करवा चौथ का व्रत हर सुहागिन महिला के लिए खास होता है। यह केवल पति की दीर्घायु और वैवाहिक सुख की कामना का पर्व ही नहीं होता है बल्कि नारी की श्रद्धा, संयम और प्रेम का अद्भुत प्रतीक भी है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और सोलह श्रृंगार के साथ माता गौरी और भगवान गणेश की पूजा करती हैं। पौराणिक परंपरा के अनुसार, करवा चौथ की पूजा के दौरान गणेश जी के सामने 10 करवे रखे जाते हैं। आखिर इन 10 करवों का क्या महत्व है? वास्तव में, ये दस करवे केवल मिट्टी या तांबे के पात्र नहीं होते हैं, बल्कि जीवन के दस प्रमुख तत्वों, दिशाओं और ऊर्जाओं का प्रतीक भी माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन दस करवों के माध्यम से महिला भगवान गणेश से यह प्रार्थना करती है कि उसके जीवन के हर दिशा में सौभाग्य, शांति और समृद्धि बनी रहे। साथ ही, यह परंपरा पौराणिक मान्यता से भी जुड़ी हुई है, जब माता पार्वती ने भगवान शिव के दीर्घायु होने की कामना करते हुए गणेश जी के कहने पर 10 करवे रखे थे। ऐसा कहा जाता है कि तभी से यह परंपरा मनाई जा रही है। आइए ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ त्रिपाठी से जानें इसके बारे में विस्तार से।
करवा चौथ की पूजा में रखे गए दस करवे दसों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इन दिशाओं में शुभता, सुरक्षा और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे- यही प्रार्थना व्रती महिला करती है।
यह संकेत है कि हर दिशा से जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य आए।
प्रत्येक करवा जीवन के दस महत्वपूर्ण पहलुओं-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, शक्ति, संयम, भक्ति, प्रेम, श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।इन सभी का संतुलन ही वैवाहिक जीवन को पूर्ण बनाता है।
गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है। 10 करवे उनके सामने रखकर महिलाएं प्रार्थना करती हैं कि उनके परिवार में कोई बाधा न आए और जीवन में सौभाग्य बना रहे।
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सदियों से ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने जब भगवान शिव के दीर्घायु के लिए व्रत रखा था, तब गणेश जी ने उन्हें 10 करवे रखने का विधान बताया था। तभी से यह परंपरा करवा चौथ की पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई।
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करवा चौथ पर गणेश जी के सामने 10 करवे रखना केवल परंपरा नहीं, बल्कि यह दस दिशाओं की रक्षा, जीवन के संतुलन और दांपत्य सुख की कामना का प्रतीक है। यह पूजा नारी शक्ति, भक्ति और प्रेम का सुंदर संगम है जो घर में सौभाग्य का दीप जलाए रखती है।
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