हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की पूर्णिमा से पितृपक्ष की शुरुआत हो जाती है। इसका समापन आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर होगा। पितृपक्ष के आखिरी दिन को सर्वपितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्राद्ध करने के लिए बेहद शुभ दिन है। ऐसा कहा जाता है कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन विधिवत रूप से अगर पितरों का ध्यान करें और पूजा-अर्चना करें, तो व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है। अब ऐसे में अगर आपको स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो सर्व पितृ अमावस्या के दिन किस स्तोत्र का पाठ करने से लाभ हो सकता है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
सर्व पितृ अमावस्या के दिन किस स्तोत्र का करें पाठ?
सर्व पितृ अमावस्या के दिन अगर आप पितृदोष से छुटकारा पाना चाहते हैं और स्वास्थ्य में सुधार लाना चाहते हैं, तो इस अमावस्या तिथि के दिन विशेष रूप से इस स्तोत्र का पाठ करें। इससे आपको उत्तम फलों की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही जीवन में चल रही परेशानियों से भी छुटकारा मिल जाता है।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ॥
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि: ॥
प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥
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नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ॥
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ॥
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानस:।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुज: ॥
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ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।
ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि।
शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
गोत्रे अस्मतपिता (पितरों का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम
गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
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Image Credit- HerZindagi
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