'कबूतर जा जा जा कबूतर जा जा जा' ये गाना तो आपने सुना ही होगा। कबूतर को लेकर ना जाने कितनी ही बातें कही जाती हैं और कबूतर को सबसे अच्छा मैसेंजर कहा जाता है। माना जाता है कि कबूतर ही पुराने जमाने में चिट्ठी लेकर जाते थे। हाल ही की एक खबर के बारे में आपको बताऊं तो कतर में कुछ समय पहले एक कबूतर के जरिए ड्रग्स की स्मगलिंग करते हुए पकड़े गए हैं। कबूतर के पास इंसानों जैसा दिमाग तो होता नहीं है कि वो किसी ऐड्रेस को याद रखें फिर आखिर क्यों कबूतरों को ही चिट्ठी लेकर जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था?
वर्ल्ड वॉर 1 और वर्ल्ड वॉर 2 के समय भी यूरोप में संदेशों को पहुंचाने के लिए इन्हीं का इस्तेमाल किया जाता था। कभी आपने सोचा है कि इसके लिए कभी कौवे, कोयल, गिद्ध, चील जैसे किसी और पक्षी का नहीं सिर्फ कबूतर का इस्तेमाल ही क्यों किया गया था?
होमिंग पिजन (Homing Pigeons) उन कबूतरों को कहा जाता है जो मैसेज इधर से उधर पहुंचाने का काम करते हैं। ये टर्म 1900's में दिया गया था जब वर्ल्ड वॉर के समय उन्हें यूज किया जाने लगा। कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि कबूतर लगभग 1600 मील उड़कर अपने घर वापस पहुंच सकते थे।(बालकनी में बार-बार आने वाले कबूतरों से कैसे पाएं निजात)
इनकी स्पीड भी 60 मील प्रति घंटे तक की हो सकती थी। होमिंग पिजन टर्म भी इसलिए दिया गया था क्योंकि कबूतरों की आदत होती है कि वो पूरी दुनिया में कहीं भी हों वो अपने घर जरूर पहुंच जाते हैं।
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जैसा कि हमने पहले बताया कि कबूतरों की आदत होती है कि वो जहां भी हों अपने घर जरूर पहुंच जाते हैं। इसके लिए वो सूरज की दिशा, पृथ्वी का मैग्नेटिज्म, अपनी फोटोग्राफिक मेमोरी और अलग-अलग तरह की गंध का इस्तेमाल करके रास्ता पता करते हैं।
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ये कुछ-कुछ वैसा ही है जैसा सैटेलाइट के जरिए रास्ता पता किया जाता है। कबूतरों को नेचुरल सैटेलाइट कहा जाए तो गलत नहीं होगा। ऐसे में कबूतरों को एक जगह से पकड़कर दूसरी जगह ले जाते थे और फिर जब कोई संदेश भेजना होता था तो उसी कबूतर के गले में उस संदेश को बांध दिया जाता था।
ऐसे में कबूतर उड़ता हुआ अपने घर पहुंच जाता था और संदेश भी उस इंसान तक पहुंच जाता था जहां पहुंचाना चाहिए। 1600 की सदी में जहाज पर मौजूद सेलर अपने घरों में कबूतरों के जरिए ही संदेश भेजा करते थे।
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इस आर्टिकल की शुरुआत में ही हमने आपको बताया कि कतर में एक कबूतर ड्रग्स ले जाते पकड़ा गया था। ऐसे ही 1900 की सदी में कई जगहों पर कैरियर पिजन का इस्तेमाल किया गया था। 1903 में जर्मन अपोथैकेरी Julius Neubronner ऐसे ही कबूतरों का इस्तेमाल किया करती थी जो अर्जेंट दवाएं एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया करते थे। 1977 तक ऐसा ही एक सिस्टम नोटिस किया जाता है जहां दो इंग्लिश हॉस्पिटल्स के बीच 30 करियर पिजन लैब सैंपल पहुंचाते थे। सुबह-सुबह Plymouth General Hospital से कबूतर लैब सैंपल लेकर Devonport Hospital तक जाते थे।
हालांकि, इनमें से एक अस्पताल के बंद होने के बाद ये सिस्टम बंद हो गया और उसके बाद मॉर्डन ट्रांसपोर्ट सिस्टम ने कबूतरों वाले सिस्टम को हमेशा के लिए बंद कर दिया। पर अगर आप चाहें तो खुद भी अपना होमिंग पिजन ट्रेन कर सकते हैं।
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