Funeral Rituals: हिंदू धर्म में सोलह संस्कार में से एक है अंतिम संस्कार। इस दौरान कई प्रकार के नियम और तौर-तरीके बनाए गए है, जिसको ध्यान में रखते हुए मृत्यु व्यक्ति को श्मशान घाट तक ले जाया जाता है और उसका दाह संस्कार करते हैं। मृत्यु होने के बाद व्यक्ति को बांस की लकड़ी से अर्थी तैयार कर उसे लिटाया जाता है। बांस का अंतिम संस्कार में विशेष स्थान है। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि कभी भी चिता पर अर्थी को नहीं रखा जाता है। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है। चलिए पंडित आचार्य उदित नारायण त्रिपाठी से जानते हैं कि जिस बांस के बिना अंतिम संस्कार पूरा नहीं होता है। उसको आखिर जलती चिता के ऊपर क्यों नहीं रखते हैं।
अर्थी को चिता पर क्यों नहीं रखते हैं?
हिंदू शास्त्रों में पेड़-पौधों की विशेष रूप से पूजा-अर्चना में इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन वहीं बांस को नहीं जलाया जाता है। बता दें बांस को संस्कृत भाषा में वंश कहा जाता है। वंश का अर्थ कुल, खानदान और आने वाली पीढ़ी होता है। वहीं बांस को वंश परंपरा वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में बांस की लकड़ी को जलाना अशुभ माना जाता है। इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि इसे जलाना पितृ दोष और वंश का नष्ट करना होना है। यही वजह से अर्थी में इस्तेमाल होने वाले बांस की लकड़ी को नहीं जलाया जाता है।
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क्या है वैज्ञानिक नजरिया?
बांस को न जलाने के पीछे धार्मिक मान्यता होने के साथ ही वैज्ञानिक धारणा भी शामिल है। बता दें, बांस की लकड़ी में लेड सहित कई प्रकार के अन्य धातु पाए जाते हैं, जिसके जलने पर लेड ऑक्साइड बनता है। इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित होता है बल्कि सांस संबंधी समस्या भी हो सकती है। इसलिए शव को जलाते वक्त बांस को नहीं जलाया जाता है।
अर्थी बनाने के लिए बांस का ही क्यों होता इस्तेमाल?
हमारे आस-पास एक से बढ़कर एक लकड़ियां पाई जाती है। इसके बावजूद आखिर शव को ले जाने के लिए बांस का ही प्रयोग क्यों किया जाता है। मृत्यु होने के बाद शरीर भारी हो जाता है। बता दें, बांस अन्य लकड़ियों की अपेक्षा काफी हल्की होती है। साथ ही इसकी मदद से अर्थी को बनाना आसान होता है।
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