
मध्य प्रदेश, यानी देश के बीचोंबीच बसा एक प्रदेश। यह प्रदेश अपने कलचर, इतिहास, प्राकृतिक खूबसूरती के साथ-साथ धर्म अध्यात्म से भी नाता रखता है। यहां जहां एक तरफ उज्जैन और ओंकारेश्वर जैसे भगवान शिव के तीर्थ स्थल हैं वहीं दूसरी तरफ सतना के नजदीक मैहर देवी शारदा का मंदिर है। इस मंदिर का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। ऐसी मान्यता है कि जब देवी शक्ति के जले हुए शरीर को लेकर भगवान शिव बेसुध होकर घूम रहे थे तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से देवी शक्ति के शरीर से कई हिस्सों में विभाजित कर दिया और उनके शरीर के हिस्सा वस्त्र और गहन पृथ्वी में जगह-जगह बिखर गए। तब ही देवी जी का हार सतना के नजदीक एक गांव में गिरा। इस गांव को आज मैहर के नाम से जाना जाता है और यहां देवी शक्ति के हार की पूजा होती है। पहाड़ों पर देवी जी का एक मंदिर भी है जहां तक पहुंचने के लिए 1600 सीढि़यां चढ़नी होती हैं। देवी जी के इस पावन तीर्थ पर कानपुर निवासी मीना गुप्ता पिछले वर्ष नवरात्रि में गईं थीं। आज वह HerZindagi.com से अपनी इस ट्रैवल डायरी को शेयर कर रही हैं और मैहर जाने वालों को स्पेशल टिप्स भी दे रही हैं।

मीना बताती हैं, ‘कानपुर से मैहर के लिए चित्रकूट एक्सप्रेस जाती है। यह सीधे मैहर उतारती है। अगर आप दिल्ली से जा रहे हैं तो आपको कई ट्रेने मिल जाएंगी मगर रीवा एक्सप्रेस बेस्ट रहेगी। यह सुबह आपको रीवा उतारेगी और वहां से आप मैहर के लिए बस ले सकते हैं। रीवा से मैहर 1 घंटे में पहुंचा जा सकता है। देवी जी कें मंदिर जाने के लिए बेस्ट टाइम होता है अर्ली मॉर्निंग क्योंकि इस वक्त भीड़ कुछ कम होती है। देवी जी का मंदिर सुबह 5 बजे खुलता है मगर लोग रात से ही मंदिर इक्ट्ठा होने लगते हैं। इसलिए अगर आप मैहर सुबह 5 बजे के बाद पहुंचते हैं तो पूरा दिन रेस्ट कर लें। उसके बाद रात में मंदिर के लिए निकलें। आप अगर सीढि़यों से जाना चाहते हैं तो आपको 2 घंटे लगें। आप रोपवे से भी जा सकते हैं। यह रोपवे 200 रुपए में आपको उपर ले जाएगी और दर्शन करने के बाद नीचे भी ले आएगी।’
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अमूमन लोग जब मंदिर चढ़ाते हैं तो प्रसाद चढ़ाने के लिए वहीं से सामग्री खरीद लेते हैं। मगर मीना बताती हैं, ‘मैहर में पूजा का सामान बहुत महंगा मिलता है। यहां पर मंदिर के नीचे सब कुछ मिल जाता है मगर उसके दाम आसमान छूते हुए होते हैं। अगर आपको देवी जी प्रसाद या पूजा सामग्री चढ़ानी है तो आप यह अपने साथ पहले से लेकर आएं।’
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देवी जी के मंदिर में नवरात्रि के वक्त बहुत भीड़ होती है ऐसे में सफोकेशन और भीड़ में धक्का मुक्की से बचने के लिए पहले से लाइन में लग जाएं। इसे भी ज्यादा इस बात का ध्यान रखें कि मंदिर की चढ़ाई करने या फिर रोपवे से जाने से 2 घंटे पहले ही जो खाना है खा लें। अपने साथ पानी की बोतल जरूर रखें क्योंकि मंदिर परिसर में पानी बहुत मुश्किल से मिलता है।

मैहर के देवी मंदिर को जब रात 10 बजे बंद किया जाता है तो पंडित जी देवी पर चढ़े सारे फूलों को अलग कर देते हैं मगर सुबह जब मंदिर खुलता है तो मां के दरबार में हमेशा गुलाब का एक ताजा फूल चढ़ा मिलता है। मैहर के इस रहस्य को आजतक कोई नहीं जान सकता है मगर, यहां के लोगों को मानना है कि मां के मंदिर में उनके भक्त और पहलवान आल्हा और उदल यह फूल चढ़ाते हैं।
आल्हा और उदल शारदा माता के बहुत बड़े भक्त थे। माता जी के मंदिर के पास ही आल्हा और उदल का अखाड़ा था। यह अखाड़ा आज भी वैसा ही है। आल्हा और उदल के बारे में इतिहास में भी काफी कुछ पढ़ने को मिलता है। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया था। ऐसा भी माना जाता है कि आल्हा और उदल ने ही देवी जी का मंदिर खोजा था और 12 साल तक यहां तपस्या की थी। उनकी तपस्या से खुश होकर देवी जी ने उन्हें हमेशा अमर होने का वरदान दिया था। इतना ही नहीं माना जाता है कि आज भी सुबह मंदिर खुलते ही सबसे पहले आल्हा और उदल ही देवी जी के दर्शन करते हैं।

मंदिर से नीचे आने के बाद आपको आल्हा और उदल के मंदिर के दर्शन करने चाहिए जो। देवी जी के मंदिर से कुछ ही दूर है। यहां पर आल्हा और उदल का अखाड़ा भी है, जहां वे दोनों कुश्ती लड़ा करते थे। यहां एक तलाब भी है। इसे आल्हा तालाब कहा जाता है। इस तलाब में हमेशा कमल का फूल खिला रहता है। ऐसा कहा जाता है कि देवी जी के दर्शन तब तक पूरे नहीं होते हैं जब आप आल्हा और उदल के दर्शन न करें।
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