
क्रिसमस का दिन था और चारों तरफ रौनक और रोशनी फैली हुई थी। हर गली, हर चौराहा रंग-बिरंगी लाइटों से सजा हुआ था। माता-पिता अपने बच्चों को गोद में उठाए खुशी से तस्वीरें खिंचवा रहे थे। पूरा माहौल उत्सव से भरा हुआ था। लेकिन केवल एक बच्चा था जो अकेला था। वह उसी चहल-पहल के बीच, सड़क के एक कोने में मोहन चुपचाप बैठा हुआ था। न उसके चेहरे पर मुस्कान थी, न आंखों में चमक। वह बस सामने से गुजरते लोगों और खुश बच्चों को देख रहा था। उसे देख-देखकर लग रहा था जैसे वह किसी और ही दुनिया का हिस्सा हो, जहां क्रिसमस नहीं, बस खालीपन था। माता-पिता अपने बच्चों से पूछ रहे थे, बताओ बेटा क्या गिफ्ट चाहिए? वहीं दूसरी तरफ मोहन के मन में सवाल उमड़ रहे थे, क्या कभी उससे कोई ऐसा सवाल करेगा। कोई पिता अपने बेटे को कंधे पर बैठाए चल रहा था, तो कोई मां अपनी बेटी का हाथ थामे बार-बार समझा रही थी।
सर्दी की रात थी और बच्चों को उनके माता-पिता फुल कपड़े पहनाकर बाहर लाए थे। वहीं मोहन के शरीर पर बस एक फटा पुराना कपड़ा और टूटी चप्पल थी। कोई मां अपनी बेटी का हाथ थामे बार-बार समझा रही थी,“टोपी ठीक से पहन लो बेटा, ठंड लग जाएगी।” “दस्ताने कहां रख दिए, हाथ जम जाएंगे।” सामने बच्चे मोटे जैकेट, मफलर और गर्म जूतों में थे, फिर भी उनकी मां उन्हें और संभाल रही थी, जैसे दुनिया की सारी ठंड उनसे दूर रखना चाहती हो। मोहन की आंखें बार-बार उन मांओं पर टिक जाती थीं। उसकी नजरें किसी तोहफे पर नहीं, किसी खिलौने पर नहीं, बल्कि मां के उस प्यार पर थीं, जो उसे कभी नहीं मिला। तभी पीछे से किसी के चिल्लाने की आवाज आई- मोहन यहां क्या कर रहा है तू… तूझे बोला न फूल बांटने को… यहां बैठे-बैठे फूल बिक जाएंगे क्या…उठ कर जा वरना आज, तूझे खाना नहीं मिलेगा…

मोहन घबरा गया। वह झट से खड़ा हो गया। उसकी उंगलियां ठंड से अकड़ी हुई थीं और हाथ में पकड़ा फूलों का गुच्छा हाथ से गिरने ही वाला था, उसने पीछे मुड़कर देखा। मालिक मैं बस बेचने ही जा रहा था मोहन ने डरी हुआ आवाज में कहा। मोहन की बात सुनते ही आदमी को जैसे और भी गुस्सा आ गया था। उसने उसे घूरती हुई आंखों से देखा और गुस्से में उसका हाथ पकड़कर दबाने लगा, मोहन चीखना चाहता था, मदद की लिए चिल्लाना चाहता था, लेकिन उसे पता था कि उस आदमी के सिवा उसका और कोई सहारा नहीं है। वह खाना कहां से खाएगा अगर उसे इस आदमी ने सहारा नहीं दिया। भूख का डर उसे ठंड से भी ज्यादा डराता था। पेट पहले से ही खाली था, लेकिन फिर भी वह कुछ बोला नहीं। उसकी आंखें भर आईं, मगर उसने आंसू रोक लिए। वह जानता था- यहां रोना भी किसी को नहीं पिघलाता।
मोहन ने चुपचाप फूलों हाथ में थामा और लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ गया। हर गुजरते इंसान के पास जाकर वह धीमी आवाज में कहता “फूल ले लो अंकल… क्रिसमस है…” लेकिन लोग या तो उसे अनसुना कर देते, या फिर जल्दी-जल्दी आगे बढ़ जाते। किसी की नजरें उसके नंगे पैरों पर पड़तीं, तो कोई उसके कांपते हाथों को देख कर भी नजर फेर लेता। ठंडी रात और गहरी होती जा रही थी, और मोहन फूल बांटता हुआ उस उम्मीद को सीने से लगाए आगे बढ़ता चला गया। उसे पता था कि आज उसने यह गुलाब नहीं बेचा, तो उसका मालिक उसे न तो सोने के लिए जगह देगा और न ही खाने के लिए खाना। मालिक की नजर मोहन पर ही थी, वह मालिक की आंखों के डर से पीछे मुड़ा नहीं और लगातार फूलों को बेचने की कोशिश करता रहा था।
चलते-चलते वह मालिक की नजर से दूर हो गया था, लेकिन फिर भी वह एक भी फूल नहीं बेच पाया था। तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। सुनो बच्चे- एक फूल दे दो, कितने रुपये का है?
ये सुनते ही मोहन के चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसने हंसते हुए कहा, दीदी ये 50 रुपये का है। लड़की का नाम रिया था, वह अपने पर्स से पैसे निकाल रही थी और निकालते-निकालते उसने बच्चे से कहा- क्या नाम है तुम्हारा

मेरा नाम रोहन है- उसने हंसते हुए कहा। मोहन के चेहरे पर दिख रही प्यारी सी मुस्कान को देखते हुए रिया ने फिर पूछा, तुम स्कूल नहीं जाते न। नहीं दीदी, मैं कैसे स्कूल जाऊंगा, मेरी तो मां भी पता नहीं कहां है। ये बात सुनते ही रिया हैरान रह गई। उसने मोहन से कहा- क्यों तुम्हारी मां कहां है, तुम कहां रहते हो।
मोहन ने कहा- दीदी मैं, तो यहीं अपने मालिक के साथ रहता हूं, पता नहीं मेरी मां कहां है। मैं खो गया था और फिर मेरे मालिक ने मुझे पकड़ लिया, तबसे में मालिक के साथ रहता हूं और उनके लिए फूल बेचने का काम करता हूं।
रिया ने बड़ी हैरानी से पूछा, तुम कितने साल के हो.. दीदी मैं 7 साल का हूं, मेरी मां मुझे ढूंढ रही होगी, मुझे उम्मीद है, लेकिन मुझे मेरे घर का पता नहीं । मैं 5 साल का था, जब गुम हो गया था। मालिक के पकड़ने के बाद मैं पुलिस के पास भी एक बार छिपकर गया था, लेकिन पुलिस की सांठगांठ है। उन्होंने फिर से मुझे वापस मालिक के पास छोड़ दिया। अभी मोहन अपनी बात बता ही रहा था कि तभी उसका मालिक वहां पहुंच गया। इतना कहते-कहते मोहन की आंखें झुक गईं। उसके चेहरे पर डर और बेबसी साफ झलक रही थी।
उसने दूर से चिल्लाते हुए कहा, मोहन क्या कर रहा है वहां.. काम करेगा या बात करेगा। आवाज सुनते ही मोहन बुरी तरह घबरा गया। उसका शरीर सिहर उठा। उसने जल्दी से दीदी की तरफ देखा और डरते हुए बोला- दीदी… ये मुझसे ऑनलाइन पेमेंट करने को कह रही हैं, लेकिन मैं तो सिर्फ कैश ही ले सकता हूं…सामने उसका मालिक था और मोहन जानता था- अगर उसने एक शब्द भी ज्यादा बोल दिया, तो आज की रात और भी मुश्किल हो जाएगी। तभी रिया ने कहा- मुझे ये सारे फूल चाहिए, लेकिन कैश नहीं है भैया। अगर आपके पास ऑनलाइन पेमेंट का ऑप्शन है, तो लेलो। मोहन पूरे फूल खरीदने की बात से खुश हो गया था। मालिक ने कहा- हां मैडम, अभी स्कैनर देता हूं। उसने तुरंत फोन खोला और रिया के आगे स्कैनर खोलकर दिखा दिया। रिया ने पूछा- कितने रुपये हुए? मोहन हाथों में गिनती गिन रहा था, तभी मालिक ने कहा- 450 रुपये हुए मैडम।

रिया ने बिना इंतजार किए तुरंत पैमेंट कर दी। पेमेंट करते ही रिया बोली- भैया, आपका बेटा तो बड़ा प्यारा और समझदार है। उसने मुझे 1 फूल के बदले सारे फूल खरीदने के लिए कन्वेंस कर लिया।
मालिक ने कहा- अरे ये बहुत समझदार है मैडम, मोहन के सिर हाथ रखते हुए मुस्कुराते हुए कहा। रिया ने कहा- क्या मैं आपके बेटे के साथ एक फोटो ले सकती हूं। ये बड़ा क्यूट है। मालिक मुस्कुराते हुए बोला- हां मैडम बिल्कुल ले सकती हैं।
रिया ने तुरंत अपने फोन का कैमरा खोला और उसके साथ ढेर सारी फोटो लेने लेगी। उसने मालिक से कहा- भैया आपका ही बेटा , आप भी फोटो में आ सकती हैं। मालिक ने कहा, नहीं मैडम आप ही लीजिए। फोटो लेने के बाद रिया ने मुस्कुराते हुए मोहन को बाय किया और वहां से निकल गई। रास्ते में चलते-चलते उसके दिमाग में केवल मोहन का चेहरा घूम रहा था। वह मोहन को उसकी मां से मिलाना चाहती थी। उसके दिमाग में आया कि वह सोशल मीडिया पर उसकी फोटो डाल देती है। रिया के सोशल मीडिया अकाउंट पर 2M फॉलोअर्स थे। उसे उम्मीद थी कि वह सोशल मीडिया के जरिए मोहन को उसकी मां से मिला सकती है। रिया ने तुरंत मोहन की फोटो के साथ कैप्शन लिखा…प्लीज इस बच्चे की मदद करो। ये 7 साल का है। मुझे नहीं पता इसका घर कहा हैं। आज मुझे ये दिल्ली में फूल बेचते हुए मिला। 5 साल में यह अपनी मां से रेलवे स्टेशन पर बिछड़ गया था। इसके पहले कि यह पोस्ट उसके मालिक को मिले और उसका मालिक उसे कहीं छिपा दे. प्लीज इस बच्चे को इसकी मां से मिल दो।
रिया ने पोस्ट तो डाल दी थी, लेकिन 2 दिनों तक उसे कहीं से कुछ पता नहीं चला था, तभी एक दिन देर रात 2 बजे किसी का मैसेज आया। मैं इस बच्चे को जानता हूं। ये लखनऊ का रहने वाला है। रिया ने तुरंत रिप्लाई किया, प्लीज मुझे अपने नंबर सेंड करो। रात के 2 बज रहे थे। जैसे ही उसने नंबर दिया, रिया ने तुरंत उसे फोन किया।

उसने कहा, प्लीज मुझे उसके माता-पिता का नंबर सेंड कर दो- रिया ने कहा। सामने से व्यक्ति ने कहा- वो घर छोड़ चुके हैं, वो यहां रेंट पर रहते थे, मकान मालिक के पास उनका नंबर है। मैं उनसे बात करके देता हूं। रिया ने कहा, प्लीज अभी बात कर लो, ये जरूरी है। मैं अपना पोस्ट डिलीट कर रही हूं, लेकिन प्लीज इसके पहले कि मालिक बच्चे को कहीं और ले जाए, प्लीज मुझे उसके माता-पिता का नंबर दो। लड़के ने रिया की बात को समझते हुए, तुरंत मकान मालिक के घर जाकर सारी बात बताई। मकान मालिक ने भी मोहन के मात-पिता का नंबर सेंड कर दिया। जैसे ही नंबर स्क्रीन पर आया, उसकी सांसें थम-सी गईं । उसने बिना देर किए कॉल मिला दी। कॉल की घंटी बजती रही…एक बार…दो बार…रात के 3 बज रहे थे, कोई फोन नहीं उठा रहा था। फिर उधर से एक थकी हुई, डरी हुई-सी आवाज आई- हैलो… कौन बोल रहा है? रिया की आंखें भर आईं। मैं रिया बोल रही हूं… क्या आप मोहन के माता-पिता हैं?
उधर कुछ सेकंड तक सन्नाटा छा गया। फिर अचानक एक औरत की घबराई हुई आवाज सुनाई दी- मोहन? मेरा मोहन? क्या… क्या मेरा बच्चा आपके पास है,? कहां है मेरा बच्चा? आप कहां से बोल रही हैं। मां ने घबराते हुए तुरंत, अपने पति को भी जगाया। सुनो मोहन मिल गया.. देखो न, कोई लड़की का फोन आया। फोन के उस तरफ रोने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। रिया की आंखों भी नम हो चुकी थी। हां आंटी… वो ठीक है। आज मैंने उसे चौराहे पर फूल बेचते हुए देखा। इतना सुनते ही उधर से एक आदमी की भारी आवाज आई- हम पिछले दो साल से उसे ढूंढ रहे हैं मैडम… हर मंदिर, हर स्टेशन, हर पुलिस चौकी… लेकिन कहीं कुछ पता नहीं चला। पुलिस ने भी हाथ खड़े कर दिए थे।

रिया ने गहरी सांस ली। अंकल, अभी वक्त बहुत कम है। अगर वो बच्चे को यहां से ले गया, तो फिर ढूंढना मुश्किल हो जाएगा। आप तुरंत यहां पहुंचिए। मैं लोकेशन भेज रही हूं। उसने कहा कि मोहन उन्हें दिल्ली में नजर आया था। वो हर दिन एक मार्केट के सामने फूल बेचता है। मोहन के माता-पिता तुरंत आधी रात को जो भी ट्रेन मिली, उसे पकड़कर दिल्ली पहुंचने के लिए निकल गए थे। शाम के लगभग 5 बजे वह रेलवे स्टेशन पहुंचे। रिया उनका इंतजार कर रही थी, रिया ने कहा- आपको पहले पुलिस स्टेशन जाना चाहिए। आप पुलिस को अपने साथ वहां लेकर जाएंगी, तो उसका मालिक भी कुछ नहीं कर पाएगा। आपका बेटा है, वह आपको देखते ही पहचान भी लेगा और पुलिस को भी भरोसा हो जाएगा।
मोहन के माता-पिता ने एक पल भी देर नहीं की। आधी रात को जो भी ट्रेन मिली, उसी में बैठकर वे दिल्ली के लिए निकल पड़े। आंखों में नींद नहीं थी, दिल में बस एक ही डर और उम्मीद- कहीं देर न हो जाए। लंबा सफर तय कर शाम के करीब पांच बजे वे रेलवे स्टेशन पहुंचे। थके हुए शरीर और कांपते कदमों के बावजूद उनके चेहरे पर एक ही सवाल साफ दिख रहा था- मेरा बेटा कहां है? स्टेशन के बाहर रिया पहले से उनका इंतजार कर रही थी। उन्हें देखते ही वह आगे बढ़ी। आप लोग पहले पुलिस स्टेशन चलिए, रिया ने गंभीर आवाज में कहा। अगर पुलिस आपके साथ होगी, तो उसका मालिक कुछ भी नहीं कर पाएगा।
रिया ने भरोसे से कहा- वो आपका बेटा है। मां-बाप को बच्चा कभी नहीं भूलता। उसने आगे समझाया- आप पुलिस को अपने साथ वहां ले चलिए। जैसे ही मोहन आपको देखेगा, वह खुद दौड़कर आपके पास आएगा। यही सबसे बड़ा सबूत होगा। पुलिस को भी यकीन हो जाएगा कि बच्चा सच बोल रहा है।

पुलिस स्टेशन की ओर बढ़ते हुए हर कदम के साथ उनके दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। कुछ ही देर में वो पल आने वाला था- जब सालों की जुदाई खत्म होने वाली थी। पुलिस स्टेशन पहुंचते ही रिया ने पूरी बात विस्तार से पुलिस को बताई। शुरुआत में ड्यूटी पर मौजूद अफसर ने औपचारिक सवाल किए, लेकिन जैसे ही मोहन के माता-पिता ने अपने बेटे की पुरानी तस्वीरें दिखाईं, गुमशुदगी की रिपोर्ट की कॉपी दी और कांपती आवाज में बीते सालों की कहानी सुनाई-माहौल बदलने लगा। मोहन की मां बार-बार एक ही बात कह रही थीं- साहब, बस एक बार हमें अपने बेटे के सामने खड़ा कर दीजिए… अगर वो हमें पहचान ले, तो समझ लीजिए वही हमारा मोहन है।पुलिस टीम तुरंत हरकत में आ गई। दो पुलिसकर्मी, रिया और मोहन के माता-पिता एक गाड़ी में बैठकर उसी जगह की ओर निकल पड़े, जहां मोहन फूल बेचता था। रास्ता छोटा था, लेकिन हर मिनट घंटों जैसा लग रहा था।

जैसे ही गाड़ी रुकी, सामने वही भीड़, वही रोशनी और वही ठंडी हवा थी। थोड़ी दूरी पर मोहन अपने मालिक के साथ खड़ा दिखाई दिया। हाथ में फूलों की टोकरी थी और आंखों में वही पुराना डर। गाड़ी से उतरते ही मोहन की मां की नजर उस पर पड़ी।उनके कदम खुद-ब-खुद आगे बढ़ गए। मोहन… मेरा बेटा मोहन.. मां की आवाज सुनते ही, मोहन के हाथ से टोकरी छूट गई। वह भी तड़पकर यहां वहां देखने लगा। मम्मी-मम्मी, तभी भीड़ में से उसे भागती हुई मां नजर आई। अगले ही पल वह दौड़ पड़ा। भीड़, पुलिस, मालिक सब यह नजारा देख रहे थे। मोहन सीधे अपनी मां से लिपट गया, जैसे सालों का डर, ठंड और भूख उसी पल खत्म हो गई हो।

मोहन के पिता भी खुद को रोक नहीं पाए। उन्होंने दोनों को कसकर गले लगा लिया। आसपास खड़े लोग चुप थे, कुछ की आंखों में आंसू थे। रिया के आंसू भी नहीं थम रहे थे। पुलिस भी ये नजारा देखकर दंग थी,. लेकिन उसका मालिक गुस्से में पुलिस की तरफ देख रहा था, लेकिन अब पुलिस कैसे एक बच्चे को उसकी मां से अलग कर सकती थी। उसने साइड में खड़े मालिक को नजरअंदाज कर दिया। उस रात, क्रिसमस की ठंड में, मोहन को पहली बार गर्म कपड़ों से ज्यादा अपनों की गर्माहट मिली थी।

मोहन की मां ने अपने साड़ी की प्ललू से मोहन का चेहरा साफ किया और रोते हुए बोली, बेटा तू कैसा है। मैं कितने दिनों से तूझे ढूंढ रही हूं। आज के बाद मैं तूझे अपने से कभी दूर नहीं होने दूंगी। मोहन भी मां को देखकर फूट-फूटकर रो रहा था। उसने रोते हुए कहा…मां ये मालिक हैं, मैं इनके साथ रह रहा था, ये मुझे खाना देते थे और रहने को घर भी। मोहन ने भले ही मालिक से बहुत मार खाई थी, लेकिन मोहन के लिए मालिक ही उसका सहारा था। मोहन की मां ने हाथ जोड़ते हुए मालिक से कहा- आपका धन्यवाद मेरे बेटे को खाना देने के लिए। इस तरह मोहन को एक बार फिर अपने माता-पिता के साथ रहने का मौका मिला। यह मोहन की नई शुरुआत थी, जो एक अनजान लड़की ने बदल थी।
यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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