हिंदू पुराणों के अनुसार भगवान शिव द्वारा बसाई गई उनकी सबसे प्यारी नगरी वाराणसी को मोक्ष का द्वार कहा जाता है। शिव की नगरी वाराणसी को लेकर ऐसा कहा जाता है कि यहां पर जीव,जन्तु और मानव आकर अगर अपने प्राण त्यागता है तो उसे जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है। देश-दुनिया से लाखों लोग यहां पर गंगा में स्नान कर भगवान विश्वनाथ के दर्शन करते हैं और कई श्रद्धालु यहां से जल अपने घर ले जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि बनारस से जल लाना पाप के योग्य माना जाता है। आइए इस लेख में पंडित आचार्य उदित नारायण त्रिपाठी से जानते हैं कि आखिर बनारस से जल क्यों नहीं लाना चाहिए।
गंगाजल का महत्व क्या है?
हिंदू धर्म में, विभिन्न नदियों को अलग-अलग स्तर का सम्मान दिया जाता है। सभी नदियों में गंगा को सबसे पवित्र माना जाता है। गंगा नदी के जल को पवित्र और शुद्ध माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा नदी में पापों को धोने और आत्मा को शुद्ध करने की क्षमता है, चाहे वह जीवित हो या मृत। गंगाजल का इस्तेमाल अलग-अलग तरीके से किया जाता है।
भक्त गण अपने घरों में प्रतिदिन पूजा के बाद शुद्धिकरण करने के लिए इसे छिड़कते हैं। वहीं कुछ लोग नहाने के पानी में थोड़ा सा पानी मिलाकर खुद को शुद्ध करते हैं, घर के मंदिर में देवताओं को चढ़ाते हैं। इसके साथ ही जन्म, विवाह और खासकर मृत्यु संस्कारों के दौरान भी गंगाजल का इस्तेमाल करते हैं। मृत्यु होने के उपरांत मृतक के मुंह में गंगाजल डाला जाता है ताकि आत्मा स्वर्ग पहुंचे और उसका जीवन सुरक्षित रहे।
आखिर शिव नगरी से क्यों नहीं लाना चाहिए गंगाजल?
बनारस को मोक्षदायिनी तट माना जाता है। यहां पर असमसान देव का मंदिर है,जहां पर शिव के अघोर रूप के पूजा होती है। इसी के साथ बनारस का एक और महत्व है यहीं पर अघोरी मसानी सिद्धि भी करते है। जिस वजह से बनारस अन्य तीर्थों से अलग हो जाता है। काशी से गंगाजल न लेने के पीछे का कारण यह है कि लोग मोक्ष पाने के लिए काशी आते हैं, चाहे वे जीवित हों या मृत। जब मृतक को चिता पर जलाया जाता है और उनकी राख को गंगा में विसर्जित किया जाता है। अगर संयोग से आप काशी से गंगाजल ले जाते हैं और उस पानी में मृतक आत्मा के अंग, राख या अवशेष आ जाते हैं, तो मृतक का मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र बाधित होगा, जिसकी वजह आत्मा को पूरी तरह से मोक्ष नहीं मिल पाता है।
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