आरती के समय मंदिरों में शंख बजाना बहुत जरूरी होता है। घरों में भी शंख रखना बेहद आम बात है। प्राचीन काल में भी युद्ध की घोषणा या किसी शुभ काम की शुरुआत शंखनाद से ही की जाती थी। कहीं ना कहीं यह प्रथा हम आज भी देखी जा सकती हैं। लेकिन क्या आप जानती हैं शंख को रखना या शंखनाद सुनना इतना शुभ क्यों माना जाता है। तो आइए जानें इसके पीछे के कारणों के बारे में।
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शंखनाद का महत्व
सनातन धर्म में शंख के कई चमत्कारी गुणों का उल्लेख किया गया है। भारतीय परंपरा में शंख को समृद्धि, विजय, यश और लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब भी किसी शुभ कार्य की शुरुआत करनी हो तो उससे पहले किया गया शंखनाद शुभ फलदायी साबित होता है।
शंख की उत्पत्ति कैसे हुई
शंख के उत्पत्ति के बारे में यह मान्यता है की सर्वप्रथम इसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्र मंथन में जिन चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई थी उनमें से शंख भी एक था, जिसे भगवान विष्णु ने अपने कर कमलों में धारण किया। इसके अलावा विष्णु पुराण के अनुसार यह भी माना जाता है कि भगवान विष्णु की अर्धांगिनी और धन की देवी माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं और शंख उनका भाई है। इसलिए यह भी मान्यता है की जहां शंख होता है लक्ष्मी भी वहीं वास करती हैं।
पूजाघर में शंख रखने का महत्व
शंख के विषय में यह मान्यता है की इसे घर में रखने से घर की सीमा के भीतर कोई भी अनिष्ट कार्य नहीं हो पाता और परिवार के लोगों का जीवन भी बाधाओं से दूर रहता है। इतना ही नहीं, यह भी मान्यता है की ऐसा करने से सौभाग्य में भी वृद्धि होती है।
धार्मिक कार्य
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार तो बिना शंखनाद के कोई भी धार्मिक कार्य पूरा नहीं हो सकता। इसकी आवाज से प्रेत आत्माओं और पिशाचों से मुक्ति भी मिलती है।
शंखों के प्रकार
शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी से जुड़े पूजा विधान भी अलग-अलग होते हैं। उच्चतम श्रेणी के शंख मालदीव, लक्षद्वीप, भारत, श्रीलंका, कैलाश मानसरोवर में पाए जाते हैं। हिन्दू पुराणों के अनुसार अगर अनुष्ठानों में शंख का इस्तेमाल सही तरीके से किया जाए तो यह साधक की हर मनोकामना को पूरा कर सकते हैं। पुराणों में तो यह भी लिखा है कि कोई मूक व्यक्ति नित्य प्रति शंख बजाए तो बोलने की शक्ति भी प्राप्त कर सकता है।
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शंख और उसकी आकृति
शंख को उसकी आकृति के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा गया गया है, जिस शंख को दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है उसे दक्षिणावृति शंख, जिसे बाएं हाथ से पकड़ा जाता है उसे वामावृति शंख और जिस शंख का मुख बीच में से खुला होता है उसे मध्यावृति शंख कहा जाता है। इन तीन मुख्य प्रकार के शंखों के अलावा गोमुखी शंख, लक्ष्मी शंख, गणेश शंख, विष्णु शंख, कामधेनु शंख, कामधेनु शंख, देव शंख, चक्र शंख, गरुण शंख, शनि शंख, राहु शंख आदि भी होते हैं।
Photo courtesy- (Hindi Rasayan, Religious | Spiritual Articles - My Pandit G, Divine Strings, Picdeer, YouTube)
आरती के समय मंदिरों में शंख बजाना बहुत जरूरी होता है। घरों में भी शंख रखना बेहद आम बात है। प्राचीन काल में भी युद्ध की घोषणा या किसी शुभ काम की शुरुआत शंखनाद से ही की जाती थी। कहीं ना कहीं यह प्रथा हम आज भी देखी जा सकती हैं। लेकिन क्या आप जानती हैं शंख को रखना या शंखनाद सुनना इतना शुभ क्यों माना जाता है। तो आइए जानें इसके पीछे के कारणों के बारे में।
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शंखनाद का महत्व
सनातन धर्म में शंख के कई चमत्कारी गुणों का उल्लेख किया गया है। भारतीय परंपरा में शंख को समृद्धि, विजय, यश और लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब भी किसी शुभ कार्य की शुरुआत करनी हो तो उससे पहले किया गया शंखनाद शुभ फलदायी साबित होता है।
शंख की उत्पत्ति कैसे हुई
शंख के उत्पत्ति के बारे में यह मान्यता है की सर्वप्रथम इसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्र मंथन में जिन चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई थी उनमें से शंख भी एक था, जिसे भगवान विष्णु ने अपने कर कमलों में धारण किया। इसके अलावा विष्णु पुराण के अनुसार यह भी माना जाता है कि भगवान विष्णु की अर्धांगिनी और धन की देवी माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं और शंख उनका भाई है। इसलिए यह भी मान्यता है की जहां शंख होता है लक्ष्मी भी वहीं वास करती हैं।
पूजाघर में शंख रखने का महत्व
शंख के विषय में यह मान्यता है की इसे घर में रखने से घर की सीमा के भीतर कोई भी अनिष्ट कार्य नहीं हो पाता और परिवार के लोगों का जीवन भी बाधाओं से दूर रहता है। इतना ही नहीं, यह भी मान्यता है की ऐसा करने से सौभाग्य में भी वृद्धि होती है।
धार्मिक कार्य
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार तो बिना शंखनाद के कोई भी धार्मिक कार्य पूरा नहीं हो सकता। इसकी आवाज से प्रेत आत्माओं और पिशाचों से मुक्ति भी मिलती है।
शंखों के प्रकार
शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी से जुड़े पूजा विधान भी अलग-अलग होते हैं। उच्चतम श्रेणी के शंख मालदीव, लक्षद्वीप, भारत, श्रीलंका, कैलाश मानसरोवर में पाए जाते हैं। हिन्दू पुराणों के अनुसार अगर अनुष्ठानों में शंख का इस्तेमाल सही तरीके से किया जाए तो यह साधक की हर मनोकामना को पूरा कर सकते हैं। पुराणों में तो यह भी लिखा है कि कोई मूक व्यक्ति नित्य प्रति शंख बजाए तो बोलने की शक्ति भी प्राप्त कर सकता है।
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शंख और उसकी आकृति
शंख को उसकी आकृति के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा गया गया है, जिस शंख को दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है उसे दक्षिणावृति शंख, जिसे बाएं हाथ से पकड़ा जाता है उसे वामावृति शंख और जिस शंख का मुख बीच में से खुला होता है उसे मध्यावृति शंख कहा जाता है। इन तीन मुख्य प्रकार के शंखों के अलावा गोमुखी शंख, लक्ष्मी शंख, गणेश शंख, विष्णु शंख, कामधेनु शंख, कामधेनु शंख, देव शंख, चक्र शंख, गरुण शंख, शनि शंख, राहु शंख आदि भी होते हैं।
Photo courtesy- (Hindi Rasayan, Religious | Spiritual Articles - My Pandit G, Divine Strings, Picdeer, YouTube)
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