कर्नाटक को उसकी समृद्ध विरासत और संस्कृति किलों के लिए जाना जाता है। कर्नाटक का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है। यहां पर मौर्य, होयसल, विजयनगर और चालुक्य जैसे विभिन्न राजवंशों का शासन रहा है।
इन राजवंशों के शासनकाल में कई किलों को निर्माण किया गया है। इनका अपना ऐतिहासिक महत्व है और इनमें से कुछ खंडहर हो गए हैं, जबकि कुछ किले आज भी कर्नाटक की विरासत को खुद में समेटे हुए है।
इन किलों का आर्किटेक्चर, डिजाइन देखने लायक है और उनकी भव्यता बस देखते ही बनती है। इसलिए, जब भी आप कर्नाटक जाएं तो आपको इन किलों को जरूर देखना चाहिए। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको कर्नाटक में मौजूद कुछ ऐसे ही ऐतिहासिक किलों के बारे में बता रहे हैं-
चित्रदुर्ग फोर्ट को पहले ब्रिटिश काल में चीतलदुर्ग के नाम से जाना जाता था। यह एक विशाल किला है जो कई पहाड़ियों में फैला है। यह स्थान आस-पास की पहाड़ियों के खूबसूरत नजारे पेश करता है। चालुक्य या होयसल सहित क्षेत्र के राजवंशीय शासकों ने 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच किले का निर्माण कराया था।
बाद में, 15वीं शताब्दी और 18वीं शताब्दी के बीच, किले का विस्तार किया गया था। विशाल चित्रदुर्ग फोर्ट 1500 एकड़ में फैला हुआ है। इसका निर्माण आठ शताब्दियों में कई चरणों में हुआ। यह वेदवती नदी के बगल में स्थित है।
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बीदर फोर्ट का निर्माण मूल रूप से 8वीं शताब्दी में किया गया था और बाद में 1656 ई. में औरंगजेब ने इसका जीर्णोद्धार कराया था। दिलचस्प बात यह है कि 17वीं शताब्दी के मध्य में बीदर पर औरंगजेब ने कब्जा कर लिया था और यह किला मुगल साम्राज्य में समाहित हो गया था। (कर्नाटक का अद्भुत खजाना है देवबाग)
20वीं सदी के मध्य में जब हैदराबाद राज्य का विभाजन हुआ, तो बीदर किला नवगठित राज्य मैसूर, जो अब कर्नाटक है, का हिस्सा बन गया।
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कित्तूर चेन्नम्मा फोर्ट बेलगाम से 50 किमी दूर स्थित है। यह धारवाड़ से 32 किलोमीटर दूर है। कित्तूर एक छोटा शहर है और अपने कई पुराने महलों, स्मारकों और मूर्तियों के कारण काफी प्रसिद्ध है। यह वीरता और महिलाओं के गौरव का प्रतीक है। (कर्नाटक घूमते समय इन पांच टिप्स को ध्यान रखें)
कित्तूर रानी चेन्नम्मा द्वारा देश के लिए किये गये महान कार्य की याद दिलाता है। 1857 के विद्रोह से काफी पहले रानी चेन्नम्मा अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की नेता थीं। कित्तूर में एक संग्रहालय भी है जो तलवार, ढाल और लकड़ी के दरवाजे जैसी प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित करता है।
बादामी फोर्ट 543 में चालुक्य राजा पुलकेशी ने बनवाया था। एक चट्टान की चोटी पर स्थित इस किले के साथ दो शिवालय परिसर हैं जो 5वीं शताब्दी के हैं। इस पहाड़ी पर 14वीं सदी और 16वीं सदी का एक वॉचटावर भी है। 642 ईस्वी में पल्लवों द्वारा नष्ट किए जाने से पहले बादामी फोर्ट 540 ईस्वी से 757 ईस्वी तक चालुक्य राजधानी था।
टीपू सुल्तान के समय किले का पुनर्निर्माण करवाया गया था। इस किले से पूरे शहर के शानदार दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।
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