वट पूर्णिमा का व्रत इस साल 10 जून, मंगलवार के दिन रखा जाएगा। यह व्रत इसलिए भी इस्साल खास है क्योंकि यह ज्येष्ठ माह के आखिरी बड़ा मंगल के दिन पड़ रहा है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि वट पूर्णिमा के दिन जो भी सुहागिन महिला निर्जल व्रत रखती है और बरगद के पेड़ की पूजा करती है, उसके पति को दीर्घायु का वरदान मिलता है साथ ही, वैवाहिक जीवन में भी खुशहाली बनी रहती है। हालांकि वट पूर्णिमा का व्रत तभी पूरा माना जाता है जब पूजा के साथ-साथ व्रत कथा भी पढ़ी या सुनी जाए। ऐसे में आइये जानते हैं वट पूर्णिमा व्रत की कथा के बारे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
वट पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महाराज अश्वपति, जो मद्र देश के राजा थे, और उनकी पत्नी ने संतान के लिए देवी सावित्री का पूरी विधि-विधान से व्रत और पूजा की। इस व्रत के कारण उन्हें एक बेटी हुई, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। सावित्री राजा के महल में धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और विवाह के लायक हो गई।
एक दिन राजा अश्वपति ने सावित्री को अपने मंत्री के साथ अपना पति चुनने के लिए भेजा। सावित्री ने सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना और राजा को इस बारे में बताया। उसी समय, देवर्षि नारद ने राजा से कहा कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 साल बाद मृत्यु हो जाएगी। यह सुनकर राजा ने सावित्री से किसी और को चुनने को कहा।
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राजा के कहने के बाद भी सावित्री नहीं मानी। नारद जी से सत्यवान की मृत्यु का समय पता चलने के बाद भी, सावित्री अपने पति और सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगी। नारद जी ने सत्यवान की मृत्यु का जो समय बताया था, उससे कुछ दिन पहले ही सावित्री ने पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा से वट सावित्री का व्रत रखना शुरू कर दिया था।
जब यमराज उनके पति सत्यवान को अपने साथ लेने आए, तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगीं। सावित्री की इस धर्मनिष्ठा और पतिव्रत से यमराज बहुत खुश हुए और उनसे वर मांगने के लिए कहा। सावित्री ने सबसे पहले यह वर मांगा कि उनके नेत्रहीन सास-ससुर की आंखों की रौशनी वापस आ जाए और उन्हें लंबी उम्र मिले।
इसके बाद भी जब सावित्री यमराज के पीछे आती रहीं, तो यमराज ने उन्हें दूसरा वरदान दिया कि उनके ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मिल जाएगा। आखिर में सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों का वरदान मांगा। सावित्री की इस चतुराई भरी मांग से यमराज असमंजस में पड़ गए, क्योंकि बिना पति के सौ पुत्र संभव नहीं थे।
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अंततः यमराज को सावित्री के पति सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े। यमदेव ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण लौटाए थे। यही कारण है कि वट सावित्री व्रत में चने का प्रसाद चढ़ाया जाता है, क्योंकि इसे सत्यवान के प्राणों का प्रतीक माना जाता है। वट पूर्णिमा का व्रत रखने वाली सुहागिन महिलाओं के जीवन में हमेशा शांति और सुख बने रहते हैं।
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image credit: herzindagi
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