हिंदू धर्म में अनेक व्रत और त्योहारों का अलग महत्त्व है। हर एक व्रत, त्योहार अलग तरीके से विधि विधान के साथ मनाया जाता है और उन सभी व्रतों का फल भी अलग होता है। ऐसे ही व्रतों में से एक है प्रदोष का व्रत। प्रदोष व्रत पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है और इस व्रत के दौरान भगवान शिव का माता पार्वती समेत पूजन करना विशेष फलदायी माना जाता है।
प्रत्येक महीने में दो बार प्रदोष का व्रत रखा जाता है। पहला कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को। इस प्रकार पूरे साल में 24 प्रदोष व्रत होते हैं जिनका अलग ही महत्व होता है। आइए इस लेख में नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से जानें कि आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में कब है त्रयोदशी तिथि और कब प्रदोष व्रत रखना शुभ होगा।
आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त
- इस साल आषाढ़ के महीने में 21 जुलाई, 2021, दिन बुधवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा और बुधवार के दिन पड़ने की वजह से इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
- आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी तिथि आरंभ - 21 जुलाई, बुधवार, सायं 4 बजकर 26 मिनट से
- आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी तिथि समाप्त - 22 जुलाई, बृहस्पतिवार, दोपहर 1 बजकर 32 मिनट पर
- प्रदोष काल 21 जुलाई, 07 बजकर 18 मिनट से रात्रि 09 बजकर 22 मिनट तक
- चूंकि प्रदोष काल 21 जुलाई को प्राप्त हो रहा है इसलिए इसी दिन प्रदोष व्रत रखना लाभकारी होगा।
आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार प्रदोष व्रत का विशेष महत्त्व है। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष व्रत में श्रद्धा पूर्वक भगवान शिव का माता पार्वती समेत पूजन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। खासतौर पर जब यह व्रत बुधवार के दिन होता है तब इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि बुधवार का दिन गणपति (बुधवार के दिन कैसे करें गणपति पूजन) को समर्पित होता है और बुध प्रदोष व्रत में गणेश पूजन भी किया जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से सभी कष्टों का निवारण होने के साथ समस्त पापों से मुक्ति भी मिलती है। यही नहीं, जो स्त्रियां संतान प्राप्ति की इच्छा रखती हैं उनके लिए भी यह व्रत विशेष रूप से फलदायी होता है।
आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष पूजा की विधि
- शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का माता पार्वती के साथ पूजन किया जाता है।
- इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान ध्यान से मुक्त होकर भगवान शिव का पूजन करें।
- शिव जी की मूर्ति या शिवलिंग को स्नान कराएं और चन्दन का लेप लगाएं। माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं।
- पूरे दिन फलाहार या निर्जला व्रत का पालन करें और प्रदोष काल में शिव पूजन करें।
- पूजन के समय एक चौकी पर साफ़ वस्त्र बिछाएं और शिव परिवार की मूर्ति या शिवलिंग चौकी पर रखें।
- भगवान शिव और माता पार्वती के सामने धूप, दीप तथा फूल अर्पित करें।
- पूजन के दौरान प्रदोष व्रत की सम्पूर्ण कथा पढ़ें और शिव चालीसा का पाठ करें।
- शिव जी की आरती करें और भोग अर्पित करें। सभी को भोग वितरित करके स्वयं भी ग्रहण करें।
इस प्रकार प्रदोष व्रत में पूरे श्रद्धा भाव से शिव पूजन करने से कई तरह के विकारों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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