हमारे देश में शिक्षा, खासकर महिला शिक्षा की स्थिति में बीते कुछ दशकों में काफी सुधार आया है। एक समय था जब महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर निकलने तक की अनुमति नहीं थी, और ऐसे में उनके लिए बाहरी दुनिया में कदम रखना और समाज में अपना वर्चस्व स्थापित करना किसी चुनौती से कम नहीं था। ऐसे कठोर सामाजिक परिवेश में भी कुछ ऐसी असाधारण महिलाएं हुईं जिन्होंने तमाम बाधाओं को तोड़कर इतिहास रचा। इन्हीं प्रेरणादायक नामों में से एक हैं- आनंदीबाई गोपालराव जोशी, जिन्हें भारत की पहली महिला डॉक्टर के रूप में जाना जाता है। उनका जीवन न केवल संघर्षों से भरा था, बल्कि अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक भी था। आनंदीबाई का बचपन और शुरुआती जीवन आम महिलाओं से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि उनकी मात्र 9 साल की छोटी उम्र में ही एक 25 वर्षीय व्यक्ति से शादी करवा दी गई थी। यह वह दौर था जब बाल विवाह एक आम सामाजिक बुराई थी, लेकिन इस प्रतिकूल परिस्थिति ने भी आनंदीबाई के सपनों को कुचल नहीं पाया। शादी के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने पति गोपालराव जोशी के सहयोग व प्रोत्साहन से उन्होंने न केवल अपनी पढ़ाई जारी रखी बल्कि समाज के सभी रीति-रिवाजों और रूढ़ियों को धता बताते हुए विदेश जाकर चिकित्सा की डिग्री हासिल की। उनका यह कदम उस समय के लिए अकल्पनीय था और उन्होंने यह साबित कर दिया कि शिक्षा और जुनून की कोई सीमा नहीं होती। आइए जानते हैं आनंदीबाई जोशी के बारे में कुछ और रोचक तथ्य, जो उनके असाधारण जीवन को दर्शाते हैं।
कौन थीं आनंदीबाई जोशी?

आनंदीबाई जोशी पुणे की रहने वाली थीं, जिनका जन्म 1865 में हुआ था। कहा जाता है कि आनंदी जोशी का पूरा नाम आनंदी गोपाल जोशी था क्योंकि इनके पिता का नाम गोपाल जोशी था। इतिहास के अनुसार कहा जाता है कि आनंदी जोशी एक ब्राह्मण परिवार से संबंध रखती थीं और उस वक्त लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता था।
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आनंदीबाई जोशी की भी शादी बहुत कम उम्र में करवा दी गई थी। लेकिन इसके बावजूद आनंदीबाई जोशी ने इतिहास रचा और भारत की पहली महिला डॉक्टर बनकर लोगों के सामने आईं।
9 साल की उम्र में की गोपालराव जोशी से शादी-
आनंदी जोशी की शादी उनके माता-पिता ने 9 साल की उम्र में गोपालराव से शादी करवा दी थी। उस वक्त गोपालराव की उम्र 25 साल थी, लेकिन कहा जाता है कि आनंदी जोशी के पति बहुत ही अच्छे थे, जिन्होंने आनंदी को शादी के बाद भी पढ़ाया और विदेश भेजा।
हालांकि, कहा जाता है कि 14 साल की उम्र में आनंदी मां बन गई थीं, लेकिन कुछ दिन बाद ही उनकी बच्चा मर गया था। इसके बाद, आनंदी ने अपना ध्यान पढ़ाई में लगाया और डॉक्टर बनने का सपना देखा। (हिंदुस्तान की पहली महिला पायलट के बारे में कितना जानते हैं आप)
मात्र 19 साल की उम्र में हासिल की डिग्री-
आज के समय में जहां 19 साल की उम्र में लोग 12 नहीं कर पाते। वहीं सन 1886 में आनंदी ने एमडी की डिग्री हासिल कर इतिहास रचा। हालांकि, इस दौरान आनंदी को कई तरह की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन उनका हौसला कम नहीं हुआ। आनंदी ने पहले मिशनरी स्कूल में दाखिला लिया और पढ़ना-लिखना सिखा।
इसके बाद उनके पति ने आनंदी का एडमिशन पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज, अमेरिका में करवा दिया और अपनी पढ़ाई पूरी की। आनंदी अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस भारत आ गईं और गरीब लोगों की सेवा की। (पहली अशोक चक्र से सम्मानित महिला नीरजा भनोट की कहानी)
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आनंदीबाई की अचीवमेंट्स-
आनंदीबाई न सिर्फ भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं बल्कि वो Google Doodle के साथ सम्मानित किया है। साथ ही, शुक्र ग्रह के एक ग्रह का नाम आनंदी गोपाल भी रखा गया है। आनंदीबाई गोपाल को मेडिसिन के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है। क्योंकि उन्होंने चिकित्सा सेवा को आगे बढ़ाने का भी काम किया था। बता दें कि आनंदी पर बायोग्राफी और फिल्म भी बनाई गई हैं। जी हां, कैरोलिन वेलस ने 1888 में बायोग्राफी भी लिखी थी। साथ ही, आनंदी गोपाल के नाम से दूरदर्शन पर सीरियल भी प्रसारित हुआ।
तो ये थी आनंदीबाई जोशी की कहानी, जिन्होंने डॉक्टर बनकर इतिहास रचा। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
Image Credit- (@Wikipedia)
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