जगन्नाथ रथ यात्रा हिंदू धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण और भव्य उत्सव है। इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं, उन्हें दर्शन देते हैं और नगर भ्रमण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस रथ यात्रा में शामिल होने, रथ यात्रा के दौरान रथ खींचने या सिर्फ रथ यात्रा के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। साल 2025 में जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून से शुरू हो रही है और इसका समापन 5 जुलाई को होगा। यूं तो जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी कई रोचक बातें हैं जिन्हें जानकार आप भी हैरान रह जाएंगे लेकिन आज हम बात करेंगे भगवान की पोशाक के बारे में। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी के वस्त्र कहां से आते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए कहां से आते हैं भगवान के कपड़े?
जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के वस्त्र एक बहुत ही खास जगह से आते हैं और इन्हें बनाने की प्रक्रिया भी बहुत पवित्र और पारंपरिक होती है। ये पवित्र वस्त्र मुख्य रूप से ओडिशा के खुर्दा जिले के राउतपाड़ा गांव से आते हैं। यह गांव सदियों से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए विशेष वस्त्र बनाने के लिए जाना जाता है। इस गांव के बुनकर जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस काम को करते आ रहे हैं वो अपनी कला और भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं।
इन वस्त्रों को बनाने का काम कुछ विशेष बुनकर परिवार करते हैं। इन परिवारों को इस काम के लिए विशेष रूप से चुना जाता है और वे पूरी निष्ठा के साथ इसे करते हैं। यह केवल एक बुनाई का काम नहीं, बल्कि एक सेवा मानी जाती है। वस्त्रों को पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करके हाथ से बुना जाता है। इसमें किसी भी आधुनिक मशीन का इस्तेमाल नहीं होता।
यह प्रक्रिया बहुत सावधानी और पवित्रता के साथ की जाती है। इन वस्त्रों को बनाने के लिए शुद्ध कपास और रेशम का इस्तेमाल किया जाता है। कपड़े को बुनने से पहले उसे पवित्र किया जाता है। हर साल, रथ यात्रा के दौरान भगवान के लिए विशेष रूप से 7 अलग-अलग तरह के पोशाक तैयार किए जाते हैं। इन वस्त्रों के रंग और पैटर्न भगवान की अलग-अलग लीलाओं और दिनों के अनुसार तय होते हैं।
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भगवान जगन्नाथ के रथ को लाल और पीले रंग के वस्त्रों से सजाया जाता है, बलभद्र के रथ को लाल और हरे रंग से और सुभद्रा के रथ को लाल और काले रंग से। इन वस्त्रों को तैयार करने वाले बुनकर इसे केवल एक काम नहीं मानते बल्कि भगवान की सेवा के रूप में देखते हैं। उनकी भक्ति और समर्पण इस प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। कुछ बुनकर परिवारों की कई पीढ़ियां दशकों से इस पवित्र कार्य में लगी हुई हैं।
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image credit: herzindagi
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