
मथुरा और वृंदावन भगवान श्री कृष्ण की लीला भूमि होने के कारण अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल माने जाते हैं। यहां की रज को घर लाना शुभ माना जाता है, लेकिन एक ऐसी चीज है जिसे यहां से कभी नहीं लाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि उस एक वस्तु को अक्सर कई लोग अपने घर लाते हैं ये सोचकर कि इससे उनके घर की सुख-समृद्धि बढ़ेगी जबकि होता है इसका उल्टा है। घर से सुख-समृद्धि घटने लग जाती है और श्री राधा कृष्ण की कृपा भी दूर होने लग जाती है। वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि कौन सी वो वस्तु है जिसे मथुरा-वृंदावन से कभी नहीं लाना चाहिए।
कई धार्मिक ग्रंथों और विशेष रूप से गर्ग संहिता में यह बताया गया है कि मथुरा-वृंदावन से कभी भी भूलकर भी गोवर्धन पर्वत का पत्थर नहीं लाना चाहिए। यह एक जघन्य अपराध है जो ज्यादातर लोग अनजाने में कर बैठते हैं। इसके पीछे महत्वपूर्ण कारण भी है।

धार्मिक कथाओं के अनुसार, गोवर्धन पर्वत हर दिन तिल भर घट रहा है और जिस दिन यह पूरी तरह धरती में समा जाएगा उस दिन कलयुग अपने चरम पर पहुंच जाएगा। माना जाता है कि इस पर्वत का हर हिस्सा पूजनीय लेकिन एक ऋषि द्वारा श्रापित है।
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गोवर्धन पर्वत को एक ऋषि द्वारा यह श्राप मिला था कि वह कलयुग के अंत तक धरती में समा जाएंगे जिसके बाद से ही सबसे ऊंचे पवातों मं से एक गोवर्धन आज धरती के बहुत करीब हैं। इस श्राप की पीड़ा से मुक्त करने हेतु श्री कृष्ण ने उन पर अपने चरण रखे थे।
गोवर्धन पर्वत श्री कृष्ण और राधा रानी के प्रिय माने जाते हैं। यही कारण है कि श्री कृष्ण की कृपा से गोवर्धन पर्वत का स्वरूप भी कान्हा जैसा ही है। श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि गोवर्धन पर्वत उन्हें अत्यंत प्रिय है और कोई इन्हें 84 कोस से बाहर नहीं ले जा सकता है।
गिरिराज जी ब्रज मंडल के मुकुट माने जाते हैं। अगर कोई भक्त इस पर्वत के किसी भी अंश को ब्रज की सीमा से बाहर अपने घर लाता है तो यह गिरिराज जी को उनके मूल निवास से जबरन दूर करने जैसा माना जाता है जिससे भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी रुष्ट हो सकते हैं।

गोवर्धन पर्वत के पत्थर को स्वयं भगवान कृष्ण के रूप में पूजा जाता है जिसे गिरिराज शिला कहते हैं। किसी भी देवी-देवता के साक्षात स्वरूप को घर में लाने का अर्थ है उनकी पूरी जिम्मेदारी लेना। गिरिराज शिला की पूजा और सेवा के नियम बहुत कठोर हैं।
सामान्य गृहस्थ व्यक्ति के लिए उन्हें निभाना लगभग असंभव है। गोवर्धन शिला को घर में स्थापित करने के लिए अत्यधिक पवित्रता, सात्विक जीवन शैली और चौबीसों घंटे नियम पालन की आवश्यकता होती है। नियम में उल्लंघन से पुण्य के बजाय महादोष का सामना करना पड़ता है।
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मान्यता है कि नियमों में कमी होने पर व्यक्ति के जीवन से सुख-समृद्धि, धन और शांति तेजी से चली जाती है और उसका अनिष्ट हो सकता है। इसलिए, मथुरा-वृंदावन से ब्रज की रज ले आएं, लेकिन गोवर्धन पर्वत का पत्थर घर लाना वर्जित है।
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