भारत में उधार देने वालों की कमी नहीं है। उधार लेना या देना आसान है, लेकिन उधार दिए हुए पैसों की रिकवरी करना बिल्कुल आसान नहीं है। कई मामलों में लोग उधार के पैसे वापस ही नहीं करना चाहते हैं। अगर उधार दी हुई रकम बड़ी है, तो यकीनन अपने पैसों को यूं ही भूल जाना आसान नहीं होगा। ऐसे में आप कानूनी सहायता ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के वकील नीतीश बांका ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट कर इसकी जानकारी दी है।
सबसे पहले तो मैं आपको बता दूं कि किसी को पैसे देने से पहले आप उन्हें वापस लेने की टर्म्स और कंडीशन तय कर लेना ही सबसे अच्छा तरीका होता है। रिकवरी के लिए पहली बार में जो आप फोन पर या फिर किसी मैसेज के जरिए याद दिला सकते हैं, लेकिन अगर बार-बार रिमाइंडर के बाद भी ऐसा नहीं हो रहा है, तो जरूरी है कि आप लीगल नोटिस भेज दें।
नीतीश बांका के अनुसार लीगल नोटिस दो तरह का होता है। सिविल सूट और क्रिमिनल सूट। अधिकतर ऐसे मामलों में सिविल सूट ही फाइल किया जाता है।
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क्या है सिविल सूट?
वैसे तो सिविल सूट कई तरह के होते हैं, लेकिन नीतीश के अनुसार आपको समरी रिकवरी सूट (Summary Recovery Suit) फाइल करना है। इसमें जल्दी से जल्दी आपका पैसा रिकवर हो सकता है। अन्यथा कई सिविल सूट्स में सालों भी लग जाते हैं।
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सिविल सूट CPC (Code of Civil Procedure) के ऑर्डर 37 के आधार पर फाइल होगा। इसे फाइल करने के बाद उधार लेने वाले को कोर्ट समन भेजे जाएंगे। डिफेंडेंट को सूट फाइल करने के 10 दिन के अंदर ही कोर्ट में पेश होना होता है।
अगर पैसे उधार लेने वाले व्यक्ति के पास वकील है, तो वो अपनी दलील पेश करेगा नहीं तो कोर्ट की तरफ से देनदार के हक में फैसला सुनाया जा सकता है। अगर लेनदार ने चेक दिया है जो बाउंस हो गया है, तो उसके खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट (NI) एक्ट के सेक्शन 138 के तहत दोबारा केस फाइल किया जा सकता है। (उधार पैसे वापस लेने के तरीके)
क्या है क्रिमिनल सूट?
आपने धारा 420 के बारे में सुना ही होगा। क्रिमिनल सूट IPC के तहत फाइल किया जाता है। अगर देनदार चाहे, तो कानूनी तौर पर धारा 420 और 406 के तहत शिकायत दर्ज करवा सकता है। ऐसे मामलों में सिर्फ देनदारी वापस ही नहीं करनी होती, बल्कि जेल भी हो सकती है।
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क्या है लीगल नोटिस भेजने का प्रोसेस?
- लीगल नोटिस हमेशा लॉयर के लेटरहेड में दिया जाता है। इसमें भेजने वाले वकील का नाम, पता और कॉन्टैक्ट इन्फॉर्मेशन होगी।
- इसके साथ ही लेनदार का नाम, पता, वो अमाउंट जो लिया गया है, लीगल नोटिस भेजने की तारीख आदि भी शामिल होगी।
- लीगल नोटिस में इस बारे में साफतौर पर लिखा होता है कि लेनदार ने किस तरह से टर्म्स और कंडीशन को नहीं माना।
- नोटिस में एक टाइम लिमिट भी दी जाती है। इस टाइम लिमिट के अंदर अगर पैसे वापस कर दिए जाएं, तो कोई कानूनी केस नहीं होता।
- अगर उधार कैश दिया गया है, तो उसके बारे में भी जानकारी लीगल नोटिस में दी जाती है। दरअसल, कैश ट्रांजैक्शन का सबूत देना आसान नहीं होता है इसलिए यह साफ लिखा जाना चाहिए कि किस तरह से पैसे दिए गए हैं।
- लीगल नोटिस में देनदार के नाम और साइन के साथ-साथ वकील का नाम और साइन भी होना चाहिए।
- उधार पैसे देने के मामले में अगर धारा 420 का केस दाखिल हुआ है, तो यह थोड़ा लंबा प्रोसेस हो सकता है। आपके मामले में किस तरह का केस बनता है उसकी जानकारी आप किसी वकील से ले सकते हैं।
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