भारत के उत्तर से दक्षिण तक तीन राज्यों में तीन दिन के अंदर बादल फटने की 6 घटनाएं सामने आई हैं। केरल के वायनाड से लेकर उत्तराखंड के केदारनाथ और हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, शिमला और मंडी जिलों में इस घटना ने कई लोगों को झकझोर कर रख दिया है। कई घरों के नामोनिशान मिट गए, वहीं कुछ लोगों ने अपने परिवार खो दिए। बीते दिन केदारनाथ में अचानक बादल फटने से मंदाकिनी नदी का जलस्तर बढ़ गया और तबाही मच गई।
यही नहीं, बादल फटने और भूस्खलन से केरल के वायनाड का हाल भी बेहाल हो गया है। लैंडस्लाइडिंग के कारण कई मंजीले मकान पल भर में टूटकर बिखर गए। अब तक यहां 300 से ज्यादा लोगों की मौत की खबर आ चुकी है। इस तरह जब बादल फटता है, तो बाढ़ के अलावा यह अपने साथ कई तरह की तबाही लेकर आता है।
इन सब के बीच अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये पहाड़ी इलाके में मानसून के दौरान हर साल ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं? यह घटना कब और कैसे होती है? बादल फटने के 5 मिनट के अंदर क्या-क्या होता है? आइए हम आपको बताते हैं कि बादलों के फटने का क्या मतलब है।
बादल फटना एक टेक्निकल टर्म है, जो कि अचानक बहुत ज्यादा बारिश होने के कारण होता है। मौसम विज्ञानी के अनुसार, यदि एक घंटे में 100 MM या उससे ज्यादा बारिश होती है, तो इस घटना को बादल फटना (cloudburst meaning) कहा जाता है। इसे साइंटिफिक भाषा में 'क्लाउडबर्स्ट' या 'फ्लैश फ्लड' भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर जमीन की सतह से 12-15 किलोमीटर की ऊंचाई पर होने वाली बहुत भारी बारिश की घटना को बादल का फटना माना जाता है।
बादल फटने की घटना तब होती है, जब ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह रुक जाते हैं और वहां मौजूद पानी की बूंदे आपस में मिल जाती हैं। इसके बाद अधिक भार होने से बादल का घनत्व भी बढ़ जाता है, जिसके कारण वह अचानक बहुत ज्यादा पानी बरसा देता है।
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बादल फटने की घटना वैसे तो कभी भीर और कहीं पर भी हो सकती है, लेकिन ज्यादातर ऐसी घटनाएं मानसून के समय पहाड़ी इलाकों में देखने को मिलती है। दरअसल, बादल फटने की घटना अमूमन धरती की सतह से 12-15 किलोमीटर पर होती है। पहाड़ी इलाकों में पानी से भरा बादल दो पहाड़ों के बीच फंस जाता है और अचानक यह पानी में बदल जाते हैं। यही कारण है कि एक ही जगह पर बहुत ज्यादा और तेज बारिश होने लगती है।
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बादल फटते ही तबाही आने में समय नहीं लगता है। ऐसे में, जल सैलाब से बाढ़ जैसी हालात पैदा हो जाते हैं। नदी-नालों में भयावह दृश्य देखने को मिलता है, जो किनारों को तोड़कर आसपास के इलाकों को अपने चपेट में ले लेती है। पानी की अचानक तेज गति से मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है और पहाड़ी इलाके में बड़े-बड़े पत्थर अचानक टूटकर गिरने लगते हैं। इनकी चपेट में आकर बड़े-बड़े भवन, पुल आदि भी पलक झपकते ध्वस्त हो जाते हैं। इस समय करल के वायनाड में ऐसे ही स्थिति बनी हुई है।
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