
भारत और देश के बाहर दुनियाभर में ऐसे कई मंदिर स्थापित हैं जो न सिर्फ रहस्यमयी हैं बल्कि चमत्कारी भी हैं। हर मंदिर की अपनी एक कहानी है और उससे जुड़ी मान्यताएं भी मौजूद हैं। ऐसा ही एक मंदिर है भगवान विष्णु का जिसे विवाहित जोड़ों के लिए बहुत भाग्यशाली माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि इस मंदिर में जो भी शादीशुदा जोड़ा जाता है उसके जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है और वैवाहिक जीवन हमेशा खुशहाल बना रहता है। ऐसे में आइये जानते हैं वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से कि कहां हैं ये मंदिर, क्या है इस मंदिर का नाम और क्या है इससे जुड़ी मान्यता?
हम बात कर हे हैं उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर की जो सिर्फ भगवान विष्णु को समर्पित एक साधारण स्नथान हीं है, बल्कि यह वह पवित्र और पौराणिक स्थल माना जाता है जहां सतयुग में भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। इस मंदिर की प्रसिद्धि का मुख्य कारण यही दिव्य घटना है।

त्रियुगीनारायण नाम भी तीन शब्दों से मिलकर बना है: 'त्रि' यानी तीन, 'युगी' यानी युग, और 'नारायण' यानी भगवान विष्णु। इस मंदिर के परिसर में आज भी एक अखंड धूनी जलती है जिसे शिव-पार्वती के विवाह की पवित्र अग्नि माना जाता है जो तीन युगों से जल रही है। यही कारण है कि यह मंदिर शादीशुदा लोगों के लिए सौभाग्य और समृद्धि का द्वार खोल देता है।
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मंदिर के सामने जो हवन कुंड है, उसे ही शिव-पार्वती के विवाह का वास्तविक अग्नि कुंड माना जाता है। सदियों से जलती इस अखंड धूनी को वैवाहिक जीवन की स्थिरता और अमरता का प्रतीक माना जाता है। इस दिव्य विवाह में भगवान विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रस्में निभाई थीं जबकि ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे।
मान्यता है कि जो भी भक्त इस अखंड धूनी की राख को प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाता है उसके वैवाहिक जीवन में हमेशा सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। यह राख पति-पत्नी के बीच के बंधन को मजबूत करने वाली मानी जाती है।

लोग दूर-दूर से यहां आकर अपनी शादियां करते हैं या शादी के बाद यहां दर्शन के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र स्थल पर विवाह करने या पूजा करने से नवविवाहित जोड़े का रिश्ता भगवान शिव और माता पार्वती की तरह जन्मों-जन्मों तक अटूट रहता है और उनके जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
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मंदिर परिसर में कुछ पवित्र जल कुंड भी हैं जिनकी अपनी विशेष मान्यताएं हैं। इनमें रुद्रकुण्ड, विष्णुकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड और सरस्वती कुण्ड प्रमुख हैं। माना जाता है कि शिव-पार्वती के विवाह में शामिल होने से पहले सभी देवताओं ने इन कुंडों में स्नान किया था।
भक्त भी इन कुंडों के जल को पवित्र मानते हैं और विवाह संबंधी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इनका उपयोग करते हैं। इस प्रकार, त्रियुगीनारायण मंदिर सिर्फ एक तीर्थस्थल नहीं बल्कि उन सभी विवाहित जोड़ों के लिए एक प्रेरणा और आशीर्वाद का केंद्र है जो अपने रिश्ते में अटूट प्रेम और सौभाग्य की कामना करते हैं।
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image credit: herzindagi
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