सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण ऐसी खगोलीय घटनाओं में से हैं जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाता है और कुछ समय के लिए सूर्य पूरी तरह से ढक जाता है और विज्ञान में भी इसका अलग महत्व बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी ग्रहण का ज्योतिष से जुड़ाव होता है और इसके कुछ न कुछ प्रभाव जीवन में देखने को भी मिलते हैं।
वहीं मान्यता है कि ग्रहण के दौरान कुछ काम करने और न करने की सलाह दी जाती है। इस साल का पहला सूर्य ग्रहण 20 अप्रैल को पड़ेगा। मान्यता यह भी है कि किसी भी ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ भी न करने की बात कही जाती है। आइए ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया जी से जानें कि इस दौरान पूजा-पाठ क्यों नहीं करना चाहिए और इस दौरान मंदिर के कपाट बंद क्यों होते हैं।
ग्रहण के दौरान मंदिर बंद क्यों होते हैं
राहु को सूर्य ग्रहण का कारण माना जाता है। राहु और केतु का चक्र एक सामान्य खगोलीय घटना है और इनके प्रभाव से ही सूर्य और चंद्र ग्रहण होते हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि ग्रहण के दौरान मंदिर खुले रहते हैं तो ग्रहण की दिव्य ऊर्जा भक्तों को उस समय प्रभावित कर सकती है जब वे मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं। मंदिर के भीतर से ऊर्जा के साथ सूर्य और ग्रहों की ऊर्जा का संपर्क होता है।
मान्यता यह है कि जब मंदिर में मूर्तियां स्थापित की जाती हैं तब मूर्तियों को पवित्र और सक्रिय किया जाता है। चूंकि ग्रहण के दौरान असामान्य नकारात्मक विकिरण बिखरा हुआ होता है इस वजह से मंदिरों के कपाट ग्रहण में बंद कर दिए जाते हैं, जिससे कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
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ग्रहण के दौरान पूजा क्यों वर्जित होती है
ग्रहण भले ही खगोलीय घटना क्यों न हो, लेकिन ज्योतिष में भी इसको लेकर कई मान्यताएं हैं। धार्मिक रूप से ग्रहण को अशुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्य ग्रहण लगता है उस समय सूर्य देव संकट में होते हैं और ऐसे ही चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा संकट में होता है। इस समय सभी नकारात्मक शक्तियां हावी हो जाती हैं, इसलिए इस दौरान पूजन न करने की सलाह दी जाती है।
ग्रहण के दौरान दिव्य ऊर्जा की दक्षिणावर्त गति बाधित होने लगती है। इस वजह से यह मूर्तियों के चारों ओर की आभा को भी बाधित करती है। इसलिए सूर्य की ग्रहण से प्रभावित किरणों की वजह से इस दौरान पूजन करने का पूर्ण फल भी नहीं मिलता है। यही वजह है कि पूजा न करने की सलाह दी जाती है। इन्हीं कारणों से ग्रहण के तुरंत बाद घर की मंदिर की सफाई करने की सलाह दी जाती है।
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सूतक काल में ही बंद होते हैं मंदिर के दरवाजे
सूतक ग्रहण से पहले आने वाला अशुभ समय होता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। सूर्य ग्रहण में चार पहर होते हैं, जिसमें एक पहर तीन घंटे के बराबर होता है और इसलिए सूतक काल किसी भी ग्रहण से 12 घंटे पहले ही शुरू हो जाता है।
ज्योतिष के अनुसार जब ग्रहण दिखाई दे रहा होता है उस समय सूतक काल और ज्यादा प्रभाव डालता है। सूतक काल में भी मंदिर में और घर में पूजन न करने की सलाह दी जाती है और मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है जिससे सभी अशुभ ग्रह योगों के सभी हानिकारक प्रभावों से देवताओं की रक्षा की जा सके।
बंद होते हैं मंदिर के द्वार
ग्रहण के दौरान मंदिरों के गर्भगृह, जहां मुख्य देवता स्थित होते हैं उसे भी बंद रखा जाता है जिससे किसी भी नकारात्मक ऊर्जा को मंदिरों के भीतर सकारात्मक ऊर्जा को बेअसर करने से रोका जा सके। यही नहीं ग्रहण के दौरान मंदिर को पवित्र करने के लिए सभी मूर्तियों में गंगाजल का छिड़काव किया जाता है।
ज्योतिष की मानें तो किसी भी ग्रहण के दौरान पूजा -पाठ न करने की सलाह दी जाती है, जिससे किसी भी नकारात्मक प्रभाव से बचा जा सके। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
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