कभी सोचा है कि ऐसा क्यों बोला जाता है कि भगवान शिव की तीसरी आंख खुल गई तो सब तहस-नहस हो जाएगा? हमने भगवान शिव की तीसरी आंखों से जुड़ी बहुत सारी कथाएं भी सुनी हैं, मगर हमने कभी भी यह जानने की कोशिश नहीं की आखिर क्यों भगवान शिव की तीसरी आंख को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है। कभी आपने सोचा है कि भगवान शिव की तीसर आंख से आखिर क्या दिखाई देता है? तो चलिए आज हम आपको बताएंगे कि भगवान शिव की तीसरी आंख को क्यों विनाशकारी समझा जाता है। इसके लिए हमने उज्जैन के पंडित मनीष शर्मा से बात की है। वह कहते हैं, "दो आंखें तो सभी के पास होती हैं, मगर शिव जी के पास अगर 3 आंखें हैं, तो कुछ तो विशेष बात होगी। भगवान शिव की तीसरी आंख आपको जीवन का सत्य दिखाती हैं और जो भ्रम आपने अपने मन में पाल रखा है उसका नाश करती हैं।" इतना ही नहीं, पंडित जी नें हमें शिव जी के तीसरे नेत्र का अर्थ और महत्व दोनों बताया, साथ ही इससे जुड़ी ऐसी कथाएं सुनाई जो आपने पहले कभी नहीं सुनी होंगी।
क्या हैं भगवान शिव के तीसरे नेत्र का अर्थ?
भगवान शिव की तीसरी आंख सत्य और ऊर्जा का संगम है। यह उस भ्रम को भस्म करता है, जो हम मनुष्यों ने अपने-अपने मन में पाल रखा है। शास्त्रों में माना गया है कि भगवान बृह्मा सृष्टी के रचयता हैं, भगवान विष्णु जगतपिता हैं और महादेव जगत के पालनहार हैं। भगवान शिव अपनी आंखों से ही जगत के सूक्ष्म से सूक्ष्म प्राणी की रक्षा करते हैं। और अगर वही नेत्र जब बंद होते हैं और तीसरे खुल जाते हैं, सब कुछ विपरीत हो जात है। भगवान शिव को भोले इसी लिए कहा जाता है कि क्योंकि वह साधना करते हैं और मन की आंखों से सब देखते रहते हैं। मगर शिव जी की तीसरी नेत्र न्याय का प्रतीक हैं। यह तब ही खुलती हैं, जब शिव जी के भोलेपन का कोई फायदा उठाता है। ऐसे में केवल एक चीज होती है और वो है सर्वनाश।
कैसे हुसा भगवान शिव के तीसरे नेत्रा का प्राकट्य?
पंडित मनीष शर्मा बताते हैं, "भगवान शिव के तीसरे के प्राकट्य से जुड़ी दो कथाएं प्रचलित हैं। पहली यह है कि माता पार्वती ने एक बार प्रेम में आकर भगवान शिव की आंखें अपने हाथों से ढक दी। ऐसा करने पर पूरे जगत में अंधेरा छा गया। इसलिए इस अंधेरे को उजाले में बदलने के लिए भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली, जो उनके माथे पर थीं।" एक दूसरी कथा के अनुसार वासना के देवता कामदेव ने शिव जी की तपस्या को भंग करने के उद्देश्य से एक बाण उनके हृदय पर चलाया। ऐसे में क्रोधित होकर भगवान शिव जी के माथे से ज्वाला निकलने लगी और यही ज्वाला बाद में शिव जी का तीसरा नेत्र कहलाई। पंडित जी कहते हैं, "मगर कुछ शास्त्रों में इस बात का जिक्र किया गया है कि ध्यान और योग से भगवान शिव को तीसरी आंख मिली। ध्यान के वक्त शिव जी मन की आंखों से संसार का पालन करते हैं और जब कुद अनिष्ट होता है और उनका ध्यान भंग करता है, तब वह अपनी तीसरी आंख खोलकर उसे भंग कर देते हैं।"
शिव जी के तीसरे नेत्र क्या देख सकते हैं?
भौतिक से परे हर वो चीज जो आप साधारण आंखों से नहीं देख सकते हैं, वो भगवान शिव अपनी तीसरी आंख सके देख लेते हैं। यनी भौतिकता से परे, जो सत्य है, शुरुआत के बाद जो अंत है, मन के अंदर जो भ्रम है वो सब कुछ भगवान शिव अपनी तीसरी आंख से देख सकते हैं।
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शिव जी की तीसरी आंख का क्या नाम है?
शिव जी की तीसरी आंख सच्चाई का प्रतीक है। अगर आपने गलत किया है, तो आपके साथ गलत ही होगा। ऐसे में भगवान शिव की तीसरी आंख आपको सत्य का ज्ञान देती हैं। इसलिए इसे ज्ञान चक्षु भी कहा जाता है।
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