार सिस्टम को खराब होने से बचाते हैं।
- मजबूत इलेक्ट्रॉनिक्स और बैकअप (Strong Electronics & Backup): प्लेन में कई इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम मौजूद होते हैं और उन्हें ऐसे तैयार किया जाता है कि थोड़ी दिक्कत होने पर भी वे खुद ही रीसेट होकर दोबारा काम करने लगें। इसे 'फेल-सेफ डिजायन' कहा जाता है, जिसमें ऐसा सिस्टम तैयार किया जाता है जो कभी भी पूरी तरह से फेल नहीं होता है।
पायलट की ट्रेनिंग और बिजली गिरने के बाद की पूरी जांच प्रक्रिया
- फ्लाइट के उड़ान भरने से पहले पायलट मौसम की पूरी जांच करते हैं। अगर उन्हें लगता है कि आगे तूफान, बारिश या बिजली गिर सकती है, तो वे तुरंत फ्लाइट को डिले करवा सकते हैं। वहीं, अगर पायलट प्लेन उड़ा रहा है और उसे लगता है कि आगे तेज तूफान, बारिश या बिजली गिर सकती है, तो वह रास्ता बदल सकता है।
- अगर प्लेन पर बिजली गिर भी जाए, तो पायलट और को-पायलट तुरंत नेविगेशन सिस्टम और रेडियो को चेक करते हैं कि कहीं कोई दिक्कत तो नहीं आ गई है। अक्सर सुरक्षा के लिहाज से प्लेन को पास के एयरपोर्ट पर लैंड करा दिया जाता है।
- अगर प्लेन के ऊपर बिजली गिरी है, तो अगली उड़ान पर भेजने जाने से पहले उस प्लेन की पूरी तरह से जांच की जाती है। उसकी बाहरी बॉडी और धातु परतों को चेक किया जाता है, उसके सारे इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को चेक किया जाता है। विमान के टेल, विंग और पूरे ढाँचे की जांच की जाती है। यह जांच प्रशिक्षित इंजीनियरिंग टीम द्वारा की जाती है।
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