भाईदूज इस साल 3 नवंबर, दिन रविवार को पड़ रही है। भाई दूज के दिन बहन अपने भाई को तिलक करती है और उसकी लंबी उम्र एवं उसकी सुख-समृद्धि की कामना करती है। वहीं, भाई बहन को हमेशा सुखी रखने और बहन पर भाई की छाया बनाये रखने का वचन देता है। भाई दूज के दी जहां एक ओर तिलक करने की परंपरा है तो वहीं, दूसरी ओर इस दिन भाई बहन साथ में बैठकर कथा भी पढ़ते या सुनते हैं। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि भाई दूज के दिन बिना व्रत कथा पढ़े यह पर्व संपन्न नहीं होता है और तिलक पूजन भी अपूर्ण माना जाता है। ऐसे में आइये जानते हैं भाई दूज की व्रत कथा।
पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव की तीन संतान थीं, शनि देव, यमराज और यमुना। पिता से विचारों में मतभेद और पिता द्वारा अपनी माता के अपमान के बाद जहां एक ओर शनिदेव ने सूर्य लोक छोड़ दिया था और अपने भाई-बहन से भी दूरी बना ली थी।
वहीं, दूसरी ओर यम देव यानी कि यमराज को अपनी बहन यमुना से बहुत प्रेम था। एक दिन सूर्य देव को भगावन विष्णु ने बताया कि द्वापरयुग में उन्हें कृष्ण अवतार में अपनी कई लीलाओं को रचाने के लिए यमुना की आवश्यकता पड़ेगी तब यमुना को पृथ्वी पर आना होगा।
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यह सुन सूर्य देव ने यमुना और यम के साथ यह बात साझा करते हुए उन्हें कृष्ण भक्ति का मार्ग सुझाया। हालांकि कृष्ण अवतार के कुछ समय पहले ही यमुना को पृथ्वी पर आना पड़ा और वह अपने भाई यमराज से अलग हो गईं। कई वर्षों तक यमुना यम से नहीं मिलीं।
एक दिन यमुना ने अपने भाई यमराज को मिलने का आगाह करते हुएभोज का आमंत्रण दिया। कुछ समय बाद यमराज यमुना सेमिलने भी पहुंचे। जिस दिन यमराज यमुना से उनके स्थान मिलने गए थे उस दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि थी।
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यमुना ने यमराज के लिए कई तरह के पकवान और कई स्वादिष्ट व्यंजन बनाएं। यमराज ने बहन के मन में अपने लिए यह प्रेम देखा तो उन्होंने यमुना को दो वरदान दिए। पहला वरदान की वह हर साल इस तिथि पर उनसे मिलने आएंगे चाहे वो कहीं पर भी हों।
वहीं, दूसरा वरदान यह दिया कि जो भी कोई भाई इस थती पर अपनी बहन से मिलने आएगा फिर चाहे बहन कहीं हो या भाई खुद कहीं हो, उन भाई-बहनों का रिश्ता हमेशा अखंड और सुख-समृद्धि से भरा रहेगा। साथ ही, इस दिन यमुना में स्नान करने से आरोग्य की प्राप्ति होगी।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से यह जान सकते हैं कि आखिर क्या है भाई दूज की व्रत कथा जिसे सुने या पढ़े बिना अधूरा माना जाता है यह पर्व।
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