सावन का महीना हिंदू धर्म में बहुत खास माना जाता है खासकर भगवान शिव के भक्तों के लिए। यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और माना जाता है कि इस दौरान उनकी पूजा करने से वे बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। सावन में कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है जिसमें भक्त पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। सावन में भगवान शिव की पूजा करने से सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आशीर्वाद मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, सावन के महीने से जुड़े कुछ नियम बताये गए हैं जिनका पालन करना लाभकारी सिद्ध हो सकता है। इसी कड़ी में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि सावन के महीने में तुलसी के पत्तों को तोड़ना नहीं चाहिए। आइये जानते हैं क्या है इसके पीछे का तर्क।
सावन में तुलसी को स्पर्श करने से क्या होता है?
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दौरान कई नियमों का पालन किया जाता है। अक्सर यह कहा जाता है कि सावन में तुलसी के पौधे को नहीं छूना चाहिए। सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं और उन्हें हरिप्रिया भी कहा जाता है।
तुलसी का एक नाम वृंदा भी है जो असुर जालंधर की पत्नी थीं। जालंधर को भगवान शिव ने मारा था और उसके बाद वृंदा ने अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से खुद को तुलसी के पौधे में परिवर्तित कर लिया था।
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शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार, सावन के महीने में भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं। ऐसे में भगवान विष्णु के शयन काल में तुलसी तोड़ना या स्पर्श करना वर्जित माना जाता है। सावन का समय इसी शयन काल के अंतर्गत आता है।
देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। यह चातुर्मास का समय होता है जिसमें सावन भी शामिल है। इस अवधि में तुलसी को छूने या तोड़ने से भगवान विष्णु की निद्रा में बाधा पड़ने की मान्यता है।
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तुलसी को भगवान विष्णु का प्रिय होने के कारण उन्हें कष्ट न हो इसलिए ऐसा करने से मना किया जाता है। भगवान शिव को तुलसी अर्पित नहीं की जाती है। पुराणों के अनुसार, जालंधर के वध के बाद भगवान शिव ने तुलसी को स्वीकार नहीं किया। इसलिए जब सावन में मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा होती है तो तुलसी को प्रत्यक्ष रूप से शिव पूजा में उपयोग नहीं किया जाता। हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि तुलसी अपवित्र है बल्कि यह एक मर्यादा है।
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