
अरी सुनती हो कल रात हरिया की दुल्हन ने गांव के शीशे में क्या देखा...चंपा ने जैसे ही कल्याणी को आवाज लगाई मानो उसके दिल की धड़कनें थम सी गईं। हमेशा हंसी ठिठोली और चुलबुली नोंक-झोंक में उलझा रहने वाला गांव कुछ दिनों से खामोश नजर आ रहा था। दरअसल बकौना गांव वैसे बहुत छोटा सा था, लेकिन आस-पास के गांवों के बीच उसकी अपनी अलग पहचान थी। चाहे बात हो पढ़ाई-लिखाई की या फिर व्यापार में अपनी पहुंच बनाने की, बकौना के लोग सबसे आगे ही रहते थे।

फिर ऐसा क्या हुआ था कि बीते कुछ दिनों से गांव में सन्नाटा छाया हुआ था और हंसी-ठिठोली की आवाजें भी ख़ामोशी में बदल गईं थीं? गांव के बीचो-बीच एक बड़ा पीपल का पेड़ था और उसी पेड़ के तने पर एक ऐसा आइना था जिसके लिए लोग कहते थे कि सालों पहले गंगा पार से एक साधु आया था और वो ये आइना इस पेड़ के पास रखकर चला गया था। आते-जाते लोगों की नजर उस आइने में पड़ती थी, लेकिन कोई पहले ये नहीं जान पाया कि आख़िर इस साधारण दिखाई देने वाले दर्पण में क्या ख़ास है।

तभी एक दिन हीरालाल जौहरी की दुकान में काम करने वाली लड़की पिंकी उस आइने के पास रुककर अपना चेहरा निहार रही थी, तभी अचानक से उस आइने में पिंकी के अतीत की घटनाएं दिखाई देने लगीं। कैसे पिंकी को उनकी मां ने पाल-पोसकर बड़ा किया, कैसे वो घर खर्च के लिए काम ढूढ़ने लगी और कैसे उसको हीरालाल ने अपनी दुकान में काम दिया। ये देखकर पिंकी ही नहीं बल्कि आस-पास के सभी लोग दंग रह गए। उसी समय गांव की बूढ़ी दादी ने सबको ये बात भी बताई कि जिस साधु ने सालों पहले गांव को यह आइना सौंपा था उसी ने यह भी बोला था कि 'यह दर्पण लोगों के असली रूप को सामने लाएगा, इसमें चेहरा नहीं बल्कि आत्मा दिखाई देगी। जिसने जो भी पाप-पुण्य किए होंगे, वही दर्पण में सामने आ जाएंगे।
गांव के लोग पहले से ही इस बारे में जानते भी थे तभी इससे डरते भी थे और इसके सामने नहीं आते थे। छोटे बच्चों को तो आइने के पास जाने से ही मना कर दिया जाता था। मानो यह दर्पण अपनी चुप्पी में अनगिनत रहस्य छुपाए बैठा था।

जिस दिन पिंकी को आइने में अपना अतीत दिखाई दिया उसी दिन गांव के सरपंच रामदास जी ने यह फैसला लिया कि आज से रोज एक-एक करके सभी इस आइने के सामने आएंगे और अपने कर्मों का लेखा-जोखा देंगे। कुछ लोग सरपंच जी की बात से सहमत नहीं थे, लेकिन उनकी बात को टाल भी तो नहीं सकते थे।
आइने के सामने आने की शुरुआत हुई गांव के लोहा व्यापारी सज्जन सिंह से। ये तो सभी जानते थे कि वो लालची स्वभाव का था। उसने कई बार लोगों से ज्यादा ब्याज वसूल किया और गरीबों की जमीन भी हड़प ली, लेकिन जब सज्जन को आइने के सामने खड़ा किया गया तो एक-एक करके आइने में उसके कर्म दिखाई देने लगे। एक दिन कैसे उसने गरीब किसान से मारपीट की थी और उसका इल्जाम भी खुद के बजाए उसी निरीह पर लगा दिया था। उसके सामने उसका ही रूप नहीं बल्कि गांव के कई गरीब किसान खड़े दिखाई दिए-उनके चेहरे पर आंसू थे, उनके हाथ जुड़े हुए थे, यही नहीं एक गरीब ने तो आत्महत्या तक कर ली थी और उसके बीबी और बच्चे अकेले जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे। यह पूरा दृश्य इतना जीवंत था कि सज्जन सिंह के पैरों तले जमीन खिसक गई और अचानक आइने से एक आवाज गूंजी 'तेरे लालच ने इनके घर बर्बाद कर दिए हैं। क्या तू यही रूप लेकर ईश्वर के पास जाएगा? सज्जन सिंह चिल्लाकर भागा और अगले ही दिन उसने लोगों की जमीनें वापस लौटा दीं। गांव वालों ने देखा कि वह पूरी तरह बदलने लगा और छल कपट से दूर हो गया।

दूसरी बारी आई गांव के अस्पताल में काम करने वाली राधा नर्स की। उसके बारे में वैसे तो सभी जानते थे, लेकिन जब वो आइने के सामने आई तो सभी की खुशी का ठिकाना न रहा। उसमें न कोई अपराध था और न ही कोई पाप। वो जैसे ही आइने के सामने आइए उसने देखा कि वह बीमारों की सेवा कर रही है, बुजुर्गों का सहारा बनी हुई है। यही नहीं उसी दिन सबको ये भी आइने में नजर आया कि कैसे उसने तालाब में कूदकर एक छोटे बच्चे की जान बचाई थी। राधा कैसे उन 11 बुजुर्गों का सहारा बनी जिन्हें उनके ही बच्चों ने घर से निकाल दिया था। उस आइने ने राधा के सभी पुण्य दिखा दिए और उसमें कोई खोट नजर नहीं आया। तभी आईने से प्रकाश झलका और आवाज आई-'तेरी आत्मा निर्मल है, हमेशा इसी मार्ग पर बढ़ती रहना।'
धीरे-धीरे दर्पण की चर्चा गांव से बाहर भी फैलने लगी। आस-पास के लोग भी इसे देखने आने लगे। कुछ इसे चमत्कार मानते, कुछ अभिशाप। लेकिन हर कोई जानता था कि यह दर्पण झूठ नहीं बोलता है।

गांव की औरतें तो कहतीं कि अगर कोई किसी को भी धोखा देगा या चोरी करेगा तो उसका राज सबके सामने खुल जाएगा। बच्चे डरकर वहां से गुजरते थे और उन्हें लगता था कि इस दर्पण के भीतर शायद पिशाच रहता है मगर उनके भीतर एक जिज्ञासा भी रहती थी कि आखिर इस आइने के भीतर कौन रहता है।
एक-एक करके सभी लोगों के पाप-पुण्य आइने के सामने आने लगे और गांव के लोगों में बहुत से बदलाव होने लगे। सबके मन में सरपंच जी को लेकर भी कई सवाल थे, लेकिन भला गांव के मुखिया पर कौन शक करता। उसी समय एक निडर लड़के सतीश ने गांव के लोगों के सामने बोला कि हम सभी ने तो अपने पाप और पुण्य इस आइने में देख लिए हैं, लेकिन सरपंच जी इसके सामने नहीं आए। अब सरपंच जी को कौन आइना दिखता, सभी दबे मन से यही चाह रहे थे कि एक बार सरपंच रामदास जी भी दर्पण के सामने जरूर आएं।

लोगों को यही लगता था कि गांव के सरपंच जी बहुत धर्मात्मा हैं, लेकिन जैसे ही सरपंच जी आइने के सामने आए लोग दंग रह गए। सरपंच ही के भीतर तो लालच और क्रूरता छिपी थी। उन्होंने कई बार चुपचाप गलत सौदे किए थे और गरीबों के हक छीने थे। यही नहीं तालाब के पार की जमीन जो बंजर बताकर सरपंच जी ने अपने नाम करवा ली थी और लोगों को सांत्वना दी थी कि उसमें वो स्कूल बनवाएंगे, वो भी उनकी एक गलत चाल थी। सरपंच जी की सच्चाई सामने आई तो लोग हक्के-बक्के रह गए और उसी पल गांववालों ने उन्हें मुखिया पद से हटा दिया। साथ ही, सरपंच जी ने सभी से माफ़ी मांगी और अपनी गलत सौदों को जल्द ही निपटाने का आश्वासन भी दिया।

अब गांव में कोई छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब नहीं था सब एक समान रहते थे और कोई भी गलत काम नहीं होता था, लेकिन उस रात ऐसा क्या हुआ कि लोग दांतों तले उंगली दबा बैठे। उस रात बकौना गांव में एक बड़ी चोरी हुई। गांव के मंदिर से सोने की मूर्ति ही गायब हो गई। लोग हैरान थे कि सौ साल पुरानी ये मूर्ति आखिर कहां गई? घर की बुजुर्ग औरतों का तो ये भी कहना था कि मूर्ति चोरी नहीं हुई बल्कि भगवान हमसे नाराज हैं और वो स्वयं ही गांव छोड़कर चले गए हैं। आखिर यह किसने किया? सबकी नजरें दर्पण पर टिक गईं। तभी भीड़ में से एक आवाज आई कि चोर चाहे कितना ही चतुर हो, आइना उसे पकड़ लेगा। गांव की पंचायत ने फैसला किया कि सभी लोग एक-एक कर दर्पण के सामने जाएंगे। एक-एक कर सब आइने के सामने आए और सबकी आत्मा साफ दिखाई दी। लगभग सभी लोग आइने के सामने आ गए और अपनी आत्मा को देखते गए। फिर आखिर ये चोरी की किसने होगी? आखिरी नंबर आया हरिया की दुल्हन का जो कि अभी 10 दिन पहले ही शादी करके गांव में आई थी और उस दर्पण के बारे में कुछ जानती भी नहीं थी। जब उसने आईने में अपना चेहरा देखा तो सभी लोग दांग रह गए।

चोरी हरिया की नई-नवेली दुल्हन ने ही की थी और गांव के मंदिर की मूर्ति को कुएं के पीछे बने खंडहर में रख दिया था। उसने ही लालच में आकर मूर्ति चुराई और छिपाई थी। गांववाले दांग रह गए और हरिया की दुल्हन रो पड़ी और सबसे माफ़ी मांगी। मूर्ति को वापस मंदिर में शापित किया गया और उसे सुधरने का मौका दिया गया। अब गांव में कोई भी अपराध करने से पहले सौ बार सोचता था। लोग कहते थे कि कोई भले ही पुलिस को भी धोखा दे, लेकिन इस दर्पण को नहीं दे सकता।' धीरे-धीरे बकौना गांव का माहौल ही बदलने लगा। झगड़े कम हो गए, धोखाधड़ी थम गई और ईमानदारी बढ़ गई। लेकिन अभी भी आइने का रहस्य वहीं था- यह आइना आखिर आया कहां से? आखिर वो साधु कौन था जो गांव में दर्पण रखकर चला आया?

एक दिन गांव में फिर से एक अजनबी साधु आया। उसका रूप-रंग साधारण था, पर उसकी आंखें गहरी थीं। वह सीधा पीपल के पेड़ के पास गया और दर्पण के सामने बैठ गया। गांव वाले इकट्ठा हो गए और साधु से पूछा 'बाबा, क्या आप इस दर्पण के बारे में जानते हैं?'
साधु मुस्कुराया और बोला यह कोई साधारण दर्पण नहीं। यह ‘कर्म-दर्पण’ है। इसमें इंसान का चेहरा नहीं, उसकी अंतर आत्मा झलकती है। यह सिर्फ दिखाता है, फैसला तुम्हारे हाथ में रहता है। पाप करने वाला चाहे तो सुधर जाए, न सुधरे तो उसका विनाश निश्चित है।'
उस दिन के बाद बकौना गांव पूरे इलाके में एक मिसाल बन गया। लोग कहते- जहां कर्म-दर्पण हो, वहां झूठ टिक नहीं सकता' गांव में अपराध समाप्त हो गए। हर कोई अपने कर्मों के प्रति सचेत रहने लगा। साधु ये सब देखकर बहुत खुश हुआ और उसने जाते-जाते कहा-“याद रखना, असली दर्पण बाहर नहीं, भीतर है। जो मनुष्य अपनी अंतरात्मा के आइने में झांकना सीख ले, उसे किसी और दर्पण की जरूरत नहीं।
आज भी बकौना गांव में आइना मौजूद है, लेकिन लोग उसमें अब सिर्फ अपना चेहरा देखते हैं, क्योंकि उनकी अंतरात्मा पवित्र है और किसी के मन में कोई खोट नहीं है...
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