
शंख की ध्वनि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। किसी भी पूजा-पाठ, आरती या विवाह में शंख का इस्तेमाल आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए किया जाता है। यही नहीं कई बार पूजा की शुरुआत और समापन ही शंख की ध्वनि के साथ किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में शंख बजाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है और ऐसा माना जाता है कि शंख की ध्वनि किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकती है, साथ ही यह वातावरण को शुद्ध भी बनाती है और मन तथा शरीर को ऊर्जावान करती है। वहीं इन सभी मान्यताओं के साथ एक बात यह भी सामने आती है कि क्या महिलाओं को शंख बजाने की मनाही है? क्या यह सच में शास्त्रों में ऐसा बताया गया है या फिर यह केवल अंधविश्वास है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इसके बारे में विस्तार से।
अगर हम शास्त्रों की बात करें तो सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि किसी भी धर्म शास्त्र में महिलाओं के शंख बजाने को लेकर ऐसी कोई भी बात नहीं बताई गई है। किसी भी ग्रंथ या शास्त्र में स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं लिखा है कि महिलाओं को शंख नहीं बजाना चाहिए। इसके बजाय ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और अन्य ग्रंथों में शंख की ध्वनि की महिमा का उल्लेख तो मिलता है, लेकिन इसमें किसी भी अध्याय में इस बात का जिक्र नहीं है कि महिलाओं को शंख नहीं बजाना चाहिए। शंख को हमेशा से ही विष्णु जी का प्रिय और विजय का प्रतीक माना जाता रहा है। यही नहीं महाभारत में भी इस बात का वर्णन है कि युद्ध के आरंभ होने पर शंखनाद किया जाता था, जिससे युद्ध में विजय मिल सके।

ऐसा माना जाता है कि शंख बजाने के लिए फेफड़ों की अच्छी क्षमता की आवश्यकता होती है। प्राचीन समय से ही महिलाएं घर की समृद्धि के लिए कठोर परिश्रम करती आई हैं और वो घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त रहती हैं। इसकी वजह से मान्यता है कि उनकी शारीरिक क्षमता पुरुषों की तुलना में कम होती है। इसी वजह से यह धारणा बनी कि महिलाएं शंख नहीं बजा पाएंगी और आगे चलकर इसे प्रथा से जोड़ा जाने लगा कि महिलाओं को शंख नहीं बजाना चाहिए। वास्तविकता यह है कि ऐसा करना कहीं भी वर्जित नहीं है और महिलाएं भी पुरुषों की ही तरह शंखनाद कर सकती हैं। यही नहीं आज भी कोलकाता की दुर्गा पूजा में महिलाएं हमेशा शंख बजाती हैं और ऐसा कहना गलत है कि महिलाओं को शंख नहीं बजाना चाहिए।
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यदि हम ज्योतिष शास्त्रियों को मानें तो शंख बजाते समय पूरा जोर नाभि के निचले हिस्से पर पड़ता है जिससे महिलाओं के गर्भाशय में जोर पड़ता है। इसी वजह से महिलाओं को शंख बजाने से मन किया जाता है। वहीं यह भी कहा जाता है कि साध्वी स्त्रियां शंखनाद कर सकती हैं। ऐसे ही पूर्वकाल में जब कभी कोई बड़ी आपदा आई है तब महिला ने शंख बजाय है जैसे द्रोपदी ने भी शंख बजाय था। ऐसा माना जाता है कि यदि स्त्रियां शंख बजा भी रही हैं, तो इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि गर्भावस्था के समय भूलकर भी शंख न बजाएं। हालांकि आम दिनों में महिलाएं शंखनाद कर सकती हैं, लेकिन उन्हें नियमित शंख बजाने से बचना चाहिए।
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यदि हम शास्त्रों की मानें तो कहीं भी इस बात की मनाही नहीं है कि महिलाओं को शंख नहीं बजाना चाहिए। वहीं ज्योतिष और आयुर्वेद में महिलाओं के शंख बजाने के लिए अलग-अलग मत मिलते हैं। वैसे इसे शुभता या अशुभता से नहीं जोड़ा जा सकता है बल्कि यह आपकी व्यक्तिगत पसंद होनी चाहिए की आप शंख बजाएं या नहीं।
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