ऐसे कई लोग होते हैं जिन्हें देखकर मन में प्रेरणा जाग जाती है। ऐसी ही एक महिला हैं स्मिता भारती। स्मिता साक्षी एनजीओ की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं और सोशल एक्टिविस्ट हैं। वो बतौर राइटर, डायरेक्टर और थिएटर आर्टिस्ट भी काम कर चुकी हैं। स्मिता 32 सालों से इस एनजीओ से जुड़ी हुई हैं और उन्होंने अपनी जिंदगी की मुहिम चाइल्ड सेक्शुअल एब्यूज के खिलाफ लड़ने के लिए बना ली है। हरजिंदगी ने स्मिता जी से बात की और उनकी मुहिम के बारे में और जानने की कोशिश की। पढ़िए उनसे एक्सक्लूसिव बातचीत के कुछ अंश...
सवाल: आप अपनी जर्नी के बारे में कुछ बताएं
जवाब: अगर आप एक नजर में मेरे व्यक्तित्व को देखें, तो शायद मैं बहुत बोल्ड लगूं जिसके अंदर बहुत कॉन्फिडेंस है, लेकिन मैं हमेशा से ऐसी नहीं थी। जैसे-जैसे जिंदगी बीतती है, वैसे-वैसे यादें धूमिल हो जाती हैं। पर कुछ बातें ऐसी होती हैं जो जिंदगी भर आपका साथ निभाती हैं और ऐसी ही एक याद है जब मैं एब्यूसिव शादी को तोड़कर अपने पैरों पर खड़ी हुई थी। मेरे साथ मेरे दो बच्चे थे और मुझे नहीं पता था कि आगे क्या करना है। हम उस समाज में रहते हैं जहां लड़कियों को यह सिखाया जाता है कि उनकी जिंदगी का अहम उद्देश्य ही शादी है, वहां मैंने जो रास्ता चुना वो बहुत ही अलग था।
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मुझे हिंसा और सुख के बीच किसी एक को चुनना था। मैंने अपने और अपने परिवार से लिए सुरक्षा और सुख चुना। मैं डरी हुई थी और जो महसूस कर रही थी उसके बारे में किसी को नहीं बता सकती थी। मैंने अपनी यात्रा के साथ-साथ सामाजिक कार्यों की यात्रा भी शुरू की।
एक ही सवाल मुझे बार-बार कचोटता था- क्या मैं एक जिम्मेदार समाज में रह रही हूं? मैं इतने सालों में कॉलेज, गांव, जेल, ऑफिस और कम्युनिटी के कई संस्थानों में गई हूं जहां मैंने दुनिया भर के लोगों से बात की है। मुझे 40 सालों की कड़ी मेहनत के बाद यह समझ आया कि जो मेरे साथ हुआ वो तो मेरी इच्छा के विरुद्ध था। सेक्शुअल और डोमेस्टिक वायलेंस हमारे सिस्टम का हिस्सा बन चुकी है। मैंने साइकोलॉजी और हिंदी लिट्रेचर में बैचलर्स की है, मैंने इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर्स की है, मैंने WISCOMP और K.K. Birla Foundation के साथ फेलोशिप की है और मैं ये मानती हूं कि पढ़ाई ने मुझे आगे बढ़ने का मौका दिया है।
सवाल: आपने NGO के साथ काम करना कब शुरू किया?
जवाब: बतौर सिंगल मदर मैंने 90 के दशक में बहुत ही कठिन जिंदगी जी। मेरी शादी किसी प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन के पहले ही हो गई थी और उसके बाद अलगाव, दो बच्चों की जिम्मेदारी के बीच मुझे काम करने का मन करता था। हालांकि, आम ऑफिस की जगह मैं कुछ अलग करना चाहती थी जहां मैं बेहतर जिंदगी बनाने में लोगों की मदद कर सकूं। शुरुआत में दिल्ली के एक स्कूल से मैं जुड़ी। इसके बाद मैंने दिल्ली स्थित एनजीओ कथा के साथ काम किया। वहां मुझे आर्ट से लगाव हुआ और मैं कथाकार बन गई, मैंने थिएटर भी शुरू किया और रोल प्ले भी किया। कथा एनजीओ में काम करते-करते ही मुझे साक्षी एनजीओ की तरफ से एक इन्वाइट आया।
घरेलू हिंसा पर एक प्ले करना था और उस दौरान मैं उन महिलाओं से जुड़ी जो ये सब झेल चुकी हूं। उसके बाद से मैंने मुड़कर नहीं देखा।
सवाल: उन समस्याओं के बारे में बताइए जिनको लेकर आप काम करती हैं?
जवाब: साक्षी एनजीओ 1992 से ही जेंडर बेस्ड वायलेंस के आधार पर काम कर रहा है। इसमें कानूनी मदद, सुरक्षा, शिक्षा और व्यावहारिक समस्याएं भी शामिल हैं। हम अहम मानवाधिकारों के हिसाब से ही काम करते हैं। दो महत्वपूर्ण केस 'विशिका वर्सेज स्टेट ऑफ राजस्थान' और 'साक्षी वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया' में वर्डिक्ट के पीछे हमारा एनजीओ ही जिम्मेदार था। जेंडर बेस्ड लॉ को लेकर भी हमने मुहिम चलाई और पॉक्सो 2012 और पॉश 2013 का कानून बनने में मदद की।
आज रक्षिन प्रोजेक्ट हमारा फ्लैगशिप प्रोजेक्ट है जिसमें बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ काम हो रहा है। इसे मिनिस्ट्री ऑफ यूथ अफेयर्स और स्पोर्ट्स के साथ पार्टनरशिप में किया जा रहा है। रक्षिन प्रोजेक्ट का गोल है 4 मिलियन स्टूडेंट्स तक पहुंचना और उन्हें जेंडर बेस्ड वायलेंस या सेक्सुअल एब्यूज से बचाना और सही आजीविका प्रदान करना। रक्षिन प्रोजेक्ट 30 राज्यों, 180 जिलों, 690 कॉलेज और 40 हजार स्टूडेंट्स तक पहुंच चुका है।
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सवाल: रक्षिन प्रोजेक्ट की वर्कशॉप के दौरान क्या आपको किसी तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ा?
जवाब: किसी भी तरह के शोषण के खिलाफ मौन रहना सबसे बड़ा चैलेंज होता है। शर्म, छोटी सोच, सामाजिक बंधन और सर्वाइवर्स से सपोर्ट में कमी हमेशा ही झेलनी पड़ती है। लोग अपने करीबियों के सामने ही अपनी आवाज उठाने से डरते हैं। हालांकि, रक्षिन प्रोजेक्ट के जरिए ऑनलाइन और ऑफलाइन मॉडल्स के तहत बच्चों की मदद करने की कोशिश की जा रही है। हमने साक्षी का ईमेल आईडी शेयर किया है जिसमें हम उन्हें गोपनीयता प्रदान करने का वादा करते हैं।
सवाल: अपने Women’s Safety Accelerator Fund (WASF) इनीशिएटिव के बारे में बताएं
जवाब: जेंडर से जुड़ी हिंसा कम करने के लिए हमें यह अहसास हुआ कि शुरुआत बहुत बेसिक करनी होगी और समस्या की जड़ तक जाना होगा। हम जागरुकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। Women’s Safety Accelerator Fund (WASF) एक जेंडर ट्रांसफॉर्मेटिव प्रोग्राम है जिसके जरिए जेंडर बेस्ड वायलेंस के तहत सामने आने वाले मामलों को समाज के सामने पेश किया जाता है। WSAF 300 से ज्यादा टी-एस्टेट्स के साथ काम कर रहा है और चाय उगाने वाले सभी राज्यों में ध्यान दे रहा है। इससे इकट्ठा किया गया फंड कंपनी मैनेजमेंट, टी-एस्टेट मैनेजमेंट, स्टाफ-सब स्टाफ, पुरुष और महिला वर्कर, टीनएजर्स और चाय के बागानों से जुड़ी कम्युनिटीज को जाता है।
साक्षी इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़कर दार्जिलिंग के 23 टी गार्डन्स में काम कर रहा है।
इस प्रोजेक्ट के तहत हम तीन कैटेगरी में हिस्सा लेते हैं- ट्रेनिंग वर्कशॉप, अवेयरनेस और आउटरीच कैम्पेन, बाहरी मदद। इस प्रोजेक्ट के तहत बाहरी मदद भी बहुत मिली है जिसमें महिला सेल्स, डिस्ट्रिक्ट लेवल अथॉरिटीज, सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट, चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट, स्थानीय सिविल सोसाइटी सभी शामिल हैं।
पिछले एक साल में साक्षी मैनेजमेंट के 300 रिप्रेजेंटेटिव्स तक पहुंचा है, स्टाफ से 11423 लोग, साक्षी ने 201 वर्कशॉप और 216 अवेयरनेस कैम्पेन की हैं। इस मुहिम से हम 23 टी-एस्टेट्स के अंदर एक आंतरिक कमेटी बनाने में सफल रहे हैं। लोगों तक पहुंचने के लिए साक्षी की तरफ से नुक्कड़ नाटक, रैली, थिएटर परफॉर्मेंस आदि किए गए हैं। अब हम 16 नए टी-गार्डन दार्जीलिंग में और 25 टी-एस्टेट्स दक्षिण भारत में अपने साथ जोड़ने वाले हैं।
सवाल: क्या कुछ और है जो आप हमसे शेयर करना चाहें?
जवाब: बतौर राइटर और थिएटर एक्टर मैंने हमेशा सोशल आर्ट्स को रोजाना के मसलों को हल करने का एक माध्यम समझा है। साक्षी ने 'स्टेज फॉर चेंज' नामक इनीशिएटिव भी लॉन्च किया है। इसमें अहसास चन्ना, लुशिन दुबे, संदीप सोपारकर, पद्मा दामोदरन, स्वरूप घोष, तरणजीत कौर, इंदू शर्मा जैसे कई कलाकार हैं। 10 शो के जरिए हम जेंडर बेस्ड वायलेंस के मुद्दे पर रोशनी डालने की कोशिश करेंगे। मुझे लगता है कि यह अपने आप में एक नई पहल है।
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