why did lord shiva wear snake around his neck only

शिव जी ने गले में ही क्यों धारण किया सांप? ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं वजह

भगवान शिव के शरीर पर भस्म, हाथों में त्रिशूल और गले में लिपटे हुए विषैले नागराज वासुकी उनके व्यक्तित्व को और भी रहस्यमय बनाते हैं। गले में सांप धारण करने के पीछे कई पौराणिक कथाएं और महत्वपूर्ण संदेश हैं।
Editorial
Updated:- 2025-11-27, 10:20 IST

भगवान शिव को भोलेनाथ और देवों के देव महादेव के नाम से जाना जाता है। उनका वेश अत्यंत सरल है, वे न तो सोने के आभूषण पहनते हैं और न ही किसी राजा की तरह सजे-धजे रहते हैं। उनके शरीर पर भस्म, हाथों में त्रिशूल और गले में लिपटे हुए विषैले नागराज वासुकी उनके व्यक्तित्व को और भी रहस्यमय बनाते हैं। गले में सांप धारण करने के पीछे कई पौराणिक कथाएं और गहन आध्यात्मिक अर्थ छिपे हुए हैं जो शिव के अद्भुत स्वभाव को दर्शाते हैं। ज्यादातर लोग इसे सिर्फ एक आभूषण मानते हैं जबकि इसके पीछे त्याग, नियंत्रण और भक्ति का गहरा संदेश है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि आखिर कैसे आया शिव जी के गले में सांप?

क्या है शिव जी के गले में सांप के होने का रहस्य? 

शिव जी के गले में लिपटे नाग का नाम वासुकी है जो नागों के राजा माने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था तो मंदार पर्वत को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया था।

why did lord shiva wear snake in his neck

मंथन के दौरान वासुकी बुरी तरह घायल हो गए थे और उनका पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था। जब मंथन पूरा हुआ तो वासुकी की इस महान सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरता का वरदान दिया और उन्हें सदैव अपने साथ रखने के लिए अपने गले का आभूषण बना लिया।

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यह वासुकी की भक्ति और सेवा का सर्वोच्च सम्मान था। एक अन्य कथा के अनुसार, जब नागों की प्रजाति पर संकट आया तो उन्होंने अपने परम भक्त नागराज वासुकी के नेतृत्व में भगवान शिव से शरणमांगी। शिव जी ने करुणावश उन्हें कैलाश में शरण दी।

भीषण ठंड से बचाने के लिए उन्होंने वासुकी को अपने गले में धारण कर लिया जिससे नागों को गर्मी मिली और वे सुरक्षित रहे। यह शिव के शरणागत को अभय दान देने वाले स्वभाव को दर्शाता है। शिव जी के गले में सर्प का होना सिर्फ कथा नहीं बल्कि संदेश भी है।

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सर्प को काल और मृत्यु का प्रतीक माना जाता है। सर्प को गले में धारण करके शिव जी यह संदेश देते हैं कि वह काल के अधीन नहीं हैं बल्कि काल भी उनके नियंत्रण में है। इसीलिए उन्हें 'मृत्युंजय' भी कहा जाता है।

गले का क्षेत्र शरीर में विशुद्धि चक्र का स्थान होता है। समुद्र मंथन से निकले कालकूट विष को शिव जी ने कंठ में धारण किया था। विषैले सांप को उसी जगह धारण करना यह दर्शाता है कि शिव जी ने संसार की बुराई को अपने अंदर समाया है।

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सर्प सबसे विरोधी और विषैला जीव है, फिर भी शिव जी ने उसे अपने कंठ में प्रेम से स्थान दिया। यह संदेश देता है कि मनुष्य को भी अपने जीवन में विरोधी स्वभाव वाले लोगों और परिस्थितियों को सहनशक्ति और प्रेम के साथ स्वीकार करना चाहिए।

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FAQ
शिव मंदिर में क्या दान करना चाहिए?
शिव मंदर में चांदी का दान करना चाहिए। चांदी का नाग भी दान किया जा सकता है।
शिव मंदिर की कितनी परिक्रमा लगानी चाहिए? 
शिव मंदिर की 3, लेकिन शिवलिंग की आधी परिक्रमा लगानी चाहिए। 
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