सुषमा स्वराज देश की उन चुनिंदा राजनीतिज्ञों में से हैं जिनकी पहचान उनकी पार्टी से नहीं बल्कि उनके काम और राजनीतिक कार्यों के जरिये होता है। उनकी नेतृत्व क्षमता का ही असर है जिसके कारण उन्हें 2009 में भारत की भारतीय जनता पार्टी द्वारा संसद में विपक्ष की नेता चुना गया था। आज भले ही उनकी पार्टी में नरेंद्र मोदी छाए हुए हैं और उनके आगे बीजेपी का कोई नेता नहीं दिखता। लेकिन सुषमा स्वराज ने अपने कार्यों के जरिये देश की राजनीति और अपनी पार्टी में एक अलग जगह बनाई हुई है। आज हम इन्हीं बातों पर बात करेंगे कि जो देश की हर लड़की सुषमा स्वराज से सीख सकती हैँ।
एक्ज़ाम्पल के साथ करती हैं लीड
आज कल के मैनेजर्स फैल्योर इसलिए होते हैं क्योंकि उनके कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है। सुषमा स्वराज के साथ ऐसा नहीं है और इसलिए वे लीडर हैं। इसलिए तो उनकी पार्टी के अलावा देश की जनता भी उन्हें प्यार करती है।
Yes 3.34 am - because that's the time Sister Sally who escaped the terrorist attack in Aden was evacuated from Yemen https://t.co/WnFTDusdlx
— Sushma Swaraj (@SushmaSwaraj) March 8, 2016
इसलिए तो कहा भी गया है, “मैनेजर्स सही चीजें करते हैं लेकिन लीडर्स चीजों को सही तरीके से करते हैं।” सुषमा स्वराज के लीडर होने का पहला प्रूफ आपको उनके इस ट्वीट से मिल जाएगा।
टीम को क्रेडिट
अच्छे लीडर्स अपनी टीम को हमेशा क्रेडिट देते हैं और उनके द्वारा पूरे किए गए कार्य की पूरी इज्जत करते हैं। अमेरिका और ब्रिटिश के लीडर्स की तरह अगर अपने देश में आप कोई लीडर ढूंढेंगी तो आपको केवल सुषमा स्वराज ही नजर आएंगी। यह हर काम की बधाईयां देने के दौरान “मैं” की जगह “हम” का इस्तेमाल करती हैं और टीम को थैंक्स कहना नहीं भूलती है।
सहानुभूति और करुणा
Welcome home Sonu. pic.twitter.com/L4a4JwgVFq
— Sushma Swaraj (@SushmaSwaraj) June 30, 2016
बोला जाता है कि जब महिलाएं लीडर बनती हैं तो वह पुरुषों की तरह ही या उनसे ज्यादा क्रूर हो जाती हैं। लेकिन सुषमा स्वराज के साथ ऐसा नहीं है। वह हर एक इंसान से सहातुभूति रखती हैं और उनसे कोई ट्विट कर मदद मांगता है तो सुबह के तीन बजे भी उसकी मदद करती हैं।
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फेमिनस्ट भी हैं
सुषमा स्वराज में फेमिनिज़्म के सारे गुण हैं। केवल फर्क ये है कि वह कभी इसे चिल्लाकर जाहिर नहीं करती हैं। जैसे कि आजकल अधिकतर लड़कियां पति के सरनेम को ना लगाते हुए अपने फेमिनिस्ट होने की दुहाई देती हैं। लेकिन सुषमा स्वराज के साथ ऐसा नहीं है। इन्होंने शादी के बाद पति के सरनेम को तो नहीं अपनाया लेकिन उनके नाम को अपना सरनेम बना लिया। इससे उन्होंने अपना प्यार भी जाहिर कर दिया और फेमिनिज़्म होने की सोच को भी।
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अच्छी पत्नी
कहा जाता है कि एक महिला के लिए उसके अपने पत्नी धर्म का कार्यभार निभाना जरूरी होता है। इस पत्नी धर्म को निभाने के कारण ही जहां आजकल महिलाएं जॉब छोड़ देती हैं वहीं सुषमा स्वराज ने अपना घर और करियर काफी अच्छे तरीके से संभाला। स्वराज कौशल से इनकी शादी 13 जुलाई 1975 को शादी की थी। शादी के बाद जब सुषमा स्वराज पॉलिटिक्स में एक्टिव हो गईं तो उनके पति स्वराज कौशल ने उनके लिए एक सिद्धांत बना लिया - 'सहयोग पूरा, हस्तक्षेप निल।' सुषमा कहती हैं कि उनके पति ने कभी उनके पॉलिटिकल मामलों में कोई दखल नहीं दिया और सुषमा ने भी इन्हें हर कदम में अपने साथ रखा। इसलिए आज भी दोनों साथ हैं और एक परफेक्ट जोड़ी की मिसाल हमारे सामने रखते हैं।
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