पितृपक्ष के दौरान कौवे को भोजन कराना भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र परंपरा मानी जाती है। यह कोई सामान्य प्रथा नहीं है, बल्कि इसका गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष के 16 दिनों में हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप में धरती पर आते हैं और कौवे का रूप धारण कर अपने वंशजों द्वारा दिए गए भोजन को ग्रहण करते हैं। इस वजह से, कौवे को भोजन कराना सीधे पितरों को भोजन कराने के समान माना जाता है जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है। इसके अलावा, पितृपक्ष के दौरान कौवे को भोजन कराने से जुड़े अन्य तथ्य भी हैं जिनके बारे में आइये जानते हैंज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्ससे।
पितृपक्ष में कौवों को खाना क्यों खिलाना चाहिए?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब श्री राम माता सीता के साथ वनवास में थे तब उस समय देवराज इंद्र के पुत्र एक कौवो के रूप में श्री राम की कुटिया के पास पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि श्री राम सो रहे थे और माता सीता उनके चरण दबा रही थीं।
कौवे रूपी देवराज इंद्र के पुत्र ने माता सीता के धैर्य की परीक्षा लेने की उत्सुकता में माता सीता के पैर को अपनी चोंच से घायल कर दिया। माता सीता के पैर से खून बह रहा था लेकिन इसके बाद भी मिटा सीता कुछ नहीं बोलीं, लेकिन श्री राम की नींद खुल गई।
जब श्री राम ने माता सीता को घायल देखा तो उन्होंने उस कौवो को मृत्यु देने के लिए अपने धनुष से बिना नोक वाला मृत्यु बाण छोड़ा। उस समय कौवे रुपी देवराज इंद्र के पुत्र को अपनी भूल का आभास हुआ और वह श्री राम एवं मात सीता से क्षमा मांगने लगा।
श्री राम ने उस कौवे को क्षमा करते हुए यह वरदान दिया कि अब से कौवों को अपना हर जन्म याद रहेगा। कौवों के माध्यम से ही कोई भी व्यक्ति अपने पूर्वजों को मुक्ति या मोक्ष की प्राप्ति दिला पाएगा। श्राद्ध कर्म के बाद कौवों को भोजन कराने से पितृ प्रसन्न होंगे।
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इस वरदान के बाद जब श्री राम का वनवास समाप्त होने की सीमा पर था और उन्हें अपने पिता दशरथ का श्राद्ध करना था तब माता सीता ने कौवे की सहायता से ही ससुर दशरथ जी का तर्पण एवं श्राद्ध कर्म पूरा किया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
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