
भगवान शिव को भोलेनाथ और देवों के देव महादेव के नाम से जाना जाता है। उनका वेश अत्यंत सरल है, वे न तो सोने के आभूषण पहनते हैं और न ही किसी राजा की तरह सजे-धजे रहते हैं। उनके शरीर पर भस्म, हाथों में त्रिशूल और गले में लिपटे हुए विषैले नागराज वासुकी उनके व्यक्तित्व को और भी रहस्यमय बनाते हैं। गले में सांप धारण करने के पीछे कई पौराणिक कथाएं और गहन आध्यात्मिक अर्थ छिपे हुए हैं जो शिव के अद्भुत स्वभाव को दर्शाते हैं। ज्यादातर लोग इसे सिर्फ एक आभूषण मानते हैं जबकि इसके पीछे त्याग, नियंत्रण और भक्ति का गहरा संदेश है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि आखिर कैसे आया शिव जी के गले में सांप?
शिव जी के गले में लिपटे नाग का नाम वासुकी है जो नागों के राजा माने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था तो मंदार पर्वत को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया था।

मंथन के दौरान वासुकी बुरी तरह घायल हो गए थे और उनका पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था। जब मंथन पूरा हुआ तो वासुकी की इस महान सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरता का वरदान दिया और उन्हें सदैव अपने साथ रखने के लिए अपने गले का आभूषण बना लिया।
यह भी पढ़ें: क्या वाकई शिव मंदिर के पुजारी को मिलता है कुत्ते के रूप में अगला जन्म?
यह वासुकी की भक्ति और सेवा का सर्वोच्च सम्मान था। एक अन्य कथा के अनुसार, जब नागों की प्रजाति पर संकट आया तो उन्होंने अपने परम भक्त नागराज वासुकी के नेतृत्व में भगवान शिव से शरणमांगी। शिव जी ने करुणावश उन्हें कैलाश में शरण दी।
भीषण ठंड से बचाने के लिए उन्होंने वासुकी को अपने गले में धारण कर लिया जिससे नागों को गर्मी मिली और वे सुरक्षित रहे। यह शिव के शरणागत को अभय दान देने वाले स्वभाव को दर्शाता है। शिव जी के गले में सर्प का होना सिर्फ कथा नहीं बल्कि संदेश भी है।

सर्प को काल और मृत्यु का प्रतीक माना जाता है। सर्प को गले में धारण करके शिव जी यह संदेश देते हैं कि वह काल के अधीन नहीं हैं बल्कि काल भी उनके नियंत्रण में है। इसीलिए उन्हें 'मृत्युंजय' भी कहा जाता है।
गले का क्षेत्र शरीर में विशुद्धि चक्र का स्थान होता है। समुद्र मंथन से निकले कालकूट विष को शिव जी ने कंठ में धारण किया था। विषैले सांप को उसी जगह धारण करना यह दर्शाता है कि शिव जी ने संसार की बुराई को अपने अंदर समाया है।
यह भी पढ़ें: शिव मंदिर से लौटते वक्त भूलकर भी न करें ये 3 गलतियां, सुख-सौभाग्य की जगह मिल सकते हैं दुख-दर्द
सर्प सबसे विरोधी और विषैला जीव है, फिर भी शिव जी ने उसे अपने कंठ में प्रेम से स्थान दिया। यह संदेश देता है कि मनुष्य को भी अपने जीवन में विरोधी स्वभाव वाले लोगों और परिस्थितियों को सहनशक्ति और प्रेम के साथ स्वीकार करना चाहिए।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं और अपना फीडबैक भी शेयर कर सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
Image credit: herzindagi
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।