14 फरवरी को विक्की कौशल स्टारर फिल्म छावा सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी और फिल्म में छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी राजे के जीवन को दर्शाया गया है। फिल्म की वजह से एक बार फिर छत्रपति संभाजी महाराज उर्फ छावा की मौत को लेकर चर्चा का बाजार गर्म हो चुका है। कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 को हुई थी और मृत्यु से पहले उन्होंने किसी तरह का उत्तराधिकारी नहीं घोषित किया था। इसकी वजह से उनके बेटे छत्रपति संभाजी महाराज को कई तरह के षड्यंत्रों का सामना करना पड़ा था और फिर वह 20 जुलाई 1680 को मराठा साम्राज्य की गद्दी पर बैठ पाए थे।
छत्रपति संभाजी महाराज ने मुगलों का हमेशा डटकर सामना किया था और उन्हें कई बार हराया भी था, लेकिन उनके ही रिश्तेदारों ने जलन की भावना की वजह से दुश्मन से हाथ मिला लिया था और उनकी मृत्यु का कारण बने थे। दरअसल छत्रपति संभाजी महाराज को उनके ही रिश्तेदार गणोजी शिर्के और कान्होजी शिर्के ने औरंगजेब की गिरफ्त में करवाया था, तो आइए जानते हैं कि आखिर स्वराज्य के गद्दार गणोजी और कान्होजी कौन थे?
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कौन थे गणोजी शिर्के और कान्हो जी शिर्के?
छत्रपति संभाजी महाराज की पत्नी महारानी येसूबाई के भाई गणोजी और कान्होजी शिर्के थे और संभाजी महाराज की बहन राजकुंवरबाई साहेब के पति गणोजी शिर्के थे। दोनों शिर्के भाइयों के पिता पिलाजी शिर्के मुगलों के सरदार थे और दाभोल पर उनके पिता का शासन था। जब दाभोल पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने कब्जा कर लिया था, तो शिर्के भाइयों को स्वराज्य से ज्यादा वतनदारी से लगाव था। वे चाहते थे कि दाभोल की गद्दी पर महाराज उन्हें उत्तराधिकारी के रूप में बैठा दें। हालांकि, उन्हें मराठा साम्राज्य में सूबेदार का पद दे दिया गया था। हालांकि, दोनों भाई खुश नहीं थे। शिवाजी महाराज के निधन के बाद उनके बेटे छत्रपति संभाजी महाराज ने दाभोल को कब्जे में ले लिया। जब गणोजी और कान्होजी शिर्के ने संभाजी को समझाने की कोशिश की, तो उन्होंने उनकी बात से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद, दोनों शिर्के भाइयों ने मिलकर संभाजी महाराजा के खिलाफ षड्यंत्र रचा।
छत्रपति संभाजी महाराज से लेना चाहते थे बदला
कहा जाता है कि गणोजी और कान्होजी शिर्के को मुगल सेना के सरदार मकरब खान ने लालच देकर छत्रपति संभाजी महाराज को पकड़वाने में मदद मांगी थी। खान ने कहा था कि अगर वे संभाजी महाराज को पकड़वाते हैं, तो उन्हें दक्षिण का आधा राज्य दे दिया जाएगा। सत्ता के लालच में आकर भाइयों ने संगमेश्वर से निकलने पर छावा को रास्ते में भी फंसाने की प्लानिंग कर ली थी।
जब छावा संगमेश्वर से निकल रहे थे, तब ही गणोजी कुछ गांव वालों के साथ वहां पर पहुंच गया था। उसने कहा था कि गांव वाले महाराज का सम्मान करना चाहते है। इस पर संभाजी महाराज रुक गए थे और उन्होंने अपने साथ केवल 200 सैनिक ही रखे थे, बाकियों को रायगढ़ भेज दिया था।
औरंगजेब के साथ हाथ मिलाकर छावा को गिरफ्तार करवाया था
जैसे ही छत्रपति संभाजी महाराज ने रुकने का फैसला किया, तुरंत गणोजी शिर्के ने मकरब खान को सूचना भेज दी। मकरब खान 5000 मुगल सैनिकों की फौज के साथ संगमेश्वर पहुंच गया। संभाजी जिस रास्ते से जा रहे थे, उसकी जानकारी केवल मराठा सेना को थी। जिस रास्ते से छावा जा रहे थे वह बहुत संकारा और एक बार में एक ही इंसान वहां से निकल सकता था। जब मुगल सेना ने मराठा सेना पर धावा बोल दिया, तो सभी मराठा सैनिक एक-एक करके शहीद होते गए। आखिर में जब छत्रपति संभाजी महाराज बचे, तो औरंगजेब के आदेश के मुताबिक उन्हें जिंदा पकड़ा गया।
छत्रपति संभाजी महाराज की दर्दनाक मौत हुई थी
1 फरवरी 1689 को संभाजी महाराज को औरंगजेब के सामने और जंजीरों से बांधकर तुलापुर किले में ले जाया गया था। उनसे वहां पर औरंगजेब ने इस्लाम कुबूल करने को कहा था,लेकिन छावा ने इसे स्वीकार नहीं किया था। कहा जाता है कि करीब 38 दिनों तक संभाजी महाराज को औरंगजेब की सेना ने उल्टा लटकाकर पीटा था और उनकी आंखें निकाल दी थीं। इतना ही नहीं छावा के शरीर के एक-एक अंग को काटकर तुलापुर नदी में फेंका जा रहा था और 11 मार्च 1689 को उनके सिर को तन से जुदा कर दिया गया था।
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संभाजी की मृत्यु के बाद शिर्के भाइयों का क्या हुआ?
जब छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु हो गई, तो गणोजी और कान्होजी ने मुगलों के साथ हाथ मिला लिया। उन्होंने साजिश रचकर जिंजी पर भी जुल्फिकार खान का कब्जा करा दिया। हालांकि, बाद में शिर्के भाइयों ने छत्रपति राजाराम महाराज को जिंजी से बाहर निकालने में मदद की थी। इसकी वजह से दोनों भाइयों को औरंगजेब ने बंदी बना लिया था। हालांकि, औरंगजेब की मौत के बाद शिर्के भाई चंगुल से छूट गए थे और छत्रपति साहूजी महाराज के शासनकाल में मराठा साम्राज्य में दुबारा शामिल हो गए थे।
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