भगवान शिव का नटराज स्वरूप ब्रह्मांडीय नृत्य का प्रतीक है, जो सृजन, संरक्षण और संहार के त्रिकाल चक्र को दर्शाता है। यह मुद्रा सिर्फ एक मूर्ति नहीं है, बल्कि गहन दार्शनिक अर्थों से भरी एक जीवंत कलाकृति है, जो देखने में भी बेहद दिलचस्प लगते हैं। नटराज की मूर्ति को गौर से देखने पर एक विशिष्ट आकृति हमेशा ध्यान आकर्षित करती है और वह है- भगवान शिव के नृत्य करते हुए पैरों के नीचे दबा हुआ एक बौना दानव। यह आकृति कोई सजावटी तत्व नहीं, बल्कि इस ब्रह्मांडीय नृत्य के एक महत्वपूर्ण और रहस्यमय पहलू का प्रतिनिधित्व करती है। अक्सर लोग इस बौने दानव को देखकर सोचते हैं कि यह कौन है और इसका क्या महत्व है,ललेकिन इसका नाम और इससे जुड़ा गहरा अर्थ बहुत कम ही लोग जानते हैं। अगर आपने भी कभी नटराज की मूर्ति में इस बौने दानव को देखा है और उसके पीछे के रहस्य को जानना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए ही है। यहां, हम आपको इस बौने दानव का नाम बताएंगे और उससे जुड़ा पूरा रहस्य के बारे में भी जानेंगे।
भगवान शिव का 'नटराज' स्वरूप हिंदू धर्म और विशेषकर शैव दर्शन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह भगवान शिव के ब्रह्मांडीय नर्तक रूप को दर्शाता है, जिसमें वे तांडव नृत्य करते हुए सृष्टि के पंच तत्वों यानी सृजन, संरक्षण, संहार, तिरोभाव/माया और अनुग्रह/मुक्ति का प्रतीक बनते हैं। इस दिव्य मूर्ति में कई प्रतीकात्मक पहलू हैं और उनमें से एक प्रमुख आकृति है- भगवान शिव के दाहिने पैर के नीचे दबा हुआ एक बौना दानव। दरअसल, यह बौना दानव 'अपस्मार' कहलाता है। इसे कुछ स्थानों पर 'मुयलाका' के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत में 'अपस्मार' का अर्थ होता है 'भूलने की बीमारी', 'स्मृतिभ्रंश', 'अज्ञानता' या 'अहंकार'। यह केवल एक रोग नहीं, बल्कि मानवीय चेतना में मौजूद अज्ञानता और आत्म-विस्मृति का प्रतीक है, जो हमें सत्य से दूर रखती है।
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अपस्मार की कहानी और नटराज की मूर्ति में उसकी उपस्थिति एक गहरा दार्शनिक संदेश देती है। अपस्मार उस अज्ञानता का प्रतिनिधित्व करता है जो मनुष्य को भौतिकवादी संसार से बाँधे रखती है। यह वह शक्ति है जो व्यक्ति को स्वयं को पहचानने और आध्यात्मिक सत्य तक पहुंचने से रोकती है। भगवान शिव अपने नटराज स्वरूप में, इस अज्ञानता रूपी दानव अपस्मार पर अपना पैर रखकर नृत्य करते हैं। यह दर्शाता है कि शिव जी ने अज्ञानता और अहंकार पर विजय प्राप्त कर ली है। अपस्मार को शिव के पैरों के नीचे दबा हुआ दिखाया गया है, लेकिन उसे मरा हुआ नहीं दिखाया गया। वह अभी भी जीवित है और संघर्ष कर रहा है। इसका प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि अज्ञानता को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह मानव अस्तित्व का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह बार-बार सिर उठाती रहेगी और हमें इसे लगातार नियंत्रण में रखना होगा। शिव का नृत्य अज्ञान पर निरंतर विजय प्राप्त करने का प्रतीक है, जिससे भक्त सत्य और मुक्ति की ओर बढ़ सकें। शिव का तांडव संहार के साथ-साथ सृजन और पुनर्निर्माण का भी नृत्य है। अज्ञानता को नियंत्रित किए बिना नई चेतना और ज्ञान का सृजन संभव नहीं है। अपस्मार पर शिव का नियंत्रण यह सुनिश्चित करता है कि संसार का चक्र सुचारु रूप से चलता रहे और अज्ञानता हमें पूरी तरह से ग्रस न ले।
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नटराज की मूर्ति में अपस्मार का अस्तित्व हमें सिखाता है कि जीवन में अज्ञानता और अहंकार से जूझना एक सतत प्रक्रिया है। भगवान शिव अपने दिव्य नृत्य के माध्यम से हमें यह संदेश देते हैं कि अज्ञान को दबाकर ही हम सच्चे ज्ञान, आध्यात्मिक शांति और अंततः मोक्ष की ओर बढ़ सकते हैं। यह नृत्य ब्रह्मांड की ऊर्जा, चेतना और हमारी अपनी आंतरिक मुक्ति की यात्रा का एक शाश्वत प्रतीक है।
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