Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha 2023: इस एक श्राप से भगवान विष्णु बन गए थे पत्थर, जानें पौराणिक कथा

पंचांग के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है देव उठनी एकादशी। दिवाली के 11 दिन बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

 
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Dev Uthani Ekadashi Katha: हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व माना जाता है। पंचांग के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है देव उठनी एकादशी। दिवाली के 11 दिन बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

इस साल देव उठनी एकादशी 23 नवंबर, दिन गुरुवार को पड़ रही है। मान्यता है कि देव उतनी एकादशी की पूजा बिना व्रत कथा के संपन्न नहीं होती है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें देव उठनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में बाताते हुए जानकारी दी कि कैसे भगवान विष्णु पत्थर के रूप में बदल गए।

पौराणिक कथा के अनुसार, वृंदा नामक एक स्त्री थीं जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं और साथ ही आयुर्वेद की ज्ञाता थीं। उनका विवाह भगवान शिव के अंश जालंधर से हुआ था। जालंधर न सिर्फ शक्तिशाली था बल्कि कई आसुरी और मायावी दिव्य शक्तियों का स्वामी भी था।

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जालंधर ने तीनो लोकों पर आतंक मचाया हुआ था। चूंकि जालंधर भगवान शिव (भगवान शिव का प्रतीक) का अंश था इसलिए किसी के लिए भी उसको मार पाना संभव न था। शिवांश होने के कारण मात्र भगवन सिव ही उसका वध कर सकते थे लेकिन यह भी तब संभव था तब माता पार्वती उनके साथ हों।

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जालंधर ने माता पार्वती को दिव्य शक्तियों के माध्यम से एक आसुरी गुफा में छिपा दिया था। हालांकि यह भगवान शिव की ही लीला थी जिससे जालंधर के वध की घड़ी समीप आ सके और उसके पापों का घड़ा भरे। वरना किसमें इतनी शक्ति कि आदि शक्ति को कैद कर सके।

बहराल, इस घटना के बाद भगवान शिव ने जालंधर का वध करने का निर्णय लिया और जालंधर से युद्ध करने पहुंच गए लेकिन महादेव चाहकर भी जालंधर का वध नहीं कर पा रहे थे क्योंकि जालंधर की पत्नी वृंदा ने सतीत्व को जालंधर की ढाल बनाया हुआ था।

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वृंदा भगवान विष्णु के अखंड पूजा-पाठ में लीन थी जिसके कारण उस पूजा से उत्पन्न शक्तियां जालंधर को दिव्यता प्रदान कर रही थीं। तब भगवान विष्णु (भगवान विष्णु के छल) ने महादेव की सहायता के लिए वृंदा का सतीत्व भंग किया। अपने आराध्य द्वारा ऐसा होता देख वृंदा दुखी हुई।

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साथ ही, वृंदा ने क्रोध में भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया और खुद आत्मदाह कर लिया। तब भगवान विष्णु ने वृंदा को यह वरदान दिया कि उनका यह पत्थर रूप शालिग्राम के रूप में जाना जाएगा और वृंदा तुलसी के रूप में अवतरित होंगी।

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह होगा और उसी दिन देव उठनी एकादशी मनाई जाएगी। तभी से देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालग्राम भगवान के विवाह की परंपरा चली आ रही है।

आप इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से देव उठनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में जान सकते हैं और पूजा के दौरान कथा पढ़कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

image credit: shutterstock

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