जानें लाखामंडल मंदिर का पांडवों से क्या है संबंध

  • Hema Pant
  • Editorial
  • Updated - 2023-04-30, 10:00 IST

भारत में कई शिव मंदिर हैं। हर मंदिर की अपनी एक अलग मान्यता है। लाखामंडल में बसे शिव मंदिर के बारे में अलग-अलग कहानिया हैं।

all about lakhamandal shiv temple history in hindi
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उत्तराखंड राज्य देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां देवों का वास होता है। उत्तराखंड खूबसूरती से लेकर प्राचीन विरासत के मामलों में बेहद धनी है। खासतौर पर यहां मौजूद मंदिरों की मान्यताएं हैं। दुनियाभर से लोग मंदिरों के दर्शन करने आते हैं। देहरादून से करीब 100 किमी दूर लाखामंडल गांव है। इस गांव में भगवान शिव का एक मंदिर है, जिसकी मान्यता बेहद ज्यादा है। आज इस आर्टिकल में हम आपको लाखामंडल मंदिर के बारे में बताएंगे।

कहां है यह मंदिर?

चकराता से करीब 40-45 किमी दूर लाखामंडल गांव है। यहां भगवान शिव का मंदिर है, जो लाखामंडल शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस गांव में रहस्यमी गुफाएं हैं। कहा जाता है कि यह वह जगह है जहां, दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए षडयंत्र रचा था। पांडवों को लाक्षागृह में रखा गया था, लेकिन पांडव यहां से बच निकले थे।

ऐसे पड़ा मंदिर का नाम

lakhamandal temple historyयह बात हम सभी जानते हैं कि हर मंदिर की मान्यता और उसके पीछे अलग कहानी होती है। लाखामंडल का नाम भी इसकी बनने की कहानी पर रखा गया। लाखा का अर्थ लाख और मंडल यानी लिंग। यानी लाख लिंग। कहा जाता है कि पांडवों ने यहां इस जगह पर लाख शिवलिंग स्थापित किए थे। इसके चलते ही इस गांव का नाम लाखामंडल पड़ा था।

मंदिर की बनावट

लाखामंडल मंदिर की बनावट केदारनाथ मंदिर जैसी है। मंदिर के अंदर भगवान शिव, पार्वती गणेश, दुर्गा, विष्णु , काल भैरव, कार्तिकेय, सरस्वती और सूर्य हनुमान की मूर्तियां हैं। मंदिर के बगल में आपको कई शिवलिंग देखने को मिलेंगे। मंदिर के अंदर पैरों के निशान है। कहा जाता है कि यह निशान मां पार्वती के हैं।

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हर शाम होती है पूजा

lakhamandal temple history in hindiलाखामंडल शिव मंदिर में हर शाम पूजा होती है। इस पूजा में गांव के बच्चे और बुजुर्ग सभी शामिल होते हैं। शाम 8 बजे के बाद मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। यहां की आरती आपके मन को मोह लेगी। आपको भी एक बार इस गांव में जाना चाहिए।

मंदिर के बाहर एक शिवलिंग मौजूद है। आपको इस शिवलिंग में अपना चेहरा नजर आएगा। शिवलिंग में अपनी शक्ल देखने को शुभ माना जाता है। यह शिवलिंगद्वापर और त्रेता युग से है।

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