धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण को उनकी बांसुरी बहुत प्रिय है। भगवान शिव ने श्रीकृष्ण के जन्म के समय उन्हें बांसुरी उपहार में दी थी। तभी से कान्हा बांसुरी को अपने पास रखते थे, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी। चलिए हम आपको बताते हैं।
क्यों तोड़ दी श्रीकृष्ण ने बांसुरी?
कंस वध के बाद श्रीकृष्ण द्वारका वापस चले गए थे और वहीं पर बस गए थे। उन्होंने रुक्मणी से शादी भी कर ली। रूकमणी ने अपने पत्नी धर्म को बखूबी निभाया, लेकिन उनके मन में हमेशा राधा का ही वास रहा। जिंदगी के आखिरी पलों में अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर राधा और कृष्ण का दोबारा मिलन हुआ।
आखिरी मिलन पर श्रीकृष्ण ने राधा से कुछ मांगने के लिए कहा। तब राधा ने उनसे आखिरी बार बांसुरी बजाने की इच्छा जताई। इसके बाद श्रीकृष्ण की बांसुरी की सुरीली धुन सुनते-सुनते ही राधा ने अपना शरीर त्याग दिया। राधा के आध्यात्मिक रूप और कृष्ण में विलीन होने तक वह बांसुरी बजाते रहें। भगवान राधा-श्रीकृष्ण का प्रेम अमर है ,लेकिन फिर भी श्रीकृष्ण राधा का वियोग सह ना पाए और उन्होंने प्रेम के प्रतीक बांसुरी को तोड़कर फेंक दिया था।
श्रीकृष्ण को बांसुरी क्यों बहुत प्रिय थी?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान शिवजी बालकृष्ण को देखने आए तो उन्होंने ऋषि दधीचि की हड्डी को घिसकर एक सुंदर एवं मनोहर बांसुरी का निर्माण किया। जब भगवान शिव जी भगवान श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पहुंचे तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेट स्वरूप वह बांसुरी दी थी। मान्यताओं के अनुसार, श्रीकृष्ण की बांसुरी खुशी और आकर्षण आदि का प्रतीक मानी जाती है। साथ ही यह सदैव प्रेम व शांति का ही संदेश लोगों तक देती है।इसे भी पढ़ें- ये हैं श्री कृष्ण के वो 5 जिंदा सबूत जिन्हें वैज्ञानिकों ने भी स्वीकारा
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