Dashrath Krit Shani Stotra: क्या है दशरथ कृत शनि स्त्रोत? जानें इसे पढ़ने के फायदे

भगवान शनि देव की भक्ति कर लोग जीवन के सभी कष्ट और दुखों से मुक्ति पा सकता है। भगवान शनि की भक्ति में एक बार राजा दशरथ ने एक स्रोत की रचना की थी, चलिए जानते हैं इसके बारे में।

know About dashrath krit shani stotra and its Benefits ()

हिंदू धर्म में शनिवार के दिन को न्याय के देवता शनिदेव का दिन माना गया है। इस दिन शनि की दृष्टि से पीड़ित लोग शनिदेव की पूजा और उपासना करते हैं। शास्त्रों और पुराणों में शनिदेव को कर्मफल दाता कहते हैं। आसान शब्दों में समझें, तो शनि देवता कर्म के अनुसार फल देते हैं। शनि देव अच्छे कर्म करने वाले मनुष्यों के कष्ट हरते हैं, वहीं बुरा करने वालों को दंडित भी करते हैं। एक बार शनि की कुदृष्टि जिस व्यक्ति पर पड़ जाए तो वह जीवन भर कष्ट पाता है, ऐसे ही एक बार शनि की दृष्टि राजा दशरथ के ऊपर भी पड़ी थी, जिसके बाद राजा दशरथ ने शनि स्त्रोत की रचना की थी, चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

राजा दशरथ ने कब की थी शनि स्त्रोत की रचना

एक बार जब शनि कृतिका से रोहिणी नक्षत्र में जाकर रोहिणी भेदन करने वाले थे। कई सारी कथाओं में शनि देव रोहिणी भेदन कर चुके थे, जिससे बहुत से जगहों पर अनावृष्टि अकाल पड़ गया था। अकाल से परेशान सभी ऋषि राजा दशरथ के पास गए, उस समय धरती में राजा दशरथ राज कर रहे थे। राजा दशरथ सीधा शनि देव के पास गए, लेकिन जब शनि देव की दृष्टि राजा दशरथ के ऊपर पड़ी, तो वह अपने रथ के साथ पृथ्वी की ओर गिरने लगे। गिरते हुए राजा दशरथ को जटायु ने बचाया था, तभी राजा दशरथ ने सृष्टि को साक्षी मान जटायु को अपना परम मित्र बताया था। राजा दशरथ फिर से शनि देव के द्वार के पास गए और दश विद शनि स्तोत्र की रचना की। शनि देव स्तोत्र सुन राजा के बल, पराक्रम और भक्ति को पहचान गए और प्रसन्न होकर राजा दशरथ की सारी बात मानी, साथ ही शनि देव ने यह भी कहा कि जो भी दशरथ कृत दश विद शनि स्त्रोत का पाठ करेगा उसे मेरी दृष्टि से राहत मिलेगी।

दशरथकृत शनि स्तोत्र

दशरथ उवाच:

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।
सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥
याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।
एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥
प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥

स्तोत्र प्रारंभ

shanidev
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥

इसे जरूर पढ़ें - शनिदेव को क्या नहीं चढ़ाना चाहिए?

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥

दशरथ उवाच:

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीड़ा देया न कस्यचित् ॥

अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह के और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी से। अपने विचार हमें आर्टिकल के ऊपर कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।

Image Credit: Freepik

आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है! हमारे इस रीडर सर्वे को भरने के लिए थोड़ा समय जरूर निकालें। इससे हमें आपकी प्राथमिकताओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। यहां क्लिक करें

HzLogo

HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!

GET APP