हिंदू विवाह में कई रीति-रिवाज होते हैं। खासतौर पर दुल्हन को कुछ ज्यादा ही रीति-रिवाज निभाने पड़ते हैं। मगर कुछ रीति-रिवाज ऐसे होते हैं, जिनका वास्तविक अर्थ भी किसी को नहीं पता होता है। बस उन्हें सदियों से परंपरा के नाम पर निभाया जा रहा है।
ऐसा ही एक रिवाज है नई-नई शादी के बाद दुल्हन का लाल चूड़ियों के साथ काली चूड़ियां पहनना। देखा जाए तो हिंदू धर्म में काले रंग को बेहद अशुभ माना गया है, खासतौर पर अगर बात शादी-विवाह के मौके की हो तो काले रंग को दुल्हन से कोसो दूर रखा जाता है। मगर कुछ स्थानों पर दुल्हन को काले रंग की चूड़ियां भी पहने देखा जाता है।
आज हम आपको इस अजीबो-गरीब रिवाज के बारे में बताएंगे कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है और इसका महत्व क्या है। इस विषय में हमारी बात पंडित विनोद सोनी जी से हुई है। वह कहते हैं, 'बेशक काले रंग को शुभ अवसरों में इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मगर यह अशुभ नहीं होता है। काला रंग तो नकारात्मकता को अपने अंदर समाहित कर लेता है। ऐसे में इसे शुभ अवसरों पर इस्तेमाल तो किया जा सकता है, मगर ज्योतिष शास्त्र में इसके कुछ तरीके बताए गए हैं। दुल्हन को भी काले रंग की चूड़ियां पहनने का उद्देश्य नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करना ही होता है।'
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उत्तर भारत में आपको कई स्थान पर यह रिवाज देखने को मिलेगा। शादी के बाद दुल्हन को कुछ दिनों तक लाल चूड़ियों के आगे-पीछे या बीच में एक काले रंग की चूड़ी पहनाई जाती है। इसका महत्व यह है कि दुल्हन के सुहाग को किसी की बुरी नजर न लगे। यह एक तरह का टोटका होता है।
कई स्थानों पर दुल्हन को लोहे का कड़ा या फिर लोहे की अंगूठी भी पहनाई जाती है। ऐसा कहते हैं कि लोहा नकारात्मकता को दूर करता है, क्योंकि यह शनि का प्रतीक होता है। काला और नीला रंग भी शनि का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि, पूजा-पाठ के मौकों में इस रंग को इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मगर यह दोनों ही रंग अशुभ नहीं होते हैं।
कांच को भी हिंदू धर्म में बहुत शुभ माना गया है। इसलिए अगर काले रंग की चूड़ी पहननी है तो वह कांच की होनी चाहिए। मेटल या प्लास्टिक की नहीं होनी चाहिए।
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काले रंग जहां भी होता है, वह अपने अंदर नकारात्मकता को समाहित कर लेता है। मगर काले रंग का गुण होता है कि वह हर तरह की एनर्जी को अपने अंदर समाहित करता है। ऐसे में नकारात्मकता के साथ-साथ यह सकारात्मक ऊर्जा (सकारात्मक ऊर्जा के उपाय) को भी अपने अंदर समा लेता है। इस तरह से काला रंग धारण करना किसी भी मायने में अशुभ नहीं होता है।
काले रंग की चूड़ी नई दुल्हन लगभग 6 महीने तक पहनती हैं। इन 6 महीनों में हर 10 दिन में उन्हें अपनी चूड़ी बदलनी होती है। यदि चूड़ी बदलने से पूर्व ही वह टूट जाए, तो समझ लें कोई नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो गई है।
काली चूड़ी बदलने के बाद आपको पुरानी काली चूड़ी किसी और महिला को पहनने के लिए नहीं देनी चाहिए, बल्कि आपको पुरानी चूड़ियों को किसी पवित्र नदी में सिरवा देना चाहिए।
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