महाशिवरात्रि का व्रत 26 फरवरी, दिन बुधवार को रखा जाएगा। इस दिन शिवलिंग पूजन और अभिषेक का विशेष महत्व है। ऐसे में अगर आप भी महाशिवरात्रि के व्रत रख रहे हैं तो यहां पूजा समय से लेकर व्रत पारण तक के बारे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से विस्तार में हर एक बात जान लें।
क्या है महाशिवरात्रि की पूजा का समय?
महाशिवरात्रि की पूजा चार प्रहर में होगी। पहला प्रहर 26 फरवरी को शाम 6 बजकर 19 मिनट से रात 9 बजकर 26 मिनट तक हा। दूसरा प्रहर 26 फरवरी को रात 9 बजकर 26 मिनट से शुरू होकर रात 12 बजकर 34 मिनट तक है। तीसरा प्रहर 26 फरवरी को रात 12 बजकर 34 मिनट से 27 फरवरी को सुबह 3 बजकर 41 मिनट तक है और चौथा प्रहर 27 फरवरी को सुबह 3 बजकर 41 मिनट से सुबह 6 बजकर 44 मिनट तक है।
क्या है महाशिवरात्रि की पूजा की विधि?
महाशिवरात्रि के व्रत में सुबह स्नान के बाद सफेद कपड़े पहनकर निराहार व्रत का संकल्प लें। यदि निराहार नहीं रह सकते, तो दूध, फल या फलों के रस का सेवन करें। दिनभर 'ऊं नम: शिवाय' मंत्र का जाप करें और त्रिपुंड का विशेष महत्व समझते हुए पूजन करें। शाम को सूर्यास्त से पहले स्नान करें, फिर शुभ मुहूर्त में गंगाजल छिड़ककर उत्तर दिशा की ओर त्रिपुंड लगाएं। घर के मंदिर में गणपति के बाद शिवलिंग की पूजा करें।
रुद्राक्ष और बेलपत्र लेकर मंत्र का उच्चारण करें। जल से शिवलिंग का अभिषेक करें, फिर पंचामृत से अभिषेक करें। बेलपत्र चढ़ाकर त्रिपुंड लगाएं और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। बेलपत्र पर ‘ऊं’ लिखकर अर्पित करें। भांग, पान, धतूरा, शमी पत्र और अन्य पदार्थ चढ़ाकर दीपक जलाएं और शिव चालीसा का पाठ करें। अंत में भोग अर्पित करें, मंत्र जाप करें, आरती करें और प्रसाद बांटें।
क्या है महाशिवरात्रि की पूजा का महत्व?
महाशिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित पर्व है, जिसे भक्त पूरे साल इंतजार करते हैं। इस दिन शिवलिंग के रूप में भगवान शिव ने पहली बार प्रकट होने के साथ ही उनका विवाह भी हुआ था। सच्चे मन से व्रत और पूजा करने से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद मिलता है, जिससे सुख, शांति, समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
क्या है महाशिवरात्रि की व्रत कथा?
महाशिवरात्रि की कथा एक शिकारी चित्रभानु की है, जो कर्ज से परेशान था। एक दिन साहूकार ने उसे शिव मठ में बंदी बना लिया और उसे शिवरात्रि की कथा सुनने को मिली। चित्रभानु ने वचन दिया कि वह अगले दिन कर्ज चुका देगा, और साहूकार ने उसे छोड़ दिया। जंगल में शिकार करते वक्त, चित्रभानु ने अनजाने में शिवलिंग पर बेलपत्र गिराकर पूजा की। उसकी दयालुता और भक्ति से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।
चित्रभानु ने एक गर्भवती हिरण को शिकार करने से मना किया, क्योंकि उसने कहा कि उसकी हत्या से दो लोगों की जान जाएगी। हिरण ने वचन दिया कि वह बाद में शिकार के लिए आएगी। कुछ समय बाद, एक और हिरण आई और कहा कि वह अपने पति की तलाश में है। चित्रभानु ने उसे भी जाने दिया। रात को एक हिरण अपने बच्चों के साथ आई। शिकारी चित्रभानु ने शिकार करने की सोची, लेकिन हिरण ने कहा कि वह बच्चों के पिता की तलाश में है।
शिकारी ने दया दिखाते हुए उसे भी जाने दिया। इसके बाद चित्रभानु शिकार करने के लिए एक बेलपत्र के पेड़ पर चढ़ा और उसने अनजाने में पेड़ को हिलाकर बेलपत्र शिवलिंग पर गिराने शुरू कर दिए। इसके बाद हिरन के परिवार का मुखिया आया और उसने शिखरी से पूछा कि कहीं शिखारी ने समूचे हिरन परिवार का वध तो नहीं कर दिया। जिसके बाद शिकारी ने बताया कि वह मुखिया को ही ढूंढ रहे थे और शिकारी ने परिवार को जाने दिया।
इसके बाद हिरन ने यह वचन दिया कि जैसे ही उसका मिलन उसके परिवार से हो जाएगा वह स्वयं शिकारी को खुद को सौंप देगा। चित्रभानु ने अनजाने में शिवलिंग की पूजा और रात्रि जागरण किया, जिससे उसके मन में दया और पश्चाताप जाग उठा। उसी समय हिरण का पूरा परिवार शिकार बनने के लिए सामने आया, और चित्रभानु ने उन्हें जीवनदान दे दिया। चित्रभानु से अनजाने में महाशिवरात्रि के दिन शिव पूजा हो गई और उसे शिव लोक मिला।
क्या है महाशिवरात्रि की आरती?
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
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क्या है महाशिवरात्रि के व्रत पारण का समय और विधि?
महाशिवरात्रि के व्रत पारण का समय 27 फरवरी, दिन गुरुवार को सुबह 6 बजकर 48 मिनट से शुरू होगा और सुबह 8 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। व्रत का पारण करने से पहले स्नान करके भगवान शिव की उपासना करें, फिर सात्विक भोजन करें। व्रत पारण के समय तला-भुना खाने से बचें, लेकिन मिठी चीजों का सेवन कर सकते हैं। इसके बाद सामान्य भोजन करें। इस प्रकार व्रत का पूर्ण लाभ मिलता है और भगवान शिव साधकों से प्रसन्न होते हैं।
क्या है महाशिवरात्रि के उपाय?
महाशिवरात्रि की रात 12 बजे शिव मंदिर में धतूरा अर्पित करें और आधे घंटे तक ‘श्री शिवाय नमस्तुभ्यं’ मंत्र का जाप करें। फिर धतूरा घर लाकर उसे लाल कपड़े में बांधकर धन स्थान, नौकरी स्थल व्यापार स्थल या खेत में रखें। यह उपाय महाशिवरात्रि पर शीघ्र फल देता है। इस उपाय को करने से धन-धान्य बढ़ता है। घर से दरिद्रता चली जाती है और घर में सुख-समृद्धि, शांति, सौभाग्य, संपदा, संपन्नता आदि का वास होता है।
महाशिवरात्रि का ध्यान कितने बजे करना है?
महाशिवरात्रि का ध्यान मध्य रात्रि में करना चाहिए यानी कि 26 फरवरी को महाशिवरात्रि है तो उस आधार पर 26 तारिख को रात 12 बजे ध्यान लगाना बहुत शुभ और लाभकारी रहेगा।
महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर क्या चढ़ाना चाहिए?
महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, चावल, काले तिल, गेहूं, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद चंदन, आंक के फूल, भस्म, रुद्राक्ष आदि चढ़ाने चाहिए। इससे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
महाशिवरात्रि पर 4 प्रहर पूजा कैसे करें?
महाशिवरात्रि के दिन रात्रि के चारों प्रहरों में विशेष प्रकार से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।
पहले प्रहर में, शिवलिंग का अभिषेक दूध से करना चाहिए और इस समय "ह्रीं ईशानाय नमः।" मंत्र का जाप करना चाहिए।
दूसरे प्रहर में, शिवलिंग का अभिषेक दही से करना चाहिए और "ह्रीं अघोराय नमः।" मंत्र का जाप करना चाहिए।
तीसरे प्रहर में, शिवलिंग का अभिषेक घी से करना चाहिए और "ह्रीं वामदेवाय नमः।" मंत्र का जाप करना चाहिए।
चौथे प्रहर में, शिवलिंग का अभिषेक शहद (मधु) से करना चाहिए और "ह्रीं सद्योजाताय नमः।" मंत्र का जाप करना चाहिए।
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image credit: herzindagi
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