बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र और जल चढ़ाने से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है और वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं जिससे भक्तों को मनचाहा वरदान मिलता है। बेलपत्र में तीन पत्तियां जुड़ी होती हैं जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। यह भगवान शिव के तीन नेत्रों या त्रिशूल का भी प्रतीक माना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, बेलपत्र में तीन जन्मों के पापों का नाश करने की शक्ति होती है। शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और दरिद्रता दूर होकर सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने से घर की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और घर में धन का आगमन होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बेलपत्र की पत्तियों में मां लक्ष्मी का वास माना गया है। तो चलिए जानते हैं इस कड़ी में कि आखिर कैसे भगवान शिव की प्रिय वस्तु बेलपत्र में मां लक्ष्मी का वास हुआ।
बेलपत्र में कैसे आईं मां लक्ष्मी?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने का विचार किया। उन्होंने हिमालय पर्वत पर जाकर भगवान शिव के निवास स्थान पर तपस्या करने का निश्चय किया। जब वह हिमालय पहुंची तो उन्होंने देखा कि वहां ओर बेल के वृक्ष ही बेल के वृक्ष थे। देवी लक्ष्मी ने सोचा कि भगवान विष्णु की पूजा के लिए बेलपत्र बहुत शुभ रहेगा क्योंकि यह भगवान विष्णु के आराध्य भगवान शिव का भी प्रिय है।
देवी लक्ष्मी ने प्रतिदिन हजारों की संख्या में बेलपत्र एकत्र किए और उन्हें शिव लिंग पर अर्पित करने लगीं। वह पूरे समर्पण और भक्ति भाव से भगवान शिव का ध्यान करती थीं। उनका संकल्प था कि जब तक उन्हें भगवान विष्णु की प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक वह अपनी तपस्या जारी रखेंगी। एक दिन, जब देवी लक्ष्मी बेलपत्र चढ़ा रही थीं तो उन्हें अचानक भगवान शिव के दर्शन हुए। भगवान शिव उनकी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने देवी लक्ष्मी से वरदान मांगने को कहा।
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देवी लक्ष्मी ने भगवान शिव से कहा कि वह भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हैं। भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद, देवी लक्ष्मी ने अपनी तपस्या समाप्त की,लेकिन तपस्या के दौरान उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में बेलपत्र का उपयोग किया था कि उनके हाथ दुखने लगे थे और कुछ बेलपत्र उनके शरीर से स्पर्श करते हुए गिरे थे।
तब भगवान शिव ने देवी लक्ष्मी को आशीर्वाद दिया और कहा कि आज से जो भी भक्त मुझे बेलपत्र अर्पित करेगा, उसे देवी लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होगी। इसके बाद, देवी लक्ष्मी ने बेल के वृक्ष को अपना निवास स्थान बना लिया। उन्होंने बेल के वृक्ष में अपनी आत्मा का एक अंश स्थापित कर दिया। यही कारण है कि आज भी यह माना जाता है कि बेल के वृक्ष की जड़ में साक्षात माता लक्ष्मी का वास होता है।
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