कुछ चीजें सदाबहार होती हैं। फैशन इंडस्ट्री में भी आपको ऐसी कई चीजें देखने को मिल जाएंगी। इनमें से कुछ पेसली पैटर्न इन्हीं में से एक हैं। भारत में इस पैटर्न को केरी के नाम से भी जाना जाता है। जी हां, आम का फल जब पेड़ पर उगता है, तो वो इसी आकार का नजर आता है। भारतीय फैशन इंडस्ट्री में यह बहुत ही प्रचलित पैटर्न है और प्राचीन भी। हैरानी की बात तो यह है कि अब आधुनिक फैशन ट्रेंड्स में भी इस पैटर्न ने अपनी जगह बना ली हैं। आपको केवल एथनिक ही नहीं बल्कि वेस्टर्न आउटफिट्स में भी इस तरह के पैटर्न देखने को मिल जाएंगे। मगर यह प्रिंट असत्तिव में कैसे आया और इसका महत्व क्या है यह जानने के लिए हमने बात की आर्ट क्योरेटर एंव आर्टिस्ट मनीषा गावड़े से। वह कहती हैं, "प्राचीन समय में डिजाइंन, पैटर्न और चिन्हों के अर्थ हुआ करते थे। पेसली पैटर्न को महिलाओं से जोड़ा जाता है। पहले के समय में यह केवल कपड़ों पर ही नहीं होता था। बल्कि आप इसे मुगल आर्किटेक्चर में भी देख सकते हैं। इसे फेमिनिटी और फर्टिलिटी का प्रतीका माना जाता था।"
क्या होते हैं पेसली पैटर्न ?
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, "पेसली पैटर्न जटिल और घुमावदार आकार के होते हैं। यह आम की केरी यानी अम्बी से तो मिलते जुलते हैं ही, साथ ही इन्हें भारतीय देवदार (पाइन-कोन) की डिजाइन पर आधारित माना जाता है। फैशन की भाषा में इसे बूटा कहा जाता है, फारसी भाषा में इसका अर्थ फूल होता है।
क्या पेसली प्रिंट का इतिहास ?
ऐसा माना जाता है कि इस पैटर्न का इतिहास 2000 वर्षों से भी अधिक है। मनीषा कहती हैं, " इसकी उत्पत्ति 11वीं सदी में भारत के कश्मीर क्षेत्र में हुई, ऐसा माना जाता है। ज़ोरास्ट्रियन धर्म में इसे प्रजनन शक्ति का प्रतीक माना गया है। भारती मान्यताओं के अनुसार भी इसका शेप महिला के गर्भ जैसा ही होता है, इसलिए इसे उन्हीं से जोड़ा जाता है। " मुगल शासन के दौरान पेसली पैटर्न को राजा महाराजाओं के कपड़ों, सिंहासनों और ताज पर भी देखा गया है। वहीं कश्मीर में बनने वाली पश्मीना शॉल में भी यह पैटर्न सबसे लोकप्रिय है। 16वीं सदी में कश्मीरी शॉल यूरोप में पहुंचे, तो अपने साथा यह प्रिंट भी वहां ले गए। जिससे यह डिजाइन यूरोपीय फैशन का भी हिस्सा बना गया है।
कैसे पड़ा 'पेसली' नाम?
भारत और ईरान से ज्यादा वेस्टर्न कंट्रीज में इस पैटर्न को लोकप्रियता मिली। जब कश्मीरी शॉल्स को यूरोपीयन महारानियों ने अपनी वॉर्डरोब का हिस्सा बनाया, तो वहां भी इन शॉलों का निर्माण शुरू हुआ। 19वीं सदी में स्कॉटलैंड के पेसली नामक शहर ने इन शॉल्स का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया। इसी कारण इस डिजाइन को 'पेसली' नाम दिया गया।
पेसली पैटर्न और आधुनिक फैशन
मनीषा बताती हैं, "60 और 70 के दशक में पेसली पैटर्न फैशन में एक अलग ही बूम लेकर आया। साइकेडेलिक आर्ट और फैशन का बोलबाला था,और पेसली के चमकीले रंग और घुमावदार डिजाइंस भी इसी प्रवृत्ति को दर्शाते थे।"
वेस्टर्न देशों में इस डिजाइन को न केवल महिलाओं बल्कि पुरुषों ने भी खूब सराहा। यहां के पुरुष कलाकारों ने पेसली पैटर्न की शर्टें पहन कर इसे विश्व भर में लोकप्रिय बना दिया और बस तब से इन प्रिंट्स को दुनिया भर में न केवल महिलाओं बल्कि आदमियों के भी कपड़ों में देखा जाने लगा।
90 के दशक में इस पैटर्न ने एक बार फिर से कमबैक किया। इस बार म्यूजिक बैंड ओएसिस और उनके लीड सिंगर लियाम गैलाघर ने पेसली पैटर्न को फिर से प्रसिद्ध किया। लियाम ने यहां तक कि 'प्रिटी ग्रीन' नाम से एक फैशन ब्रांड शुरू किया, जो पेसली डिजाइन पर केंद्रित था।
आज, भारत में आप प्रसिद्ध फैशन डिजाइनरों के एथनिक और वेस्टर्न कलेक्शन में इसे देखा जाता है। यह आज भी बहुत लोकप्रिय है। इसे आप न केवल कपड़ों बल्कि एक्सेसरीज और मेहंदी डिजाइन में भी देख सकती हैं।
उम्मीद है कि पेसली पैटर्न से जुड़े रोचक तथ्य आपको खूब पसंद आए होंगे। इस आर्टिकल के बारे में अपनी राय भी आप हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। साथ ही, अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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