हिंदू धर्म के चार प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक, द्वारका धाम, भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र नगरी के रूप में जाना जाता है। यह दिव्य नगरी गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में, अरब सागर के तट पर स्थित है। द्वारका नगरी के समुद्र में समा जाने की कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं, जो इस स्थान के रहस्यमय इतिहास को दर्शाती हैं। मन में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी समुद्र में विलीन हो गई। आखिर किसके श्राप की वजह से यह सभी घटनाएं घटीं। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से इस लेख में जानते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जरासंध के अत्याचारी शासन से अपनी प्रजा को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा छोड़ दिया। उन्होंने समुद्र के किनारे एक दिव्य शहर की स्थापना की, जिसे द्वारका के नाम से जाना गया। यह माना जाता है कि महाभारत युद्ध के 36 साल बाद द्वारका शहर समुद्र में डूब गया था।
महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय हुई और कौरवों का विनाश हुआ। जब युधिष्ठिर का हस्तिनापुर में राज्याभिषेक हो रहा था, तब श्री कृष्ण भी वहां उपस्थित थे। इस अवसर पर गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्री कृष्ण को दोषी ठहराया। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दिया, "यदि मैंने अपने आराध्य की सच्चे मन से पूजा की है और अपने पतिव्रत धर्म का पालन किया है, तो जिस तरह मेरे कुल का नाश हुआ है, उसी तरह तुम्हारे कुल का भी नाश तुम्हारी आंखों के सामने होगा।"
कहा जाता है कि इस श्राप के कारण श्री कृष्ण की द्वारका नगरी समुद्र में समा गई।
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एक समय की बात है, महर्षि विश्वामित्र, देवर्षि नारद और ऋषि कण्व द्वारका नगरी में आए। द्वारका में यादव वंश के कुछ शरारती लड़कों ने ऋषियों का अपमान करने की योजना बनाई। उन्होंने भगवान कृष्ण के पुत्र सांब को एक स्त्री के रूप में सजाया और उसे ऋषियों के सामने ले गए।
लड़कों ने ऋषियों से कहा कि यह स्त्री गर्भवती है और आप अपनी दिव्य दृष्टि से बताएं कि इसके गर्भ में पल रहा शिशु लड़का है या लड़की। ऋषियों ने जब यह देखा कि लड़के उनका उपहास कर रहे हैं, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने सांब को श्राप दिया कि उसके गर्भ से एक मूसल यानी कि लोहे का एक बड़ा गदा उत्पन्न होगा, और वही मूसल पूरे यदुवंश के विनाश का कारण बनेगा।
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ऋषियों के श्राप के अनुसार, सांब ने एक मूसल को जन्म दिया। उस मूसल से यदुवंश के लोगों ने आपस में लड़ना शुरू कर दिया, और धीरे-धीरे सभी यदुवंशी एक-दूसरे को मार कर समाप्त हो गए। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम ने भी अपनी देह त्याग दी।
एक दिन, भगवान कृष्ण एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे, तभी एक शिकारी ने उन्हें हिरण समझकर तीर मार दिया। उस तीर से भगवान कृष्ण ने अपनी लीला समाप्त की और अपने दिव्य धाम को लौट गए। जब पांडवों को द्वारका में हुई इस विनाशकारी घटना के बारे में पता चला, तो अर्जुन तुरंत द्वारका पहुंचे। उन्होंने भगवान कृष्ण के बचे हुए परिजनों को अपने साथ इंद्रप्रस्थ ले गए। जैसे ही वे द्वारका से निकले, पूरी द्वारका नगरी रहस्यमय तरीके से समुद्र में डूब गई।
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Image Credit- HerZindagi
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