नेहा बैंक में पिछले 3 सालों से कॉल सेंटर का काम कर रही थी। उसे बहुत मुश्किल से यह नौकरी मिली थी, लेकिन इस नौकरी में वो कब तक टिकी रहेगी, उसे उम्मीद नहीं थी। कोई भी क्रेडिट कार्ड वो पिछले 2 महीनों में नहीं बेच पाई थी। हर रोज उसे बॉस से ताने सुनने को मिल रहे थे। वह हर दिन कार्ड बेचने के लिए बहुत कोशिश करती थी, लेकिन कोई भी कार्ड खरीदना ही नहीं चाहता था। उस दिन भी नेहा सुबह-सुबह बिना मन के ऑफिस पहुंच गई थी, तभी बॉस ने कहा- नेहा इधर आओ।
तुमने अगर इस महीने एक भी क्रेडिट कार्ड नहीं बेचा, तो अगले महीने से खुद ही ऑफिस मत आना। ये बोलते हुए बॉस ने उसे एक लिस्ट थमा दी। नेहा फिर निराश होकर अपने डेस्क आ गई, क्योंकि फिर से फिर वही पुराने नंबर…. नेहा ने अपने साथी से कहा- यार हर बार मुझे एक ही लिस्ट पकड़ाते हैं। ये समझते क्यों नहीं कि ये लोग नहीं लेना चाहते कार्ड। बॉस की निगाहें हर समय मुझ पर ही टिकी रहती हैं, लेकिन मैं तो अपनी तरफ से कोशिश कर ही रही हूं।
फिर वही पुराने नंबर… ये लोग तो फोन उठाते ही नहीं, उसने बड़बड़ाते हुए हेडफोन पहना और फिर से कॉलिंग में लग गई। दोपहर तक उसने एक के बाद एक लगातार 50 कॉल कर ली थी, लेकिन एक भी आदमी ने कार्ड खरीदने के लिए हां नहीं किया। खाना खाने के बाद उसने फिर कोशिश की और सोचा -चलो, एक बार और ट्राय करती हूं।
फोन की दूसरी तरफ किसी की आवाज आई- हां जी कौन? नेहा ने स्क्रिप्ट के हिसाब से बोलना शुरू किया- सर, मैं सिंगीस बैंक से नेहा बोल रही हूं, हमारे पास आपके लिए एक खास क्रेडिट कार्ड का ऑफर है, क्या मेरी बात राघव से हो रही है। राघव ने कहा- सॉरी नेहा जी, लेकिन मुझे अभी कोई कार्ड नहीं चाहिए, नेहा ने फिर कहा- सर यह कार्ड आपके लिए कई तरह से फायदेमंद हो सकता। यह बोलकर नेहा चुप हो गई, उसे लगा कि सामने वाला फोन काट ही देगा, तो इतना बोलने का फायदा नहीं, लेकिन राघव ने फोन नहीं काटा। सामने से आवाज आई- हेलो मैम कहां गई…नेहा ने हड़बड़ाते हुए कहा जी सर, नेटवर्क में शायद दिक्कत हो गई होगी, मैं फिर से आपको सारी डिटेल्स बताती हूं। नेहा काफी खुश हो गई थी, उसे लगा कि आज वह कार्ड खरीद ही लेगा। राघव ने ध्यान से पूरा ऑफर सुना। नेहा को लगा जैसे पहली बार किसी ने उसे सिर्फ सेल्स गर्ल नहीं, बल्कि इंसान समझकर सुना। बातचीत आधे घंटे तक चली और आखिर में उसने कार्ड लेने के लिए हामी भर दी।
नेहा के चेहरे पर महीनों बाद सच्ची मुस्कान आई। बॉस भी खुश हो गया। लेकिन उससे ज्यादा नेहा को अच्छा इस बात से लगा कि उस ग्राहक का नाम राघव था और उसने जाते-जाते कहा –नेहा जी, मुझे कार्ड से जुड़ी कोई और जानकारी चाहिए हो तो क्या करूं, नेहा मन ही मन सोचने लगी, इतने दिनों बाद किसी ने कार्ड खरीदने की बात मानी है, मुझे इसे मना नहीं करना चाहिए। उसने ऑफिस का नंबर राघव को दे दिया और कहा- राघव जी आप इस नंबर पर सुबह 10 बजे से शाम 7 बजे के बीच कभी भी कर सकते हैं। यह बोलकर उसने फोन काट दिया।
उस दिन के बाद ऐसा लगा जैसे नेहा की तो लॉटरी लग गई है, हर दिन कोई न कोई कार्ड खरीदने के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन एक और चीज थी जो नेहा के साथ होने लगी थी। हर दिन नेहा को राघव का फोन ऑफिस में आता था। कभी क्रेडिट कार्ड के बहाने तो कभी ऑफर के बारे में। हर दिन की परेशानी देखते हुए, नेहा ने एक दिन राघव से पूछ ही लिया। मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हें कार्ड चलाना अच्छे से आता है, तुम बस मेरा टाइम बर्बाद करने के लिए फोन करते हो। राघव थोड़ा मुस्कुराया और बोला, हां हो सकता है। क्यों न तुम मुझे रोज कार्ड के बारे में इसी तरह समझाते रहो। इसमें दिक्कत क्या है, नेहा को भी राघव की आदत लग गई थी। क्योंकि, हर दिन वो राघव के फोन का इंतजार करने लगी थी। एक दिन राघव ने फोन नहीं किया। उस दिन तो जैसे नेहा का मुंह पूरे दिन बना हुआ था।
अगले दिन फिर उसने राघव के फोन का इंतजार किया। हालांकि राघव ने आज फोन कर ही दिया था। राघव ने कहा- सॉरी कल मैं क्रेडिट कार्ड के बारे में कुछ सवाल नहीं कर पाया। नेहा बहुत गुस्से में थी, उसने कहा, मैं टाइमपास करने के लिए नहीं बैठी हूं। मुझे दोबारा फोन नहीं आना चाहिए। राघव थोड़ी देर शांत रहा, फिर बोला- क्या तुम मुझे अपना सोशल मीडिया अकाउंट बता सकती हो। मैं तुमसे पर्सनल नंबर नहीं मांग रहा। यह सुनकर नेहा का गुस्सा जैसे शांत हो गया। उसने कहा- तुम मेरा नंबर लेलो, लेकिन जब तुम्हें कार्ड के सिलसिले में सवाल करना हो तभी फोन करना। राघव ने हंसते हुए कहा, हां बिलकुल। नेहा ने नंबर देने के बाद फोन काट दिया, लेकिन उसके दिल की धड़कनें तेज हो चुकी थीं। उसने खुद से ही सवाल किया – क्या मैंने सही किया? कहीं ये मुझे पर्सनली परेशान न करने लगे?लेकिन अंदर ही अंदर उसे ये भी अच्छा लग रहा था कि कोई है जो उसके ऑफिस कॉल्स के अलावा भी उसे सुनना चाहता है।
उस शाम ऑफिस से घर लौटते वक्त ही उसके फोन पर मैसेज आया –राघव- नेहा जी, आप परेशान मत होना। मैं सिर्फ उसी वक्त कॉल करूंगा जब मुझे कार्ड या बैंकिंग से जुड़े सवाल होंगे। नेहा ने तुरंत जवाब दिया, अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। इसके बाद राघव का मैसेज नहीं आया, कुछ दिन ऐसे ही बीते। अगले दिन राघव कभी बैंकिंग ऑफर के नाम पर, तो कभी लोन और EMI के बारे में कॉल करता, लेकिन धीरे-धीरे उनकी बातें ऑफिशियल दायरे से बाहर निकलने लगीं।अब दोनों फिल्मों, म्यूजिक, हॉबीज और जिंदगी की छोटी-छोटी बातों पर भी चर्चा करने लगे थे।
नेहा को लगने लगा कि राघव उसकी जिंदगी में एक सुकून बनकर आया है।वो अक्सर कहती –राघव, तुम हर रोज इतने अच्छे मूड में कैसे रहते हो? मैं तो कॉल सेंटर के काम में थक जाती हूं।
राघव हंसकर जवाब देता –शायद इसलिए कि अब मेरी रोज की थकान तुम्हारी आवाज सुनते ही दूर हो जाती है।
नेहा के गाल लाल पड़ गए थे- लेकिन एक दिन ऑफिस में अचानक बॉस ने कहा- नेहा, इस महीने तुम्हारे सेल्स रिकॉर्ड गजब के हैं। ऊपर मैनेजमेंट तक तुम्हारी तारीफ पहुंची है। वैसे, ये राज क्या है? अचानक से तुम्हारे नंबर कैसे इतने अच्छे हो गए? तभी ऑफिस बॉय के हाथ से ग्लास गिर गया। बॉस ने गुस्से में कहा- तुमसे एक भी काम सही से नहीं होता, इसे साफ करो। नेहा ने झिझकते हुए कहा - सर… शायद किस्मत साथ दे रही है।
लेकिन वो जानती थी कि उसके नंबर अच्छे होने की असली वजह राघव है। राघव न सिर्फ खुद कार्ड लेता रहा, बल्कि उसने अपने दोस्तों और ऑफिस के लोगों को भी नेहा से ही कार्ड दिलवाए।
नेहा की तारीफ हो रही थी और ऑफिस बॉय लगातार उसे घूरे जा रहा था, नेहा ने गुस्से में कहा- कभी लड़की नहीं देखी है क्या? ये क्या तरीका है, बॉस ने कहा- तुम मेरे सामने ऐसी हरकतें कर रहे हो, तुम्हें शर्म नहीं आ रही है।
नेहा ने देखा कि बॉस ज्यादा गुस्सा हो रहे हैं, ऐसे तो वह उसे नौकरी से निकाल देंगे, इसलिए उसने शांत करते हुए कहा, सर जानें दो, वह आगे से नहीं करेगा। ऑफिस बॉय तुरंत ग्लास की टुकड़े उठा कर कमरे से बाहर चला गया, ऑफिस से बाहर निकलते ही उसने फौरन बॉस की तारीफ वाली बताने के लिए राघव को फोन किया। लेकिन राघव ने फोन उठाया नहीं।
3 से 4 दिन हो गए थे, लेकिन राघव उसके फोन नहीं उठा रहा था। एक दिन नेहा ने अपनी एक दोस्त के नंबर से फोन किया, राघव ने तुरंत फोन उठा लिया। नेहा ने जैसे ही हैलो किया राघव ने फोन काट दिया। उसे राघव का यह रवैया बहुत बुरा फील करवा रहा था, लेकिन हर दिन वो उसे फोन करना छोड़ती नहीं थी।
एक दिन वह ऑफिस में थी और राघव को फोन कर रही थी। वह बार-बार फोन करती, कोई फोन नहीं उठा रहा था। फोन करते हुए वह कैंटीन में पानी लेने गई, लेकिन न ही कोई फोन उठा रहा था, न ही काट रहा था। पैंट्री में उसे एक फोन रखा मिला। किसी का फोन आ रहा था, उसने फोन का बटन दबा कर बंद कर दिया था। इसके बाद वह राघव को फोन मिलाते हुए पैंट्री से बाहर निकली, कोई अभी भी फोन नहीं उठा रहा था, तभी उसने मुड़ कर देखा। पेंट्री में रखा फोन फिर बज रहा था। उसने अपने फोन की तरफ देखा, उसने फोन काटा। जैसे ही उसने फोन काटा, पेंट्री में रखा फोन भी बंद हो गया। यह देखकर वो हैरान रह गई।
उसने फिर से फोन उठाया और अपने फोन से फोन किया। उसने देखा कि राघव का फोन तो ऑफिस में है, वह समझ गई कि कोई ऑफिस का ही है, जिससे उसकी बात होती थी, उसने तुरंत फोन रखा और अपने डेस्क पर आ गई, लेकिन उसकी नजर बस पेंट्री पर थी। तभी उसने देखा कि ऑफिस बॉय पेंट्री में जा रहा है और वह फोन उसने उठाया।
ये देखकर तो जैसे नेहा के पैरों से जमीन ही खिसक गई थी, ये राघव और कोई नहीं बल्कि ऑफिस बॉय था। उसने ही उसकी मदद की थी। नेहा को गुस्सा भी आ रहा था और वह उसे थैंक्यू भी बोलना चाहती थी, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई, लेकिन उसने फैसला कर लिया कि वह अब राघव को कभी फोन नहीं करेगी। क्योंकि, ऑफिस बॉय ही उसे नाम बदलकर उससे बात करता था। इसके बाद नेहा ने कभी राघव को फोन नहीं किया और राघव ने भी कभी उसे फोन नहीं किया, यह दोस्ती यहीं पर ही खत्म हो गई, लेकिन दोनों ने कभी एक दूसरे की बात को किसी को नहीं बताई। राघव ने भी कभी इस बात का जिक्र नहीं किया, क्योंकि शायद उसे समझ आ गया था कि उसकी और नेहा की कभी जोड़ी नहीं बन सकती थी।
यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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