
शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। हिंदू धर्म इस दिन का अपना ही एक अलग महत्व है, अक्षय तृतीया का यह पवित्र दिन विवाह, व्यापार और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों के लिए बेहद शुभ माना जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में यह दिन मान्यताओं हिसाब से मनाया जाता है। बता दें कि भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जिनके लिए यह दिन बेहद खास होता है, कहीं पर रथ यात्रा शुरू होती है तो कहीं तीर्थ स्थानों के कपाट खोले जाते हैं।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको भारत के उन प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताएंगे, जहां पर अक्षय तृतीया के दिन का अपना ही एक अलग महत्व माना जाता है। श्रद्धालु अपने देवी-देवताओं से जुड़े इस दिन का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते हैं। तो देर किस बात की, आइए जानते हैं मंदिरों से जुड़े इंटरेस्टिंग फैक्ट्स के बारे में-

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट दीवाली के बाद 6 महीनों के बंद हो जाते हैं। इसके बाद फर कपाट सीधे अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर ही खोले जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस दिन मंदिर बंद किया जाता है, उस दिन देवता आते हैं और भगवान की पूजा करते हैं। ऐसे में मंदिर के कपाट के खुलने का इंतजार श्रद्धालु बड़ी ही बेसब्री से करते हैं। बता दें कि इस पावन दिन के मौके पर ही केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर के कपाट भी खोले जाते हैं।

हर साल जगन्नाथ पुरी में बेहद भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और सुभद्रा के साथ भव्य सड़क पर अलग-अलग रथों के माध्यम से यात्रा करते हैं। बता दें कि इन रथों का निर्माण अक्षय तृतीया के शुभ दिन से ही शुरू होता है। मंदिर में पंडों को भगवान जगन्नाथ से माला मिलती है और रथ के निर्माण से पहले भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है। ऐसे में आप कह सकते हैं कि भगवान जगन्नाथ से जुड़ा खास दिन अक्षय तृतीया भी है।
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अक्षय तृतीया के पावन दिन पर गौड़ीय वैष्णव मंदिरों में चंदन यात्रा निकाली जाती है। इस खास मौके पर गर्मी को मात देने के लिए देवताओं को चंदन का लेप लगाया जाता है। मंदिरों में यह पर्व अक्षय तृतीया से लेकर गुरु पूर्णिमा तक मनाया जाता है।
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आंध्र प्रदेश में स्थित सिंहाचलम मंदिर के लिए भी अक्षय तृतीया का यह दिन बेहद खास माना जाता है। इस खास दिन पर भगवान वराह नरसिम्हा निज रूप से अपने भक्तों के दर्शन देते हैं। पूरे साल भगवान चंदन के लेप से ढके रहते हैं तब वो किसी शिव लिंग की तरह नजर आते हैं।
किंवदंती के अनुसार राजा पुरुरवा ने इन भूले गए देवता को खोजा था। जब उन्हें श्री वराह नरसिम्हा देवता के बारे में पता चला तब उन्हें दिव्य आकाशवाणी सुनाई दी, जिसमें राजा को निर्देश दिया गया है कि वो भगवान की मूर्ति चंदन के लेप से ढककर रख दें। आकाशवाणी में दिव्य आवाज ने कहा कि साल भर में भगवान के निज अवतार को केवल अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर ही देखने की अनुमति है, यही कारण है कि इस पावन दिन पर भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।

वृंदावन में स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर हिंदू श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। माना जाता है कि यह देवता स्वयं वृंदावन में प्रकट हैं और संगीत के उस्ताद और तानसेन के शिक्षक हरिदास को शिक्षा दी थी। बता दें कि यह वृंदावन के सबसे भव्य मंदिरों में से एक है, पूरे साल यहां देवता के चरण कमलों के ढककर रखा जाता है और अक्षय तृतीया के दिन पर ही भक्त प्रभु के चरण कमलों के दर्शन कर सकते हैं।
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तमिलनाडु राज्य में स्थित कुंभकोणम मंदिर में गरुड़ सेवई उत्सव मनाया जाता है। इस खास उत्सव के लिए भी अक्षय तृतीया का दिन चुना जाता है। बता दें कि इस खास दिन पर आसपास के 12 प्रसिद्ध मंदिरों में यह उत्सव जोरों शोरों से मनाया जाता है।
तो ये थे कुछ ऐसे मंदिर जिनके लिए अक्षय तृतीया का दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। आपको हमारा यह आर्टिकल अलग पसंद आया हो तो इसे लाइक और शेयर करें, साथ ही ऐसी जानकारियों के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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