देश की पहली फुल टाइम महिला वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन से देश की महिलाएं बहुत सी उम्मीदें लगाकर बैठी हैं। देश के खजाने की चाबी एक महिला के हाथ में हो तो यकीनन उम्मीदें बढ़ ही जाती हैं। बजट 2019 में हाउस वाइफ और वर्किंग वुमेन दोनों की ही एक सबसे बड़ी चिंता है जिसे दूर करना मोदी सरकार और निर्मला सीतारमन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। 1300 महिलाओं पर किए एक सर्वे के मुताबिक उनकी सबसे बड़ी जरूरत शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले खर्च को कम करना है। ये सर्वे ऐसी महिलाओं पर किया गया था जिनके एक या दो बच्चे हैं। केजी से लेकर कॉलेज तक की भागदौड़ में जहां बच्चे की मेहनत पर फर्क पड़ता है वहीं दूसरी ओर इसका सीधा असर महिलाओं पर भी जाता है। बच्चों की स्कूल फीस, एडमीशन, यूनिफॉर्म, किताबें, बस/ऑटो के खर्च से लेकर उनकी पॉकेटमनी जो स्कूल में खर्च होती है उस तक का बजट बनाना बहुत मुश्किल काम है। अगर एक जगह स्कूल फीस बढ़ रही है तो दूसरी जगह से कटौती करने की हड़बड़ी समझना किसी और के बस की बात नहीं। अब बच्चों के भविष्य से तो खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।
दिल्ली में रहने वाली पूजा सिन्हा भी इसी बात को लेकर परेशान हैं। दो बेटियों की मां पूजा की समस्या ये है कि उनके बच्चों की फीस और शिक्षा से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने में ही घर का बजट बिगड़ जाता है। पूजा की एक बेटी 12वीं में है और दूसरी 9वीं में। वो बताती हैं कि 3 साल पहले जहां बड़ी की ट्यूशन फीस 2500 रुपए जाती थी अब उसी टीचर के पास वही सब्जेक्ट पढ़ रही छोटी बेटी के लिए उन्हें 5000 देने होते हैं। NCERT की किताबें जो कोर्स से लिए जरूरी होती हैं वो तो अलग, साथ ही साथ स्कूल वाले भी स्टेशनरी, स्कूल डे, स्पोर्ट्स डे, तीन तरह की यूनिफॉर्म आदि को लेकर बहुत ज्यादा चार्ज करते हैं। किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना हो तो आधी तनख्वाह इसी में चली जाती है।
ये कोई नई बात नहीं है। आते-जाते मेट्रो में, किसी कॉलोनी की बालकनी में, किसी सब्जी मंडी में, किसी ब्यूटी पार्लर में, किसी शादी-ब्याह में ऐसी हज़ारों महिलाएं मिल जाएंगी जिनकी चिंता यही है। पर इस समस्या को हल करने के लिए निर्मला सीतारमन क्या कर सकती हैं? 2018-19 में जो बजट अरुण जेटली ने पेश किया था वो 850 बिलियन रुपए था और इस साल के अंतरीम बजट में 10% ज्यादा पैसा खर्च करने की घोषणा हुई थी यानि 938 बिलियन सिर्फ स्कूल और अन्य शिक्षा प्रोग्राम्स पर ही खर्च होंगे, लेकिन इस बजट में महिलाओं की उम्मीदें क्या हैं?
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स्कूल और कॉलेज फीस पर किसी तरह की कटौती। अगर कुछ नहीं तो कम से कम 8वीं कक्षा तक स्कूल फीस में एक निश्चित कैप लगना चाहिए जो प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को बंद कर सके।
किताबों और अन्य स्कूल एक्सेसरीज को लेकर समस्याएं बहुत हैं। स्कूलों की ऐसी एक्सेसरीज जैसे स्पोर्ट्स डे के लिए अलग यूनिफॉर्म, पिकनिक पर जाने का ड्रेस कोड, सिलेबस के अलावा एक्स्ट्रा किताबों का खर्च आदि इसपर कैप लगाने की कोई स्कीम लागू की जा सकती है। सरकार कम से कम किताबों पर ही कोई सब्सिडी दे सकती है।
2019 के अंतरीम बजट में नैशनल क्रच स्कीम की बात की गई थी जिसमें 200 करोड़ की जगह सिर्फ 128 करोड़ रुपए का आवंटन था। ऐसे में महिलाएं खुद को उपेक्षित महसूस कर रही हैं। ये स्कीम कई वर्किंग वुमेन के काम की थी।
सरकार ऐसी कोई स्कीम लागू कर सकती है जिसमें स्कूल और कॉलेज की कैंटीन में सब्सिडी मिले ताकी बच्चों का खाने-पीने पर खर्च कम हो सके।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर बच्चे और टीचर को स्मार्ट डिवास देने की बात की गई थी, लेकिन वो अभी तक नहीं हुआ। 2019-20 के बजट में ये हो सकता है। इसके अलावा, जिन माता-पिता की आय 5 लाख से कम है उनके बच्चों के लिए 20 हज़ार प्रति एडमीशन (हायर एजुकेशन) देने की बात थी जो इस बजट में लाई जा सकती है।
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हर साल बजट में टीचर एजुकेशन और ट्रेनिंग सिस्टम को लेकर भी प्रावधान होते हैं। ऐसे में उम्मीद ये की जा सकती है कि इस बार ये बजट बढ़ेगा। बच्चों के भविष्य बनाने में शिक्षक का योगदान अहम होता है और ऐसे में उनपर बजट का खर्च भी जरूरी है।
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