हिमाचल प्रदेश की गोद में ऐसी कई अद्भुत, खूबसूरत और अनसुनी जगहें मौजूद हैं जहां भारतीय सैलानी घूमने के बाद जन्नत की तरह अनुभव करते हैं। आज हम आपको हिमाचल में स्थित एक मशहूर मंदिर के बारे में बताने वाले हैं। इस मंदिर के बारे में काफी कम लोग जानते हैं। इस मंदिर की खूबूसूरती का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित भागसूनाग मंदिर काफी लोकप्रिय है। इस मंदिर के नाम से लेकर इसका इतिहास भी काफी खास है। ऐसे में आज हम आपको इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें बताने वाले हैं।
बता दें कि भागसूनाग मंदिर के साथ ही आपको यहां भागसूनाग वाटरफॉल भी देखने को मिलता है। यहां सालों भर सैलानी आते रहते हैं। ऐसे में कई लोग इस जगह के महत्व के बारे में नहीं जानते हैं। अगर आपको भी नहीं पता तो आज का यह आर्टिकल पूरा पढ़े।
कहा जाता है कि दैत्य का नाम भागसू था और नाग देवता से दैत्य ने वरदान लिया था कि उसका नाम श्रद्धालु पहले लें, इसी वजह से दैत्य भागसू का नाम पहले आता है और नाग का बाद में लिया जाता है। ऐसे में इस स्थान का नाम भागसूनाग रखा गया।
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कहा जाता है कि द्वापर युग के मध्यकाल में दैत्यों के राजा भागसू की राजधानी अजमेर देश में थी। उनके राज्य में पानी की समस्या चल रही थी। ऐसे में यहां रहने वाले लोगों का कहना था कि भागसू या तो आप पानी का प्रबंध करें या फिर हम इस देश को छोड़कर चले जाएंगे। दैत्य राज भागसू ने प्रजा को कहा कि वह खुद पानी की तलाश में जाएंगे फिर क्या था अगले दिन ही दैत्य राज भागसू पानी की तलाश में निकल गए।
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भागसू 2 दिनों में नाग डल के पास पहुंच गए। नाग डल पहाड़ की चोटी पर 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसे में भागसू ने अपनी मायावी शक्ति के चलते नाग डल का सारा पानी कमंडल में भर लिया व स्वयं विश्राम करने लगा। जब नाग देवता ने देखा कि उनका डल सूखा है वह काफी ज्यादा गुस्सा हुए। ऐसे में नाग देवता और भागसू के बीच युद्ध हुआ और नाग देवता ने भागसू को पराजित कर दिया। ऐसे में युद्ध के बाद पानी जैसे ही डल में गिरा डल फिर से भर गया। वहीं भागसू ने कहा था कि वह चाहते है कि उनका नाम भी इस जगह को दिया जाएं जिसके बाद नाग ने कहा था कि उनके नाम के आगे आपका नाम अवश्य आएगा।(22 साल में तैयार हुआ था यह महल सिर्फ 1 रात रुकने के लिए)
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आपको बता दें कि भागसूनाग मंदिर की स्थापना 5080 वर्ष पहले हुई थी। इस पवित्र स्थान में स्नान करने के लिए दूर-दूर से यहां भक्त पहुंचते है। साथ ही यहां साधु संतों के लिए हर रोज लंगर लगाया जाता है।
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