कौन थे गजासुर जो आज भी ज्योतिर्लिंग रूप में पूजे जाते हैं?

काशी नगरी में भोलेनाथ विश्वनाथ के अलावा एक और शिवलिंग है, जिसे भगवान भोलेनाथ के मस्तक की मान्यता प्राप्त है। शिवपुराण के अनुसार यह शिवलिंग असुर राज गजासुर के ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजे जाते हैं।

 
Kritivasheshwar Temple   The finest Shiva linga in Kashi
Kritivasheshwar Temple   The finest Shiva linga in Kashi

यह तो हम सभी को पता है कि भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिंग है, लेकिन इन 12 ज्योतिर्लिंग के अलावा एक ज्योतिर्लिंग ऐसा भी है, जिसे भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद मिला है और यह ज्योतिर्लिंग गजासुर के रूप में पूजे जाते हैं। गजासुर का यह ज्योतिर्लिंग काशी के 14 महत्वपूर्ण मंदिर में से एक है और इस शिवलिंग की कथा का वर्णन शिवलिंग में भी मिलती है। चलिए जानते हैं इस शिवलिंग और असुर राज गजासुर के बारे में।

इस नाम से पूजे जाते हैं गजासुर

काशी में कृतिवाशेश्वर मंदिर एक ऐसा शिवलिंग है, जहां असुर राज गजासुर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजित हैं। काशी में यह मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर और महामृत्युंजय मंदिर के बीच में स्थित हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन मात्र से मनुष्य को जन्म और मृत्यु के बंधन और मोह से मुक्ति मिल जाती है। सदियों से यह काशी के सबसे बड़े और पुराने मंदिर में से एक है।

गजासुर कौन थे?

What is the story of Gajasura

गजासुर राक्षस महिषासुर के पुत्र थे। महिषासुर का वध मां दुर्गाने किया था और गजासुर भी अपने पिता की तरह अत्याचारी राक्षस था। गजासुर अपने पिता के मृत्यु का बदला लेने के लिए घोर तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन्न उनसे महाबली और अजेय होने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी से वरदान पाकर गजासुर स्वयं को शक्तिशाली मान तीनों लोक में अत्याचार करने लगे।

शिव पुराण में भी है गजासुर की कथा

शिव पुराण के रूद्र संहिता, के पंचम खंड के 97 अध्याय में गजासुर के तपस्या, वध और काशी के कृतिवाशेश्वर महादेव के बारे में बताया गया है। ब्रह्मा जी से वरदान पाकर गजासुर महादेव की प्रिय नगरी काशी में जाकर आतंक मचाने लगा। गजासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता और ऋषि मुनि महादेव के पास गए और उनसे सहायता मांगी।

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देवताओं और साधु-संतों की सहायता के लिए शिव जी अपना त्रिशूल लेकर गजासुर के वध के लिए चले गए। गजासुर और महादेव के बीच महायुद्ध हुआ। गजासुर शिवजी को मारने के लिए तलवार लेकर दौड़े, वहीं शिव जी भी त्रिशूल लेकर गजासुर पर प्रहार करने लगे। शिवजी गजासुर को अपने त्रिशूल से उठा लिए और गजासुर अपना मृत्यु निकट जानकर शिवजी की आराधना करने लगे।

गजासुर ने शिवजी से मांगी ये वरदान

भगवान शिव की आराधना करते हुए गजासुर ने शिव जी से कहा कि हे प्रभु, आपने अपने पवित्र त्रिशूल से मेरे शरीर का स्पर्श किया है, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप सदैव मेरे शरीर के चर्म को धारण करें। मेरी चर्म का ही ओढ़ना पहने और आज से आप कृत्तिवासा के नाम से जाने जाएं। शिव जी ने गजासुर की बात मान ली और कहा हे गजासुर तुम्हारे शरीर को इस काशी नगरी में मुक्ति मिलेगी। साथ ही तुम्हारा शरीर यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में काशी में स्थापित होगा और इस ज्योतिर्लिंग का नाम कृतिवाशेश्वर से पूरे संसार में जाना जाएगा।

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Image Credit: Freepik

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